आज ‘अंकुर बाल संस्कार केंद्र’ में बच्चों से राखियाँ बनवानी हैं, अगले शनिवार
को रक्षाबंधन का त्योहार है. वे सभी मिलकर मनाएंगे. कल शाम मीटिंग में साहित्य सभा
‘जोनाली सारू’ के बारे में पता चला. मंगल को है शाम चार बजे. वह जा सकती है, जून
को बताना होगा. धीरे-धीरे उसका कार्य क्षेत्र बढ़ता जा रहा है. “कृष्णाय अर्पणमस्तु” सब उसी की लीला है. जो कुछ भी इस सृष्टि में हो रहा
है वही करा हो रहा है, मूल तो वही है, जो हो सो हो उसके सारे कर्म उसी को अर्पित
हैं, मन द्वारा सोचना भी तो एक कर्म है, वाणी का कर्म तथा स्थूल कर्म, सभी उसी की
लिए हों. कल रात सुना अहंकार का भोजन दुःख ही है, दुःख के कीट खाकर ही वह जीवित
रहता है और अहंकार किये बिना मानव रह नहीं सकता. कितना सही कहते हैं सद्गुरु, ‘मैं’
को मिटाए बिना उनके दुखों का अंत नहीं हो सकता और ‘मैं’ को दिन-रात पोषने का वे
उपाय करते हैं, चाहते हैं शीतलता और मिलती है जलन, क्योंकि बढ़ते हैं आग की तरफ,
दुःख को सम्भाल कर रखते हैं, शायद वे दुःख ही चाहते हैं.
परसों उन्हें
मृणाल ज्योति जाना है, राखी का त्यौहार मनाने. उसने स्कूल की हेड मिस्ट्रेस से बात
की, उन्होंने हिंदी में स्कूल का एक एक छोटा सा परिचय लिखने को भी उसे कहा है. कल
पुस्तकालय का कार्यक्रम ठीक हो गया, दुलियाजान कालेज के एक रिटायर्ड अध्यापक से
मिलना हुआ. कल कवि गोष्ठी है, उससे कहा गया है कि हिंदी के लिए भी ऐसी ही शुरुआत
वह करे ! उनके पास ऊर्जा है, काम करने की इच्छा है तो कोई भी कार्य असम्भव नहीं
है. आज दोपहर को वस्त्रों की आलमारी ठीक करनी है, पुराने वस्त्र निकलने हैं नयों
को सहेज कर रखना है, ऐसे ही उनका मन है, पुराने सड़े-गले अनुभवों को, विचारों को
निकाल कर नये ताजे शुभ विचारों से इसे भरना है ताकि निरंतर आगे बढने की प्रेरणा
मिलती रहे ! इसी हफ्ते दोनों कमरों में पेंट भी होना है, दीवाली से पूर्व की सफाई
! आज ध्यान में परमात्मा से एकता का अनुभव कितना स्पष्ट था, उसे आँखें बंद करते ही
आत्मा का अनुभव करवाता है वही, उससे परे भी वही है, कितनी गहन शांति का अनुभव मन
करता है. वे ध्यान नहीं जानते तो जीवन के एक सुंदर अनुभव से वंचित रह जाते हैं,
अपने आपको जाने बिना जीवन कितना सूना होता होगा, लेकिन जब तक इसका अनुभव नहीं होता
तब तक यह सूनापन भी कहाँ दिखता है ?
कल शाम वह साहित्य
सभा की मीटिंग में गई, उसे जून को बताना याद ही नहीं रहा, वहीं से फोन करके बताया,
वे थोड़ा क्रोधित हुए पर जल्दी ही सामान्य हो गये, जब देखा कि उनके क्रोध का उस पर
कोई असर नहीं हो रहा है. पर बाद में उसे अहसास हुआ अपनी ख़ुशी के लिए किसी को परेशान
करने का उसे कोई हक नहीं है. उसे उनके लिए एक कविता भी लिखनी है कल उनका जन्मदिन
है, दोपहर को उन्होंने पहली बार उसे एक मनोवैज्ञानिक की तरह समझाया, जैसे पहले कई
बार वह उन्हें कुछ कहती रही है. ईश्वर कितने-कितने रूपों में उनके सम्मुख आता है.
वह परिपक्व हो रहे हैं, जीवन में हर एक को धीरे-धीरे ऊपर आना है, कोई जल्दी कोई
देर से, पर कोई-कोई ही आत्मा को लक्ष्य बनाकर चलता है. अहंकार मुक्त होकर ही कोई
शुद्ध चेतना के रूप में स्वयं को जानता है. अहंकार का अर्थ ही है वह अन्यों से
भिन्न है, श्रेष्ठ है, तथा उसे संसार के सारे सुख-आराम चाहिए, उसे जीना भी है और
स्वयं को कुछ मनवाकर जीना है, लोग कहें, देखो, यह फलाना है, अर्थात इस ‘मैं’ का
भोजन है द्वेष, स्पर्धा, भेद और यही सब
क्रोध का कारण है, क्रोध दुःख का कारण है अर्थात अहंकार का भोजन दुःख ही हुआ, जैसे
ही कोई अपने शुद्ध स्वरूप को जान लेता है, सारा विश्व एक ही सत्ता से बना है,
प्रकट हो जाता है, माया का खेल खत्म हो
जाता है, अब न कुछ पाना है न किसी से आगे बढ़ना है, न कुछ करके दिखाना है, अब तो बस
खेलना है, लीला मात्र शेष रह जाती है. वह असीम सत्ता जैसे छोटी सी देह में, मन में
समा जाती है, अब जो भी होगा वह उसी के द्वारा होगा और वह तो एक ही काम जानता है,
खेल उत्सव, मस्ती और उसके लिए सुख-दुःख, मान-अपमान समान है, वह कालातीत है,
द्वन्द्वातीत है, गुणातीत है, अपरिमेय है, आनन्द, शांति, प्रेम, ज्ञान, शक्ति,
पवित्रता और सुख का भंडार है. उसे कुछ करके कुछ पाना ही नहीं है, तो अब सारी दौड़ समाप्त
हो गयी, सारा दुःख समाप्त हो गया, जन्मों-जन्मों की तलाश समाप्त हो गयी, अब तो बस
होना मात्र शेष है !
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