Thursday, April 21, 2016

उत्तर पूर्वी भारत - सात बहनें


होश में जीना, साक्षीभाव में जीना, जागते हुए जीना ही असली बात है, वे अचेतावस्था में ही सारी भूलें करते हैं. आज सुबह उसने व्यस्तता के कारण फोन नहीं उठाया पर यह मान लिया कि कोई दूसरा उठा लेगा, यह मानना होश में नहीं हो सकता क्योंकि सभी व्यस्त हो सकते हैं. इस एक घटना के अलावा बेहोशी में कुछ विशेष नहीं हुआ. जून ने मृणाल ज्योति के हॉस्टल के लिए काफी चीजें बनवा दी हैं, उनके भीतर कितना परिवर्तन आता जा रहा है, वह मुस्कुराने लगे हैं, सामाजिक कार्य  करने लगे है. जीवन के प्रति नयी ललक जागी है, घर में नये-नये सामान ला रहे हैं. रजोगुण बढ़ रहा है धीरे-धीरे सतोगुण भी आएगा, अब क्रोध नहीं रहा, प्राणायाम का असर स्पष्ट दीख रहा है. जीवन है ही आनन्द के लिए, सेवा के लिए और परोपकार के लिए, वे मानव होने का सबूत तभी दे सकते हैं जब उनके चारों ओर आनन्द का वातावरण हो शांति हो और लोगों को उनसे कुछ न कुछ मिलता रहे, वे दाता बनें तभी जीवन का सच्चा मर्म समझ पाते हैं. प्रकृति हर पल लुटा रही है, बिना किसी आकांक्षा के, वे भी तो उसी प्रकृति का अंश है जैसे प्रकृति के पीछे वह अव्यक्त छिपा है ऐसे ही उनके पीछे आत्मा का साम्राज्य है, वे ही वह चेतन हैं, जड़ हाथों में क्या शक्ति कि अपने आप कुछ कर सकें !

आज ‘मृणाल ज्योति’ गयी थी, उस दिन एक परिचित ने पूछा था, आपकी वह संस्था कैसी है, और एक दिन क्लब की अध्यक्षा ने भी कहा कि वह इस संस्था से जुड़ी ही है तो उससे जुड़ा लेडीज क्लब का भी काम कर दे. कोई थोड़ा सा भी पुण्य का काम करे तो पहचान अपने-आप मिलने लगती है, लेकिन एक सच्चा साधक अपने लक्ष्य पर ही नजरें रखता है, वह लक्ष्य है परमात्मा, उससे कम कुछ भी नहीं ! आज सुबह ‘क्रिया’ के बाद गुरूजी की कृपा का अनुभव हुआ, उन्होंने जैसे उसके मन में उठने वाले सवालों का जवाब दिया. आज जून ने कहा कि अगले महीने मुम्बई में उनकी पांच दिनों की ट्रेनिंग है, क्या वह यात्रा बीच में छोड़कर वहाँ जाएँ ? तो उसने कहा, हाँ, वह जा सकते हैं, भीतर कोई द्वंद्व नहीं बचा, कोई संदेह नहीं. इस दुनिया में ऐसा कुछ रहा ही नहीं बल्कि था ही नहीं जो परमात्मा से बढ़कर हो, वह जिसे मिल जाये अथवा उसकी जिसे तलाश हो वह किसी भी परिस्थिति में प्रसन्न रह सकता है. गायत्री परिवार के संस्थापक श्रीराम शर्मा आचार्य की अमृत वाणी पढ़ी, उनकी वाणी में आग है, कितने स्पष्ट दो टूक हैं उनके वचन. महामानव थे वह और बने कैसे, केवल परमात्मा की कृपा से ! उनके भीतर जो अनंत शक्ति छुपी है वह उसी की तो है, परमात्मा प्रकट होने को उत्सुक है, वे प्रमाद के कारण कभी अज्ञान के कारण स्वयं को दीन-हीन जानते हैं, वास्तव में वे शक्ति के ऐसे पुंज हैं जो इस दुनिया को बदल सकती है ! अगले दो घंटे उसे पढ़ाना है. शाम को सत्संग भी है.
कल दोपहर ‘मिजोरम’ पर पढ़ती रही, शाम को क्लब में मीटिंग थी. इस बार जो सदस्या संपादन कर रही हैं, उनका काम करने का तरीका बिलकुल अलग है. पहले तो उसे पत्रिका के मुखपृष्ठ, सज्जा आदि से कोई मतलब ही नहीं रहता था, केवल हिंदी की प्रूफ रीडिंग तक ही उसका काम सीमित था. कल एक नाम भी उसने सुझाया ‘AAMI NAM METRI’ उत्तर भारत की सात बहनों के सारे नामों के पहले अक्षरों को लेकर. आज अंकुर में दो दर्जन बच्चे आए थे, रामलीला खेली, उससे पहले रामायण की कहानी सुनाई, बच्चों को नाटक में बहुत मजा आता है. आज आकाश में बादल छाये हैं. 

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