अभी कुछ देर पहले पिताजी का फोन आया, वह उसके सास-ससुर से बात
करना चाहते थे. माँ लेटी थीं, उसे लगा सो रही हैं, पिताजी ने बात की तो वह भी जग
गयीं और शिकायत करने लगीं कि उन्हें फोन क्यों नहीं दिया. उन्हें दुखी देखकर उसे
अच्छा नहीं लगा फिरसे फोन लगाया. बाद में उसने सोचा तो पाया कि स्वयं को ही पीड़ा
से बचाने के लिए उसने ऐसा किया न कि उन्हें सुख पहुँचाने के लिए. मन का स्वार्थ
साफ-साफ दिख रहा था.
कल ‘गुरू पूर्णिमा’ थी,
उन्होंने एओल सेंटर में सत्संग व ध्यान किया, प्रसाद बांटा और घर लौट आये. आज सुबह
बैंगलोर आश्रम में हुए उत्सव का प्रसारण देखा. गुरूजी ने इस दिन की महिमा बताई फिर
सबने झूम-झूम कर गीत गए ! प्रभु की कृपा से ही ऐसे आनन्द का अनुभव होता है. यदि
कोई दिन भर बादशाह बनकर रहना चाहता है तो प्रभु के आगे समर्पण करना सीखना होगा. जो
सहज ही उपलब्ध है उसके लिए याचना करनी पड़े इसमें कितना आश्चर्य है पर यह जीवन
रहस्यों से भरा पड़ा है. भीतर के आनन्द का अनुभव अपने आप में एक रहस्य है, कहाँ से
आता है ? उन्हें कुछ भी ज्ञात नहीं, केवल एक तृप्ति का अहसास होता है, इसे शब्दों
में कहना बेहद कठिन है, कैसे होता है ? क्या होता है, कुछ कहा नहीं जा सकता.
नन्हे का जन्मदिन उन्होंने
मनाया, उसके मित्र आये थे, दोनों एक रात रुके. कल की योग कक्षा में बच्चों को
चित्र बनाने को कहा था. सुंदर रंगों को कागज पर उतारते बच्चे कितने प्रसन्न लग रहे
थे. आज बहुत दिनों बाद पड़ोसिन से बात हुई, उसे दिल का एक पुराना रोग है उसके साथ
टिशु डीजनरेट होने का रोग भी हो गया है. उसने कई बार कहा पर ध्यान आदि में उसकी
रूचि नहीं है. टीवी पर यदि वह सत्संग लगा
दे तो माँ सुनती हैं, पिताजी बाहर बैठकर अखबार पढ़ते हैं, एक-एक लाइन पढ़ जाते हैं.
उसके आस-पास उनके मित्रों व परिचितों में कोई भी ऐसा नहीं है जो परमात्मा के रस्ते
जा रहा हो पूरे मन से. सभी व्यस्त हैं, जीवन के कार्य उन्हें इतनी फुर्सत ही नहीं
देते, या मन ही मन सभी उसी पथ के राही हों, कौन जानता है ? सभी गुप्त साधना करते
हो सकते हैं, परमात्मा के बिना किसी का भी गुजरा नहीं. वह परमात्मा हरेक के भीतर
है, वही उन्हें निमन्त्रण देता होगा.
आज शाम को उनके यहाँ सत्संग
है. भजन गाने पर कैसी मस्ती छा जाती है, पर जिसे उस मस्ती की खबर ही न हो वह कैसे
उसे महसूस करेगा. कल शाम को एक सखी व उसकी भाभी को बुलाया है, जो कुछ दिनों के लिए
आई है. शाही टोस्ट व इडली बनाएगी नूना. कल दीदी-जीजाजी से बात की, मन का बोझ जो था
ही नहीं उतर गया. उस दिन कितना अजीब सा स्वप्न देखा था. मृत्यु के बाद का स्वप्न !
नरक के दर्शन किये, अपने पाप की सजा भोगी. उस दुःख को महसूस किया. वर्षों पहले जब
वह अज्ञान से ग्रस्त थी, मन पूर्वाग्रहों से ग्रस्त था, क्योंकि उन्हें यात्रा पर
जाना था, उन्होंने एक आत्मा को कितना दुःख दिया था. वे भूल ही गये इस घटना को जैसे
यह उतनी ही तुच्छ हो जैसे कोई घर की गंदगी बाहर फेंक दे फिर भूल जाये. स्वप्न में
एक कपड़े की गुड़िया दिखी बिना आँख-नाक की. इससे स्पष्ट क्या हो सकता है और अंत में
यह कहते हुए रुदन कि यह यात्रा तो उन्हें बहुत मंहगी पड़ी जी ! कितना अजीब स्वप्न
था पर कितना सत्य था. उनके कृत्यों का फल तो उन्हें ही मिलना है, चाहे जिस रूप में
मिले. उन्हें उसे स्वीकारना ही होगा.
No comments:
Post a Comment