उस दिन स्वप्न में ( एक-दो दिन पूर्व
) देखा कि एक मृत देह के साथ वे एक ही बिस्तर पर सो रहे हैं. वे जानते हैं कि यह
मृत देह है शायद उसकी बहन का, पर वे नींद में इतने मग्न हैं कि उठकर उससे अलग होना
ही नहीं चाहते, कैसा स्वप्न था वह ? उसे बचपन से ही एक मृत्यु की याद बेचैन करती
रही है, उसकी आठ वर्षीय बहन की मृत्यु जो रात में हुई और घर में सभी सो रहे थे.
माँ अकेली उस मरती हुई बच्ची के पास थी, रात को एकाएक वह चिल्लाई...गयी! सारे घर
में रोना-धोना मच गया. वह छोटी थी शायद पांच या छह वर्ष की. मृत्यु को नहीं जानती
थी पर इतने वर्षों तक वह दुखद स्मृति उसे बेचैन कर देती थी. उस स्वप्न के बाद से
जैसे मन से उस घटना का विलोप हो गया है, ऐसे ही एक बार बहुत बचपन में घटी घटना
पुनः स्वप्न में देखी और उसका असर जाता रहा. उसकी आत्मा उसके मन पर मरहम लगा रही
है, वह चेतना उसके मन का इलाज कर रही है. वह सद्गुरु से जुड़ी है, सद्गुरु परमात्मा
से जुड़े हैं तो परमात्मा ही है जो उसके भीतर से सारे कांटे चुन-चुन कर निकाल रहे
हैं. वह किसी महान उद्देश्य के लिए तैयार की जा रही है. उसकी निजी कोई चाह शेष
नहीं रही, चाह तो मन में होती है जो मन से पार चला गया हो, जो अमृत का स्वाद चख चुका
हो उसे इस नश्वर जगत से क्या मिल सकता है ! शाश्वत जीवन के द्वार पर खड़ी वह स्वयं
को नवीन अनुभव कर रही है. उसे बहुत कार्य करना है. प्रेम तथा सेवा के कार्य.
जिन्हें करने वाली वह नहीं, अर्थात उन सीमित अर्थों में नहीं जिसमें जगत उसे देखता
है. जगत अपनी राह चलेगा, वह उससे दूर निकल गयी है.
आज ध्यान करते हुए एक भीनी-भीनी मधुर( चम्पा के फूलों की सी ) गंध का आभास
हुआ, कैसा विचित्र अनुभव. परमात्मा की तरफ कोई कदम तो रखे, कैसे-कैसे अनुभव होने
लगते हैं. वे जितना- जितना भीतर से खाली
होते जाते हैं, चैतन्य उतना-उतना उसमें भरता जाता है. जब कोई इच्छा नहीं रहेगी तो
पुनः जन्म नहीं होगा, अभी तो न जाने कितनी इच्छाएं अवचेतन में दबी पड़ी हैं. चेतन मन
में इच्छाएं अब कम ही उठती हैं सिवाय उस परमात्मा की इच्छा के. इस जगत में इच्छा
करने योग्य एक वही तो है ! पर वह भी तभी मिलता है जब उसकी भी इच्छा न रहे... कल
उसने स्वप्न में एक संत महात्मा को देखा, जिन्हें देखते ही किसी पूर्वजन्म की
स्मृति हो आयी और भाव विह्वल होकर उनके चरणों पर गिर पड़ी. सम्भवतः सद्गुरु उसे
जगाने आए थे पर वह उसके बाद भी सोती रही. साधना के पथ पर जब उसने कदम रखा है तो
सबसे पहले यह लक्ष्य दृढ़ होना चाहिए कि उसे भाव शुद्धि, वाक् शुद्धि तथा कर्म
शुद्धि प्राप्त करनी है. आज सुबह सद्गुरु ने बताया कि जिसकी वाणी, भाव तथा कृत्य
तीनों शुद्ध होते हैं वही परमात्मा का साक्षात्कार कर सकता है. उसका लक्ष्य यही
है, ध्यान में गहराई आने से यह सहज ही होने लगता है. उसका एक कृत्य आज शुद्ध नहीं
रहा. अभी तक भी वह स्वयं को सहज रखना नहीं सीख पायी, सहयोग की भावना जरा भी नहीं
है अर्थात भाव भी शुद्ध नहीं हुए. नीरू माँ कहती हैं जिसके प्रति अपराध बनता है वह
शुद्धात्मा है यह ज्ञान न रहे तो प्रतिक्रमण ही एक मात्र उपाय है.
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