Tuesday, September 29, 2015

निराला की कविताएँ - दूधनाथ सिंह


आज सुबह पाँच बजे के बाद उठी, रात सोने में थोड़ी देर हुई थी. उसके पूर्व लेटे-लेते ही ध्यान भी किया, जिसमें तन की हर कोशिका में जीवन महसूस किया. शरीर तरंगों से भरा हुआ है, कानों में तरह-तरह की आवाजें हर क्षण गूँजती हैं. आजकल एक सुगंध का अहसास भी कई बार होता है. मन  यदि एक बात पर अटक जाता है तो क्षण भर में ही वापस भी आ जाता है, भीतर एक शांति का अहसास होता है. इस समय शाम के साढ़े छह बजे हैं, अभी कुछ देर पूर्व ही वे सांध्य भ्रमण से वापस आये. आज सुबह गुरूजी को ध्यान कराते हुए देखा, सुना, हृदय भावों से भर गया. नीरुमाँ को सुना, दोनों से ही किशोर उम्र के लडकों ने अपने हृदय की भावनाओं को व्यक्त किया, इतनी कम उम्र में संत के प्रति श्रद्धा होना कितने सौभाग्य की बात है. कल हिंदी कार्यशाला अच्छी रही, उसने भी काफी कुछ सीखा.. कुछ देर पूर्व दीदी से बात की, उन्होंने कहा कि छोटी बहन की तबियत ठीक नहीं थी, वह अपने जॉब से भी खुश नहीं है. जब तक अपने भीतर ख़ुशी का स्रोत नहीं मिल जाता, तब तक बाहर की वस्तुओं से ख़ुशी मिलना सम्भव ही नहीं है. आज निराला की कविताओं पर ‘दूधनाथ सिंह’ की किताब पढनी शुरू की है. उनकी कविताओं को समझाते हुए, उनकी व्याख्या करते हुए कितने सुंदर ढंग से यह किताब लिखी है. आधुनिक लेखकों को उसने पहले कभी पढ़ा ही नहीं था, पहले काशीनाथ सिंह और अब दूधनाथ सिंह की किताब पढ़कर कविता लेखन के प्रति उसका प्रेम जैसे और बढ़ रहा है !

आज सुबह साढ़े चार बजे नींद खुल गयी पर उठते-उठते दस मिनट और लग गये. गुरू माँ कहती हैं नींद मृत्यु की निशानी है. वे सो रहे हैं अज्ञान की नींद में, कब जगेंगे ? दोपहर को निराला की किताब में मृत्यु की बात पढ़ते-पढ़ते भी उसे नींद आ रही थी, तमस छाया रहता है, मौसम भी ठंडा हो गया है. उसके बाएं कान में हर वक्त कुछ सुरसुराहट सी होती है, हवा की आवाज आती है. आज वस्त्रों को व्यवस्थित किया तथा अन्य सामान अल्मारी से बाहर किया. क्लब में एक कार्यक्रम है जिसमें उन्हें जाना है. जून तैयार हो चुके हैं. अज सुबह ‘आस्था’ पर कवि सम्मेलन में गरीबी, भूख और गरीबों की विवशता पर एक कानून के शिक्षक की कविता सुनी, हृदय द्रवित हो गया, लेकिन  चंद आँसूं जो वे गरीबी का वर्णन सुनकर बहते हैं, वे किस काम आते हैं उनके, वह कवि तो अपने तौर पर कुछ सार्थक कर रहा है, उसने गरीब बच्चों के लिए एक ट्रस्ट बनाया है. सुबह सद्गुरु को भी सुना, पिछले तीन-चार दिन रोज ही सुनती रही. वह मुम्बई में ध्यान-प्राणायाम शिविर में हजारों लोगों को अपनी उपस्थिति से लाभान्वित कर रहे थे. पूर्वोदय में कविताएँ भेजने के लिए ईमेल भेजा है, देखे क्या होता है. उसे एक सखी की बड़ी बिटिया के लिए एक कविता लिखनी है, कल उस सखी की शादी की वर्षगांठ भी है, उसके लिए भी. सभी के लिए उसके हृदय में ढेर सारी शुभकामनायें उमड़ रही हैं. उन दोनों के परिवारों के हर एक व्यक्ति के लिए.. सारे विश्व के लिए. उसका अंतर इस वक्त खाली है. खाली उर में ही प्रेम उमड़ता है.


अभी साढ़े चार हुए हैं शाम के और अँधेरा हुआ ही चाहता है. सर्दियां अब शुरू हो गयी हैं. स्वेटर, रजाई, हीटर, ब्लोअर अभी निकल चुके हैं, धूप अब सुहाने लगी है. उसका पेन कितना रुक-रुक कर लिख रहा है, जैसे कविता लिखने तथा टाइप करने का कार्य रुक-रुक कर चल रहा है. आज सुबह भगवद् गीता पढ़ते समय भीतर एक सत्य जगा, वह कर्ता नहीं है, आत्मा तो साक्षी मात्र है, वह कुछ नहीं करता. मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार तो करण हैं, वे कर्ता हो नहीं सकते तो फिर यह कर्ता है कौन ? कोई भी नहीं सारे कार्य अपने आप हो रहे हैं, वे यदि कर्ता बनेंगे तो भोक्ता भी उन्हें ही बनना होगा. कर्ता बनेंगे तो आत्मपद में स्थिति नहीं हो पायेगी. अहंकार जब तक बचा रहेगा तब तक आत्मा में स्थिति होना कठिन है. माना हुआ कल्पित ‘मैं’ ही कर्ता बनता है और फिर सुख-दुखी होता है. कितना हल्का हो जाता है मन जब उसे पता चलता है कि वह कर्ता नहीं है, मन खाली हो जाता है और खाली मन ही आत्मा को प्रतिबिम्बित कर सकता है. योग वशिष्ठ में भी ऐसा ही ज्ञान वशिष्ठ मुनि राम को दे रहे हैं. अद्भुत ज्ञान है यह, फल की इच्छा नहीं करें इससे भी आगे का ज्ञान है यह, जब कुछ किया ही नहीं तो फल की इच्छा कोई कर भी कैसे सकता है !

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