Wednesday, July 29, 2015

सत्यम..शिवम..सुन्दरम..


सद्गुरू से जुड़े रहना साधना में आगे बढ़ने के लिए प्रथम और अंतिम शर्त है. सद्गुरु दूर नहीं हैं, वह हृदय के बिल्कुल निकट हैं. हमारे स्वयं से भी निकट. उनसे मिलकर भी यदि जीवन में कुछ परिवर्तन नहीं हुआ तो व्यर्थ है वह जीवन. आज सुबह नींद देर से खुली, स्वप्न देखती रही कि आम खरीदे हैं पर उसमें रस नहीं है, एक छेद के जरिये सारा रस उसमें से पहले ही निचोड़ लिया गया है. अनार खरीदा है पर उसमें दाने नहीं हैं, ऊपर से छिलका सही-सलामत है. ऐसे ही तो वे ऐसे कार्य करते हैं जो ऊपर से भले दीखते हैं पर उनमें कोई सार नहीं होता. गुरू के साथ जुड़े रहो तो वह स्वप्नों में भटकने नहीं देता. उन्होंने कहा था कि स्वप्न से जैसे ही जगो तो उठकर बैठ जाओ, स्वस्थ हो जाओ, अपने आप में स्थित. आत्मा में स्थित. वहीं बोध मिलेगा, वहीं मुक्ति है, वही वास्तविकता है !

जैसा-जैसा शास्त्रों में लिखा है उसे वैसा-वैसा अनुभूत होता है. सत्य एक ही है वह जिसके भीतर प्रकट होगा, समान रूप से होगा. उसका मन आजकल कितना जीवंत रहता है. सदा तृप्ति और उछाह से भरा, पता नहीं भीतर क्या रिसता है और कौन उसका पान करता है, लेकिन एक निर्द्वंद्वता, निडरता तथा स्वतन्त्रता का अनुभव होता है, जैसे अब इस जहाँ में कुछ भी पाना नहीं है. आत्मा को क्या पाना है जो स्वयं ही सबका स्रोत है, जो नित्य है, अनंत है. आज दोपहर एक अंग्रेजी फिल्म देखी, जिसमें रोबोट मानवों पर हुकूमत करने लगते हैं, क्योंकि वे समझते हैं कि मानव अपना विनाश कर बैठेंगे, मानव ने जिन्हें बनाया वही मशीनें उस पर अधिकार करने लगी पर अंत में जीत मानव की हुई. मानव के भीतर दैवीय शक्ति है, प्रभु ने उसे बनाया है, वह भी अपने जैसा, ईश्वर का मित्र है वह.. यदि उसकी आज्ञा में रहे, पर अंततः जीत तो परमात्मा की ही होती है.

आज सुबह वह तीन घरों में गयी, एक के यहाँ किताब भेजी. दो ने मना कर दिया, एक ने लेकर कहा पैसे बाद में भिजवा देगी. एक और प्रति किसी परिचिता ने खरीदी, सेवा का यह यह काम करते हुए उसे बहुत ख़ुशी हो रही है, लोगों से बात करने का एक नया अनुभव. वह जो पहले लोगों से बात नहीं करती थी, मतलब की बात ही करती थी. अब अपने स्वाभिमान को ताक पर रखकर बात कर रही है. लोग तो सारे उसके अपने ही हैं. वे जो भी जवाब दें, उसे एक नया पाठ सीखने को मिल रहा है. इसी बहाने लोगों से उसकी जान-पहचान भी बढ़ रही है. मिलते-जुलते रहने से वक्त पर लोग काम आते हैं. ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ के लिए काम करते समय मन में ऐसा भाव भी है कि कुछ भी नहीं कर रही. जो कुछ भी हो रहा है वह अपने आप ही हो रहा है, किसी बड़े कार्य का छोटा सा हिस्सा ! एक परिचिता के पास गयी तो उसने अपना पूरा जीवन दर्शन सुना दिया. वे सभी ही तो ज्ञानी हैं, सदा एक-दूसरे को ज्ञान देते हुए. जून परसों आयेंगे, उनसे फोन पर बात हुई. वे ये जानते हुए भी कि वस्तुओं की वस्तविकता क्या है, उन्हें महत्वपूर्ण बनाते रहते हैं, क्योंकि वस्तुएं उनके जीवन में बाह्य ही सही रंग भरती हैं. जून उसके लिए और वस्तुएं ला रहे हैं. वे सभी सौन्दर्य के पुजारी हैं. उनका इष्ट देवता उनका प्रिय कान्हा भी तो सौन्दर्य का देवता है. सत्यं, शिवं, सुन्दरं की परिकल्पना कितनी अद्वितीय है, जो सत्य है, वही शिव है, जो शिव है  वही सुंदर है..पर जो सुंदर है वह शिव भी होगा इसमें संदेह हो सकता है...क्योंकि हर चमकती हुई चीज सोना नहीं होती.. .भारतीय संस्कृति पर निर्मल वर्मा का एक विस्तृत निबन्ध पढ़ा पर पूरा डूब कर नहीं, क्योंकि साथ-साथ माली के काम का निरिक्षण भी कर रही थी.  सुबह उठने से पूर्व फिर स्वप्न देखे, जो उस समय वास्तविक ही लग रहे थे. एक छोटी लड़की जो स्वप्न में मृत हो जाती है फिर जीवित और फिर एक जलती हुई देह का स्वप्न देखती है ..कितना अजीब था यह स्वप्न पर तब बिलकुल स्वाभाविक लग रहा था, उनका जीवन भी तो एक स्वप्न की तरह ही है, पल में बीत जाने वाला !


जून आज आ रहे हैं, फ्लाइट एक घंटा लेट है. अभी एक सखी से बात की, उसकी सासूजी परसों बाथरूम में गिर पड़ीं. बुढ़ापे की कमजोरी तथा भारी शरीर, कहीं जाने की जल्दी के कारण..तथा स्नानघर में में लोहे की बाल्टी थी, उन्हें थोड़ी चोट भी लग गयी है. उसने सोचा शाम को वे उन्हें देखने जायेंगे, यदि आज नहीं तो कल अवश्य ही. 

No comments:

Post a Comment