Monday, September 21, 2015

गोपी गीत का माधुर्य


वर्षा की बूंदों की आवाजें कितने भिन्न-भिन्न रूपों में कानों में पड़ रही हैं. जिस किसी जगह या वस्तु पर पड़ती हैं उसकी सतह के कारण उनकी ध्वनि बदल जाती है. यही बूंदें जब टीवी डिश पर पड़ती हैं तो वह सिग्नल लेना ही बंद कर देता है. इस समय घर में कितनी शांति है, रिमझिम के अलावा सारी आवाजें बंद हैं. हाँ..दूर से किसी बांसुरी की आवाज आ रही है. सासु माँ स्वेटर बना रही हैं, नैनी चुपचाप अपना काम कर रही है. उसके पैरों का दर्द अब ठीक है, आज डाक्टर के पास जाना है सारी रिपोर्ट लेकर. सुबह ध्यान में उतरते समय मन ने प्रश्न उठाया कि कौन है जो ध्यान करता है ? आत्मा तो नित्य आनंद रूप है, साक्षी है, द्रष्टा है, उसे तो कुछ करना ही नहीं है. कृष्ण ने गीता में कहा है कि कोई एक क्षण भी बिना काम किये नहीं रह सकता तो उनका तात्पर्य जीव से होगा, जीव जो मन, देह तथा स्मृतियों को धारण करता है. किन्तु सदा ही क्रिया संतप्त करती है और क्रिया हीनता संतृप्त करती है..आनंद के बिना कर्म भी अधूरे हैं. यदि अनावश्यक चेष्टा न हो, वाणी से व्यर्थ काम न हो तथा मन सदा सुमिरन में रहे तो कोई मुक्ति का अनुभव हर पल कर सकता है. उसका मन इस क्षण कृतज्ञता का अनुभव कर रहा है. जीवन का इतना सुंदर उपहार उसे मिला है, अस्तित्त्व ने इस पल उसे चुना है. स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए वह उसके माध्यम से प्रकट हो रहा है. इतने सारे नजारों की वह साक्षी है साथ ही साक्षी है उसकी भी जो भीतर छुपा है, हर शै के पीछे छुपा है. पर अब वह उससे छुपा नहीं है क्योंकि उसका होना ‘उसके’ होने से ही है, वह है क्योंकि ‘वह’ है, वह ‘वही’ है. वह स्वयं के माध्यम से स्वयं को व्यक्त कर रही है. इस क्षण उसे कितनी पावनता का अनुभव हो रहा है, पावनता...जो कितनी प्रकाश पूर्ण, कितनी तृप्त.. कितनी आनंद से भरी..ऐसे अनंत क्षणों से यह जीवन बना है. प्रभु की कृपा की छाया में वह पलती आई है. वह प्रभु जो अनंत है सबके भीतर समाया है ! आज से पूजा का अवकाश आरम्भ हो गया है. गुरूजी कहते हैं पूजा का अर्थ है पूर्णता से उत्पन्न कृत्य..वह पूर्ण है तो उसके सारे कर्म पूजा ही हुए. आज उन्होंने घर की वार्षिक सफाई का आरम्भ किया. घर साफ हो तो लक्ष्मी जी का प्रवेश होता है. टीवी पर जो कल ही नया आया है मुरारी बापू के गोपी गीत का प्रसारण हो रहा है. आज शाम को सत्संग है एक दक्षिण भारतीय सखी के यहाँ.

उस दिन उसे अपनी गुलामी का अहसास कितनी तीव्रता से हुआ. गुलामी से बड़ा कोई दुःख हो सकता है क्या ? मोह के कारण ही वे जीवन में दुःख पाते हैं. मोह के कारण ही उसे जीवन में सुख मिलता हुआ प्रतीत होता है. परिवार जनों के द्वारा, मित्र-संबंधियों के द्वारा तथा वस्तुओं के द्वारा जो सुख मिलता हुआ लगता है वह मात्र आभास है, वह दुःख ही है जो सुख का लबादा ओढ़े हुए आता है. जीवन को बनाये रखने के लिए वे न जाने कितनी बार असत्य का सहारा लेते हैं. जीवन तो उस परमात्मा की कृपा से चल रहा है, उन्हें जो कुछ भी प्राप्त हुआ है वह उनके ही कर्मों का फल है, उसके लिए उन्हें किसी की गुलामी करने की क्या आवश्यकता है ? माया का पर्दा आँखों पर पड़ा है तभी तो वे सत्य का साथ नहीं देते और बार-बार छले जाते हैं. दुःख से घबराकर गलत मार्ग पर चल देते हैं. जो कष्टों से घबराकर सत्य का मार्ग छोड़ देता है वह कभी कष्टमुक्त नहीं हो सकता. वे जिनकी गुलामी करते हैं, सोचते हैं उन्हें प्रसन्न कर लेंगे पर इस दुनिया में कोई क्या किसी को सदा के लिए प्रसन्न कर पाया है ? बार-बार वे डरते रहेंगे बार-बार अहसानों के बोझ तले कुचले जायेंगे, बार-बार वे वही गलतियाँ करते रहेंगे. कभी तो उनका सोया हुआ आत्म सम्मान जगे, कभी तो वे पूर्ण रूप से उस परमात्मा पर विश्वास कर सकें. उसी ने उन्हें इस जगत में भेजा है, उसके सिवा उन्हें किसी का आश्रय नहीं चाहिए, असत्य का तो बिलकुल नहीं, वे मुक्ति के अभिलाषी हैं !  


टीवी पर मुरारी बापू बोल रहे हैं. वे झकझोर देते हैं, कभी तो भीतर की सुप्त चेतना पूरी तरह से जागेगी, कभी-कभी करवट लेती है फिर सो जाती है. वे कब तक यूँ पिसे-पिसे से जीते रहेंगे. अब और नहीं, कब तक अहंकार का रावण भीतर के राम से विलग रखेगा, जीवन में विजयादशमी कब घटेगी. संत जन प्रेरित करते हैं, कोई जगे तो प्रेम से भरे, आनंद से महके.. वे जो राजा का पुत्र होते हुए कंगालों का सा जीवन जीते हैं. सूरज बनना है तो जलना भी सीखना पड़ेगा, अब और देर नहीं, न जाने कब मृत्यु का बुलावा आ जाये, कब उन्हें इस जगत से कूच करना पड़े, कब वह घड़ी आ जाये जब ‘उससे’ सामना हो तब वे क्या मुँह दिखायेंगे ? 

2 comments:

  1. बढ़िया रचना पढ़ने को मिली बहुत अच्छा लगा |

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  2. बहुत सुंदर ,बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.

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