कल एओल का ‘सुमेरु संध्या’ कार्यक्रम
सम्पन्न हो गया. विक्रमजी व उनकी टीम ने सभी को प्रभावित किया तथा संगीत के माध्यम
से ध्यान की गहराइयों में ले जाने में सफल हुए. जो संगीत आत्मा से निकलता है आत्मा
को छूता है. कल सुबह भी वह सवा दस बजे घर से कार्यक्रम स्थल पर गयी, ढाई बजे लौटी,
उन्होंने वहाँ फूलों से सज्जा की. पहली बार उसने इस तरह काम किया. शाम को एक उड़िया
साधिका अपने साथ ले गयी, वह अच्छी सखी बनती जा रही है. कार्यक्रम से लौटते-लौटते
साढ़े नौ बज गये थे, जून सो गये थे पर उठकर उसके लिए भोजन लाये. आज दोपहर नैनी की
बेटी की फ़ीस जमा करने जाना है तथा हिंदी पुस्तकालय की किताबें भी लौटानी हैं.
ड्राइवर आ जायेगा, जून ने फिर उसका काम आसान कर दिया है. इटानगर में गुरूजी आ रहे
हैं, वहाँ जाने के लिए बस की लम्बी यात्रा करनी पड़ेगी. जून ने कहा है गुरूजी के
साथ आश्रम में रहकर एडवांस कोर्स करने वे भविष्य में कभी बैंगलोर जायेंगे. भविष्य
में क्या लिखा है कोई नहीं जानता.
यश की इच्छा,
वित्त की इच्छा तथा जिए चले जाने की इच्छा, तीनों ही दुःख के कारण हैं. यश की
इच्छा के कारण ही मानव दूसरों के सामने अपनी प्रतिभा को दिखाना चाहता है. धन की
इच्छा यानि सुख-सुविधा की इच्छा के कारण ही वह दूसरों की गुलामी सहता है तथा जीने
की इच्छा अर्थात प्रेम करने, प्रेम पाने तथा अधिकार जताने की इच्छा के कारण ही वह
अपना अपमान सहता है, दुःख उठाता है. यहाँ हर आत्मा आजाद है, हर एक को अपनी निजता
प्रिय है, हरेक अपनी मालिक है सो किसी का हुकुम बजाना किसी को पसंद नहीं.
सितम्बर खत्म
होने को है. उसने फिर पिछले चार-पांच दिनों से कुछ नहीं लिखा. परसों रात एक अजीब
सा स्वप्न देखा. एक नवजात शिशु का क्रन्दन. वह शिशु उसकी छोटी बहन थी या वह खुद,
यह स्पष्ट नहीं हो पाया. माँ की आवाज में लोरी सुनी, बिलकुल साफ गीत जिसकी एक
पंक्ति थी सोजा मेरे सोना चाँदी, मत रो मेरे सोना चाँदी ! सुबह उठने सी पूर्व भी
एक स्वप्न देख रही थी. घर में बहुत सारे मेहमान आये हुए हैं, वे कमरे में हैं,
दरवाजा खुला है और उन्हें होश नहीं है. कल रात देखा वह समोसा या ऐसा ही कोई पदार्थ
खाती ही जा रही है. कितनी ही वासनाएं भीतर छिपी हैं जो स्वप्न में प्रकट होती हैं.
कल रात छोटी बहन व छोटी भांजी से बात हुई. वह संगीत सीख रही है, गोल्फ भी खेलना
शुरू किया है तथा फ़्लाइंग क्लब जाकर टू सीटर प्लेन भी उड़ा चुकी है. जिन्दगी को
पूरी शिद्दत से जीना शुरू किया है लेकिन इतना तो तय है बाहर कितना भी बड़ा आयाम वे
फैला लें, भीतर गये बिना मुक्ति नहीं मिलती. छोटे भाई ने ओशोधाम जाकर भीतर की
यात्रा तेज कर दी है. जून सोचते हैं यह आत्मविश्वास की कमी है पर अभी तक उन्होंने
भीतर की झलक पायी ही नहीं है कैसे समझेंगे कि यही एक कार्य है जिसे करने के लिए
आत्मविश्वास चाहिये अपनी आत्मा पर पूर्ण विश्वास करके उसकी ओर बढ़ते चले जाना !
दुनिया ने सदा ही परमात्मा की तरफ बढ़ते लोगों को पागल कहा है क्योंकि दुनिया स्वयं
परमात्मा की तरफ पीठ किये बैठी है. वैराग्य, ज्ञान, श्री, ऐश्वर्य, धर्म, यश.. ये
छह जिसमें हों वही भगवान है.
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