Tuesday, September 8, 2015

गोहाटी का आश्रम


आज कृष्ण जन्माष्टमी है, भगवान कृष्ण के इस धरा पर प्रादुर्भाव का दिन ! उसने मन ही मन प्रार्थना की, कृष्ण की कृपा से उसके भीतर से प्रेम की किरणें फूटें, शांति और आनंद की वर्षा हो तथा उसका जीवन परहित के लिए हो. स्वार्थ जब रहेगा ही नहीं तो उसके लिए कोई प्रयास भी नहीं होगा. उसके छोटे-छोटे से कार्य भी परमात्मा की प्रसन्नता के लिए ही हों ! कल सत्संग में जाना है, उसने कृष्ण पर एक कविता लिखी है, लेकिन शायद ही पढ़े, क्योंकि भाव इतने प्रबल नहीं है उसमें. भावनाएं यदि पवित्र हों तो कविता स्वयं ही झरती है भीतर से, वह सहज होती है, उन्मुक्त होती है, उसमें कोई नियम नहीं होता..पर इसमें उसने कुछ शब्दों को बिठाया है. कृष्ण के प्रति उसका प्रेम आजकल शांत प्रेम में परिवर्तित हो गया है, उसमें उद्दात वेग नहीं है. कृष्ण उसे स्वयं से अलग नहीं लगते, भीतर एक अखंड शांति का अनुभव होता है. ध्यान में भीतर कण-कण में ऊर्जा का अनुभव होता है, इससे आगे जाने का रास्ता उसे नहीं मिल रहा है, शायद इसमें सबसे बड़ी रुकावट उसका स्वयं का मन ही बना हुआ है. इस मन को पूर्णतया समर्पित हो जाना होगा. उसने ईश्वर से अहंकार को चूर-चूर कर देने की प्रार्थना की.

आज मौसम में कुछ परिवर्तन हुआ है. कल रात को वर्षा हुई थी. अभी-अभी जून का फोन आया, उन्हें अगले हफ्ते कोलकाता जाना है. उसके लिये सूटकेस चाहिए था जिसमें दफ्तर से कुछ उपकरण ले जाने हैं. उसे उनका कोई भी काम करने में बहुत ख़ुशी होती है. कल शाम सत्संग के बाद मीटिंग थी, वहाँ से आने में देर हो गयी, जून घर में प्रतीक्षा कर रहे थे, उन्हें अच्छा नहीं लगा. मीटिंग में काफी बातें हुईं, एक कमेटी का निर्माण किया गया जिसमें उसका नाम भी है. उन्हें एओएल का काम आगे बढ़ाना है. प्रचार करना है, सद्गुरु के संदेश को सभी को सुनाना है. उन्हें कुछ ठोस कदम उठाने हैं जिसे यहाँ आर्ट ऑफ़ लिविंग की उपस्थिति स्पष्ट नजर आये. उन सभी के अंदर सेवा की भावना है पर उसे सही मौका चाहिए. गोहाटी में जो आश्रम बनने वाला है, उसके लिए धन भी एकत्र करना है. उसकी भाषा अत्यंत ही कठोर है तथा व्यर्थ के शब्द भी बहुत बोलती है. समाज में काम करते हुए उसे नम्र होना होगा तथा मितभाषी भी. आजकल घर में तो वह कम बोलती है. जरूरत से ज्यादा एक शब्द भी नहीं. सासु माँ को भी चुप रहकर अपनी ऊर्जा बचाने का अभ्यास हो रहा है. शाम को क्लब में गोलमाल है, ऊंटपटांग कहानी वाली हास्य फिल्म, वे जायेंगे और एकाध घंटा देख कर लौट आएंगे.

अधिकांश आकाश छूट जाता है
थोड़ी सी भूमि गुनगुनाता हूँ !

पता नहीं किसकी पंक्तियाँ हैं, वे उस आत्मा को जो आकाश सी व्यापक है कैद करना चाहते हैं पर वह पकड़ में नहीं आती. मन, बुद्धि से परे वह आत्मा सदा दूर ही रहती है, फिर हार कर जब मन का आश्रय छोड़ देते हैं तो भीतर से कोई गीत गाने लगता है, संगीत फूटने लगता है. ध्यान की दुनिया में कुछ भी थोड़ा सा नहीं, सब कुछ अनंत है..यह भान होते ही छोटापन खत्म हो जाता है. आत्मा का यह ज्ञान अद्भुत है. अभी वे नये-नये आध्यात्मिक दुनिया में प्रवेश कर तरहे हैं, कच्चे घड़े हैं, परिपक्व होने के लिए जगत में प्रवेश आवश्यक है, तभी उनकी परीक्षा होगी, राग-द्वेष से कितना मुक्त हुए यह जाना जायेगा.


आज शनिवार है, जून और नन्हा बैंगलोर में एक साथ हैं, सम्भवतः शाम को वे आश्रम  जायेंगे. आज सुबह से वर्षा हो रही है, मौसम में परिवर्तन होने से पक्षी भी प्रसन्न हैं ! अभी-अभी उसे ऐसा लगा कि एक सखी से बात करे पर फोन उठाने पर पता चला कि वह व्यस्त है, वह थोड़ी परेशान लगी आवाज से, हर घर में कुछ न कुछ तो घटित होता ही रहता है, पर उसका स्वयं का मन व्यर्थ ही चंचल हो उठा है. एक दूसरी सखी ने कुछ देर पहले फोन किया, इधर-उधर की बातें, यह जीवन है ही क्या ? ज्ञान होने से पूर्व वे उसे इधर-उधर की बातों में गंवा देते हैं और ज्ञान होने के बाद लगता है भौतिक और आध्यात्मिक में कोई भेद है ही नहीं, सब एक ही सत्ता से उत्पन्न हुए हैं. आज माँ ने सिन्धी कढ़ी बनाई है, अभी वह सिलाई करने बैठी हैं, इस उम्र में भी सूई में धागा डाल लेती हैं, उनके भीतर ईश्वर के प्रति सहज विश्वास है. सुबह सद्गुरु को सुना, वह कह रहे थे एक राह पकड़ो और उसी पर आगे चले चलो. उसे भी ध्यान की किसी एक विधि को पकड़ कर उसी को आगे ले जाना है. भीतर गहरी नीरवता है, कैसा अद्भुत सन्नाटा है ! भीतर का मौन कितना कितना मधुर है. जो भी भीतर घटता है वह शब्दों से परे है. यह जगत भी तभी सुंदर लगता है जब अंतर सुंदर हो ! जब तक कोई आत्मा के सौन्दर्य को नहीं जान लेता तब तक प्रेम को भी नहीं पहचान पाता. प्रेम का अनुभव किये बिना ही उसे इस जगत से जाना पड़ता है, वह प्यासा ही रह जाता है, जगत से सुरक्षा पाने की इच्छा उसे दूसरों का गुलाम बना देती है.     

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