Wednesday, May 11, 2016

मेले में स्टाल


कल मृणाल ज्योति जाना है. वहाँ एग्जीक्यूटिव मीटिंग है. नये वर्ष से उसने वहाँ नियमित जाना आरम्भ किया है. पूरी जानकारी लेनी है यदि उनके लिए कोई सार्थक काम करना है. एक सखी भी उसके साथ जाने वाली है. पड़ोसिन सखी ने बास्केटबाल का नेट भिजवाया है, शायद वहाँ बच्चों के काम आ सके. जून को उसने मिठाई लाने को कहा है, क्लब की सेक्रेटरी को गाड़ी के लिए. एक छोटे से कार्य के लिए कितने लोगों का सहयोग चाहिए होता है. यह संसार एक संयुक्त इकाई की तरह कार्य करता है. यह माया नहीं है, क्षण भंगुर अवश्य है. इसका उपयोग अपने विकास के लिए करना ही उनका उद्देश्य होना चाहिए. वे इसमें फंसे नहीं, इससे कुछ पाने की आशा भी न करें. लोभ मिटाना है, मोह, मान, क्रोध और स्वार्थ के फंदों को काटना है. तभी वे अपनी पूर्णता को प्राप्त कर सकेंगे. यह जगत एक विद्यालय है, यहाँ उन्हें अपनी शक्तियों का विकास करना है. यहाँ पर एक चौराहा उन्हें हर कदम पर मिलता है, वे चाहें तो नीचे गिरें, चाहें तो ऊपर जाएँ, चाहें तो दाएँ या बाएँ जाएँ. इस दुनिया में वे क्यों आये हैं यह स्पष्ट हो जाये तो वे उस पथ पर चल सकते हैं जो उन्हें लक्ष्य की ओर ले जाये. मानव के भीतर अपार सम्भावनाएं हैं, वह देवता भी हो सकता है और यदि सोया रहे तो पशु भी हो सकता है. उसे सद्गुरु का ज्ञान मिला है, उसका उपयोग करते हुए अपने भीतर को शुद्धतम करते जाना है. शुद्ध मन ही खाली मन है, वहीँ फिर ईश्वर अपनी शक्तियों को भरने का काम शुरू करता है !
आज सुबह आचार्य रामदेव जी का ओजस्वी वक्तृत्व सुना, भीतर जोश भर गया है. शब्दों में ताकत होती है. तेजस्वी विचार उन्हें तेज से भर देते हैं. भीतर जो शक्ति ध्यान से जगी है, उसका उपयोग करने का अब वक्त आ गया है. व्यक्तिगत साधना से साधक पहले आत्मा फिर परमात्मा को पहचानता है. इस जगत की वास्तविकता का जब ज्ञान होता है तो पता चलता है यह सारा जगत एक ही सत्ता का विस्तार है. हरेक के भीतर उसी की ज्योति है, उसी का प्रकाश है. वे उससे पृथक नहीं हैं, वे किसी से भी पृथक नहीं हैं, एक ही सत्ता भिन्न-भिन्न रूपों में दिखाई दे रही है. वही सत्ता उसकी छात्रा के रूप में अपनी अज्ञता को दिखा रही है, वही सत्ता रामदेव जी के रूप में अपनी विद्वता दिखा रही है ! और वही सत्ता वह है ! सद्गुरु के रूप में वही सत्ता अपने पूरे ऐश्वर्य के साथ प्रकट हुई है. इतना ज्ञान जिसे हो जाये उसे न मृत्यु का डर रहता है न अपमान का, न मान की चिंता रहती है न अन्य कोई लोभ ! ऐसा व्यक्ति तो जीवन मुक्त हो जाता है. उन सभी के भीतर इसकी सम्भावना है, वे सभी बुद्ध हो सकते हैं, उन सभी के भीतर अकूत शक्ति है पर उन्हें इसका पता ही नहीं है. एक असीम खजाना उनके भीतर है पर वे भिखारी की तरह व्यवहार करते हैं. वे चाहें तो सारे ब्रह्मांड को अपने इशारे पर चला सकते हैं, जब वे उस सत्ता के साथ स्वयं को जोड़ लेते हैं. जब उसके हाथों में स्वयं को सौंप देते हैं, तब वह उनके द्वारा काम लेने लगता है. वे अपने भीतर की शक्तियों को सुलाए रखते हैं, शेर के वंशज होकर गीदड़ की भांति व्यवहार करते हैं, अमृत पुत्र हैं पर मरने से डरते हैं, जब बाबा जैसे लोग जगाते हैं तब उन्हें चेत होता है !
अगले हफ्ते fete है, उन्हें भी एक स्टाल लगाना है. एक मेज पर किताबें, कैसेट्स, सीडी और दूसरे पर खाने का सामान. अभी तक कुछ तैयारी नहीं की है, समय आने पर अर्थात दो-तीन दिन पहले ही शुरू कर देनी होगी.   


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