Wednesday, April 27, 2016

पहला Gmail अकाउंट


आज ‘विश्व विकलांग दिवस’ है. सुबह नौ बजे वह मृणाल ज्योति गयी और साढ़े बारह बजे लौटी. ढेर सारे फोटोग्राफ और वीडियो उतारे. बच्चों ने अच्छा कार्यक्रम प्रस्तुत किया. उनके आयारूम में रहने वाली नैनी का विकलांग पति आज अस्पताल में एडमिट है. कुछ देर पहले नन्हे ने G Mail में उसका अकाउंट खोला है. जून तीन दिनों के लिए छुट्टी पर हैं, पर किसी काम से दफ्तर गये हैं. आज सुबह उसने कैलेंडुला की बची हुई पौध लगायी. इस साल गुलदाउदी के फूल की बहार अभी तक नहीं आयी है. अभी तक आज का ध्यान नहीं हुआ है. पिछले कई दिनों से किसी न किसी कार्यवश ध्यान का क्रम टूट गया है. आजकल कभी-कभी लगता है जैसे वह कुछ भी नहीं जानती. न बोलना, न विचारना, न पढ़ना. जो कुछ भी आज तक जानती थी वह सारा का सारा भूल गयी है. साधना करना भी नहीं भाता अब, न घंटों संतों की वाणी सुनने का पहले का सा आकर्षण शेष है. लगता है जैसे जिसे यह सब करने का शौक था जब वह मन ही नहीं रहा. जिसे जानने के लिए करना था, वह तो स्वयं वह ही है. भीतर गहरी शांति है जब यह ध्यान भी हट जायेगा कि साधना नहीं की, जब प्रकाश, प्रवृत्ति या मोह होने पर भी साक्षी भाव ज्यों का त्यों रहेगा, तब तत्वज्ञान में दृढ़ता सिद्ध होगी, अथवा तो तब ये सब होंगे ही नहीं, कौन जानता है ?

बहुत सारे कार्य एकत्र हो गये हैं, जिनकी सूची बना ली जाये तो निपटाना आसान होगा. कुछ काम उसके हैं, कुछ घर के, कुछ बगीचे के, कुछ इधर-उधर के, अंततः सारे काम उसी परम प्रिय परमात्मा के हैं जो उनका सखा होकर उनके भीतर विराजमान है. ‘मन के पार’ को भेजना है, कहाँ भेजे पता भी लगाना है. ‘नार्थ-ईस्ट’ पर निबन्ध पूरा करना है. ‘दक्षिण भारत की यात्रा’ का संस्मरण पूरा  करना है. ‘मोरान’ पर लेख लिखना है. घर में एक होल्डर लगवाना है. दरवाजे की चौखट पर वार्निश करवानी है. पर्दे ठीक करने हैं. पुराने वस्त्र निकाल कर देने हैं. बगीचे में एक गड्ढा बनवाना है. सफेद कुशन धुलवाने हैं. गमलों में नई मिट्टी भरवानी है. गुलाब में रोज फूड डलवाना है. नई क्यारी बनवा कर कॉर्न फ्लावर की पौध लगानी है जो बड़ी हो गयी है. मृणाल ज्योति की उस आया को पुराना बिस्तर भेजना है. उनके पास ऊर्जा है, समय है, साधन है, पर वे उसका उपयोग नहीं करते, अपनी क्षमताओं की कीमत नहीं जानते. उनका ढेर सारा समय यूँ ही चला जाता है. भीतर कैसी उथल-पुथल मच जाती है जब काम एकत्र हो गये हों और करने का मुहूर्त नहीं निकल रहा हो. कितना जरूरी है इन कामों का होना इस पर ही तो उनका करना निर्भर करता है. वक्त के साथ-साथ अपनी जरूरत के अनुसार होते ही जायेंगे.


दिसम्बर आरम्भ हुए दसवां दिन है. आजकल समय, दिन, तारीख का भी कोई हिसाब नहीं रहता. समय की अनंत धारा में वे बहे जा रहे हैं. नन्हा वापस अपने हॉस्टल पहुंच गया है. उसे अपना कालेज पसंद नहीं है, ऐसा लगा पर कई बार दिखता कुछ और है होता कुछ और है. आज जून ने अपना मेडिकल चेकअप कराया है, पर वह डाक्टरों के रवैये से खुश नहीं लगे. उसके भीतर से संगीत की लहरियां फूट रही हैं और एक अनोखी विश्रांति का अनुभव करा रही हैं. घर में इंटरनेट की सुविधा आ गयी है पर वह स्पीड कम होने के कारण इस्तेमाल नहीं कर पायी. नन्हे ने कहा था, धैर्य रखना पड़ेगा, धैर्य की पूरी परीक्षा लेता है यहाँ का सर्वर. नन्हे ने इस बार उसे जैसे आईना दिखा दिया. उसकी कमियां उसके सामने अपने पूर्ण रूप में उजागर हो गयीं. वाणी का दोष ही सबसे बड़ा दोष है. वाणी पर नियन्त्रण नहीं है. उसने उसे कहा कि दस-पन्द्रह वर्षों में कुछ नहीं बदला है, जब उसने जून से शिकायत भरे शब्द बोले. उसकी भाषा सही नहीं है इसका अंदाज उसे स्वयं नहीं होता, लगता है कि यही ठीक है, जून ने भी थोड़ा सा गुस्सा किया पर कुछ ही मिनटों में सब ठीक हो गया. नन्हे को शायद यह दृश्य देखना था. एक बार उसने कहा कि उसे अपनी सखी को भी वे शब्द नहीं बोलने चाहिए थे, जो एक बार बातचीत के दौरान बोले. तभी तो पूर्वज कहते आये हैं, मौन रहना सबसे श्रेष्ठ है, नैनी की बेटी को पढ़ाने के उसके तरीके पर भी उसने प्रश्न चिह्न लगा दिया. आधा घंटा भी यदि वह कुछ और न करके उस पर पूरा-पूरा ध्यान दे तो पर्याप्त है, ऐसा उसने कहा !

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