Sunday, April 24, 2016

नीलवर्णी शिव


सोलह दिनों की यात्रा के बाद परसों वे वापस लौट आये हैं. सुबह के दस बजे हैं, बच्चे पढ़ने आये हैं. मौसम सुहावना है, धूप खिली है, बगीचा साफ-सुथरा मिला. वापस आकर सभी परिवार जनों से बात भी हो गयी है. सभी परिपक्व हो रहे हैं उम्र के साथ-साथ, पर बड़ी भाभी अभी भी मन के जाल में कैद हैं, यहाँ उसकी एक सखी का भी वही हाल है. बड़ी बहन ने स्वयं को देह से अलग महसूस करना तो वर्षों पहले ही शुरू कर दिया था अब वह देह को बंधन मानने लगी हैं. देह से मुक्त होकर वह परमधाम में जाकर शांति का अनुभव करना चाहती हैं. देह की अपनी सीमाएं हैं पर देह के बिना आत्मा कुछ जान भी तो नहीं सकती. यदि आत्मा आनन्द है तो इस बात का ज्ञान उसे देह धारण करके ही होता है. ध्यान के द्वारा देह रहते भी यह सम्भव है. विदेह जनक को ऐसा ही अनुभव होता होगा. उसे हिंदी के लेख-कविताएँ एकत्र करने हैं, फोन किये हैं सम्भवतः इतवार तक कुछ बात बनेगी. सद्गुरु का एक सुंदर प्रवचन छोटी ननद से लायी है, बाबाजी का भी, ओशो के दो संगीतमय ध्यान के कैसेट भी. जून ने आज सुबह व्यायाम/ साधना आदि के बाद कहा, आज उन्हें कई हफ्तों के बाद अच्छा अनुभव हुआ. शाम को वे एक वृद्धा परिचिता को जन्मदिन की बधाई देने जायेंगे.

आज सुबह नींद देर से खुली, इतनी गहरी नींद थी कि अलार्म भी सुनाई नहीं दिया, दोनों में से किसी को भी नहीं. अभी तक यात्रा की थकान उतरी नहीं है. सुबह अभी पौने सात ही बजे थे, एक दक्षिण भारतीय सखी का फोन आया, उसकी माँ जो पिछले एक वर्ष से पुत्र के साथ विदेश में रह रही थी, देह सिधार गयी. भाई उनकी देह को भारत लाने का प्रयास कर रहा है. कल शाम को प्रेस गयी थी प्रूफ रीडिंग करने. ‘ध्यान’ पर लिखा लेख उसने तीसरी बार छपने को दिया है क्योंकि यह विषय है ही इतना महत्वपूर्ण !


आज सुबह अचानक वर्षा होने लगी है. बादल रात में एकत्र हुए होंगे. उस वक्त वे निद्रा में मग्न थे. कल रात कैसे अनोखे स्वप्न देखे. भगवान शंकर को देखा, नीला रंग, तन पर वही सब आभूषण जो चित्रों में दिखाई देते हैं. जादू, तिलिस्म तथा कंकाल को झपटते देखा. अजीब सा स्वप्न था पर उस वक्त कितना सहज लग रहा था. कल रात एओल का कार्यक्रम देखा था. गुरूजी को बहुत दिनों बाद देखा व सुना, फिर ‘कृष्णा’ देखा इसी का असर रहा होगा जो मन रहस्यों की दुनिया खो गया. यह जगत एक रहस्य ही तो है ! कल छोटी बहन से बात की, वह एक और मकान खरीद रही है, यानि तीसरा मकान और अपने काम से, जीवन से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है. सच ही है लोग जीवन से कभी भी पूर्ण संतुष्ट कहाँ हो पाते हैं, वे जीवन का अर्थ समझे बिना ही जीवन जिए चले जाते हैं. ग्यारह बजने को हैं, जून कुछ देर में आने वाले होंगे उन्हें बाजार भी जाना था पर इस भीगे मौसम में शायद सम्भव नहीं हो सकेगा. उसका देवदिवाली पर लेख पूरा होने को है !

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