Monday, July 27, 2015

ए सर्च इन सीक्रेट इंडिया


लगता है उसकी विद्यार्थिनी आज फिर भूल गयी है. पिछले शुक्रवार भी वह नहीं आई थी. उसे एक कविता लिखनी है ‘विश्व विकलांग दिवस’ के लिये समय मिल जायेगा. शाम को क्लब जाना है कोरस के अभ्यास के लिए. रात को एक सखी के यहाँ खाने पर जाना है, उसकी शादी की सालगिरह है. सुबह उठने से पूर्व कितने स्वप्न देखे. बर्फ गिर रही है, आकाश एक बड़ी सी फिल्म की स्क्रीन बन गया है, वहाँ लोग एक दूसरे पर बर्फ के गोले बनाकर डाल रहे हैं. सब कुछ इतना स्पष्ट था जैसे सामने घट रहा हो. रात को देर तक नींद नहीं आई, पर इससे उसे कोई परेशानी तो महसूस नहीं होती, शायद वह जगते हुए भी सोती रहती है अर्थात सोते हुए भी जगती है, शायद ध्यान करने से ऐसा होता है. आज नीरू माँ का कार्यक्रम देखा, ऑंखें भर आयीं. कितनी करुणा, कितना प्रेम है उनके भीतर. प्रश्न पूछने वाले तरह-तरह के प्रश्न पूछते हैं पर बिना जरा भी विचलित हुए सभी को जवाब देती हैं. जैन मुनि आचार्य महाप्राज्ञ ने बताया मस्तिष्क का एक प्रकोष्ठ विकसित हो जाय तो मानव का व्यवहार ही बदल जाता है. भीतर की सुप्त शक्ति जब तक जाग्रत नहीं होती वह अज्ञान से मुक्त नहीं हो पाता. उसे जाग्रत करने का पुरुषार्थ तो करना ही है, उसे भाग्य पर नहीं छोड़ा जा सकता. सद्गुरु के बताये मार्ग पर तो चलना ही पड़ेगा. कल पता चला बड़ी भाभी के बड़े भाईसाहब नहीं रहे, उन्हें फोन करना है. कल से नन्हे के इम्तहान हैं. वह कुछ पल नियमित जप करता है. उसे शांति का अनुभव होता है. जब मन शांत होता है तो आत्मा का सहज स्वभाव मुखर हो जाता है. मन को अपने सही स्थान पर रखना ही साधना है.

कल का कार्यक्रम ठीकठाक हो गया. आज शाम को सत्संग में जाना है, कल एक शादी में तथा परसों तीन दिसम्बर है, नेहरू मैदान जाना है. आचानक ही उनके शामें व्यस्त हो गयी हैं. सुबहें और दोपहर तो पहले से ही थीं. कल सद्गुरु को समर्पित उसकी पुस्तिका की उन्नीस प्रतियाँ निकल गयीं, अगले हफ्ते.. और इसी तरह अगले कुछ हफ्तों में और भी लोग इसे लेकर पढ़ेंगे. अभी-अभी वह धूप में गयी, दिसम्बर में भी धूप इतनी तेज है कि दस मिनट से अधिक उसमें नहीं बैठा जा सकता. इसी तरह संसार रूपी धूप में भी देर तक अब रहा नहीं जाता, आत्मा की छाँव में लौट-लौट कर आना होता है, तभी भीतर शीतलता छायी रहती है. ऐसी शीतलता जो अलौकिक है, दिव्य है, प्रेम से पूर्ण है !

पिछले दो दिन फिर नहीं लिखा, रात्रि के पौने आठ बजे हैं. मन में विचार आया कि दिन भर का लेखा-जोखा कर लिया जाये. सुबह उठते ही जैसे पहले अधरों पर प्रार्थना आ जाती थी, “दूर दुनिया की हर बुराई से बचाना मुझको, नेक जो राह हो उस राह पर चलाना मुझको” अब नहीं आती. रात्रि को आने वाले स्वप्न भी पहले से आध्यात्मिक नहीं रह गये हैं, लेकिन होते बहुत अद्भुत हैं. आज दोपहर को Paul Bruntun की पुस्तक A search in secret india पढ़ती रही. शिक्षक ने कहा, विलम्बित ठीक से नहीं हो रहा है, अभ्यास बढ़ाना होगा. शाम को कोपरेटिव जाकर नन्हे के लिए कुछ समान खरीदा, वह परसों आ रहा है, उसकी आलमारी भी पिछले दिनों ठीक कर दी थी. 

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