Thursday, May 19, 2016

गुरुद्वारे में अरदास


आज रामनवमी है, सभी को शुभकामनायें भेजीं. टीवी पर ‘गुरुवाणी एजुकेशन’ कार्यक्रम आ रहा है. एक रात स्वप्न में स्वयं को गुरुद्वारे में अरदास सुनते हुए पाया, पिछले किसी जन्म में जरूर वह सिख धर्म से जुड़ी रही होगी. गुरुवाणी दिल की गहराई में किसी तार को झंकृत करती है. पिछले दिनों एक सिख गुरु को सुनने का अवसर भी मिला. कल शाम सत्संग में ध्यान कराया, एक साधक को अच्छा लगा. परमात्मा जो चाहता है वैसा वह कर सके, अहंकार न रहे, यही तो सद्गुरु की शिक्षा है. आज रामदेवजी ने अपनी दीक्षा के पन्द्रहवें साल के उपलक्ष्य में अद्भुत उपहार व संदेश देश को दिया. वेदों की ऋचाएं आस्था भजन के माध्यम से प्रतिदिन सुनने को मिलेंगी तथा भजन भी जब कोई चाहे सुन सकता है.

‘मानस नवमी’ को केंद्र बनाकर मुरारी बापू भीलवाड़ा में कथा कर रहे हैं. ‘हरि अनंत, हरि कथा अनंता’ परमात्मा और सद्गुरु में पुष्प सुरभि जैसा नाता है. सुरति रूप में जो गुरू है वही प्रकाश रूप में, ज्ञान रूप में परमात्मा है. जब राम वनवास में गये तो भील-किरात आदि को लगा कि उनके घर में नौ प्रकार की निधियाँ आ गयी हैं. नील, शंख, मुकुंद, नंद, खर्व, पद्म, महापद्म, मकर, कच्छप आदि नौ निधियां तो पुरानी हैं पर उनके घर नई निधियां आई हैं. व्यक्ति के विवेक के प्रकाश को नवीन अर्थ दे वह सद्गुरु है ! विवेक के प्रकाश को अपने जीवन में ढाल ले वही संत है ! विवेक के प्रकाश को नवीन लिपि में ढाल दे वही सद्साहित्य है. सौन्दर्य भी एक निधि है, भावना, निष्ठा, मर्यादा तथा शील में भी एक सौन्दर्य है. शक्ति, आत्मबल, मनोबल, बुद्धिबल जो सेतु बनाये, विभाजित न कर सके, वह भी एक निधि है. करुणा भी एक निधि है, किसी के भीतर प्रेम हो तो मानना चाहिए कि उसके पास एक खजाना है.

उसकी फुफेरी बहन जो कई वर्षों से अस्वस्थ थी, देह के बंधन से मुक्त हो गयी. नूना के मन में स्मृतियों का एक सैलाब उमड़ आया. मन को उनसे मुक्त करने के लिए तथा मृतात्मा के प्रति श्रद्धांजलि स्वरूप उसने बहन की तरफ से एक आलेख लिखना शुरू किया.

अस्पताल के इस कमरे की दीवारें, छत तथा पर्दे उसकी सूनी दृष्टि से भली-भांति परिचित हैं, जब डाक्टर या नर्स आती है तो उसकी मुस्कान उन्हें चकित कर जाती है. देह का रंग काला हो गया हो पर मन में अब भी उमंग का अनुभव करती है. पिछले पांच वर्षों से भीषण व्यथा सहने के बावजूद भी जीने की इच्छा खत्म नहीं हुई है. फिर मृत्यु क्या माँगने से आती है, जन्म व मृत्यु एक ऐसा रहस्य है जो बड़े-बड़े ज्ञानी-ध्यानी भी नहीं जान सके. देह तो ढांचा मात्र है, भीतर जो आत्मा है वह तो कभी रुग्ण नहीं होती. कभी जर्जर नहीं होती. लोग केवल बाहरी शरीर देखते हैं, नहीं देखते वह भीतर की चेतना जो सदा एक सी रहती है. मन में दुःख होता है जब शरीर में सूइयाँ चुभोई जा रही हों. जब हफ्ते में दो बार रक्त बदला जा रहा हो, उस समय भी कोई है जो इस घटना को देखता रहता है साक्षी भाव से. जो शक्ति प्रदान किये जाता है.  


  

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