Monday, September 7, 2015

गुजरात की बाढ़


सहनशीलता, धैर्य, मनोबल, संकल्प बल तथा दृढ़ इच्छा शक्ति जिसके पास हो वही अध्यात्म के पथ पर चल सकता है. मौत का भी डर जब मन में न रहे, कोई भी कष्ट आए, सम रहकर उसे सहना, यह जब तक जीवन में न हो तब तक कोई जीवन से दूर ही रह जाता है. आजकल उसके मन की दशा कुछ ऐसी ही है. सत्य का सामना करने की हिम्मत वह अपने भीतर नहीं जुटा पायी. यात्रा पर जाने से पहले एक सखी ने उसे एक खत पोस्ट करने को दिया था, वह भूल गयी और यात्रा के अंत में उसे पोस्ट किया, पर जब उसने पूछा तो यह नहीं बताया कि पोस्ट करने में देरी हो गयी थी. उसे बुरा लगेगा यही सोचकर नहीं बताया पर अब लगता है कि वह उसके बारे में अपनी राय को बदल देगी इस डर से. पर यह सच है कि झूठ के पाँव नहीं होते. एक बोझ जो उसने व्यर्थ ही चढ़ाया है. नीरू माँ के अनुसार उसे प्रतिक्रमण करना होगा और इस बोझ को सिर से उतार फेंकना होगा. अपने आस-पास की दुनिया की वास्तविकता को भी उसने नहीं देखा. गुजरात में बाढ़ आई है, बड़ी ननद से उसने बात भी नहीं की. वह आत्मकेंद्रित होती जा रही थी, जिस क्षण यह भास हुआ उसी क्षण से स्थिति बदल गयी है. कल वे एक मित्र के यहाँ गये, गुजरात में बाढ़ आई है, वहाँ किसी ने एक बार कहा तो उसे इसकी गम्भीरता का अंदाजा ही नहीं था. आज सुबह छोटी ननद, दीदी व बड़े भाई से बात हुई. दो सखियों से बात हुई, एक ने कृष्ण के १०८ नामों के बारे में पूछा तथा दूसरी ने गुरूजी द्वारा कही यह बात बताई कि १५ अगस्त तक का समय भारी है, उन सभी को ध्यान द्वारा इसे टालने का इसकी भयानकता को कम करने का कार्य करना चाहिए. वह ईश्वर को केवल अपने भीतर ही पाना चाहती थी पर वह तो कण-कण में बिखरा है, वह तो हर एक जड़-चेतन में है, वही तो माँ के प्यार में है और वही प्रिय के प्रेम में, वही वात्सल्य में है. ईश्वर कहाँ नहीं है, बाढ़ के पानी में फंसे लोगों में भी वही है और बाढ़ के पानी में भी वही है. उसका कण-कण इस सृष्टि के कल्याण की कामना करता है.

अभी-अभी बिजली थी, अभी-अभी चली गयी. ऐसे ही एक दिन अभी-अभी जीवन होगा, अभी-अभी नहीं होगा. एक पल में मृत्यु उन्हें अपना ग्रास बना लेगी अथवा तो एक पल में वे शरीर के बंधन से मुक्त हो जायेंगे. पीछे की खिड़की से हवा का एक शीतल झोंका पीठ को सहला गया, पंखा चलते रहने पर इसका आभास भी नहीं हो पाता, ऐसे ही जीवन के न रहने पर आत्मा तो अपने आप में रहेगी ही, परमात्मा के प्रकाश से परिपूर्ण ! कल एक पुस्तक पढ़ी, ध्यान के विभिन्न गुर बताये हैं उसमें, विपश्यना ध्यान के, जिसमें केवल बाहर जाती हुई साँस को देखना है. एक नये नजरिये से लिखी गई पुस्तक है. आज मौसम गर्म है, उसकी आँखें मुंद रही हैं, तमस का प्रभाव है.

भाव की संवेदना बहुत दूर तक जाती है, जहाँ मन नहीं पहुंचता, बुद्धि नहीं पहुंचती वहाँ भाव के सूक्ष्म कण पहुंच जाते हैं. ध्यान का दर्शन केवल मन को स्थिर करना ही नहीं बल्कि भाव शुद्धि है. अभी कुछ देर पूर्व उससे जन्माष्टमी का दिन जब एक बार पुनः पूछा सासु माँ ने तो उसका जवाब शांत भाव दिया गया नहीं था. छोटी ननद का फोन आया. पिता जी की तबियत ठीक नहीं है, उसने कहा, वह अपना ध्यान भी नहीं रखते. वह कह रही थी कि दोनों को साथ-साथ रहना चाहिये. देखें  भविष्य में क्या लिखा है. इतना तो सही है कि वृद्धावस्था में भी पति-पत्नी को एक-दूसरे का साथ तो चाहिये ही.  

कल रात तेज वर्षा हुई, आँधी-तूफान भी. मेघ अपने पूरे बल के साथ गरजते रहे. एक-दूसरे से टकराते रहे, रह-रह कर बिजली चमकती रही. वह सब कुछ अनुभव कर रही थी पर इन सबसे परे भी थी. उसके मन में तब आत्मा का गीत गूँज रहा था. मन जैसे यहाँ का न होकर किसी और लोक का था. वह निद्रा थी या तंद्रा थी या शुद्ध ज्ञान का नशा था, पर बिजली जाने से जो कमरे में गर्मी हो गयी थी, उसका भी कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था. जून का आज जन्मदिन है, कल उसने उनके लिए एक कविता लिखी. आजकल वह बहुत खुश रहते हैं. उन्हें भी उस प्रेम का अनुभव हो रहा है, जिसकी बात वह उनसे करती थी. अभेद प्रेम का जहाँ दो न रहें एक हो जाएँ, वहाँ कोई अहंकार नहीं बचता और तभी शुद्ध साहचर्य का अनुभव होता है, पर प्रेम की यह धारा इतनी संकीर्ण तो नहीं होनी चाहिए, यह तो सभी की ओर अबाध गति से बहनी चाहिये. उसके मन की यह धारा यूँ तो सभी ओर बहती है पर एक तरफ जाकर थोड़ी अवरुद्ध हो जाती है. एक सखी के प्रति उसके मन में एक द्वंद्व बना ही रहता है. उसने प्रार्थना की, सद्गुरु ही उसे इस धर्म संकट से बचा सकते हैं. पर सद्गुरु तो यही कह रहे हैं, जो बाधा उसने स्वयं खड़ी की है उसे कोई दूसरा चाहकर भी नहीं दूर कर सकता, ईश्वर भी नहीं. वह उसकी आजादी में व्यवधान डालना नहीं चाहता. जिस दिन उसे स्वयं अहसास होगा कि इस द्वंद्व के चलते उसकी ऊर्जा का अपव्यय हो रहा है उस दिन स्वयं ही यह छूट जायेगा, उससे पहले नहीं और उसके बाद भी नहीं. आग में हाथ पड़ जाये तो स्वयं ही निकालने की सुध जगती है. 

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