आज एक परिचिता का फोन आया. तीन दिसम्बर को ‘विश्व
विकलांग दिवस’ है, उसे कुछ स्लोगन लिखकर तख्तियां बनानी हैं. उस दिन नेहरू मैदान
में कार्यक्रम है. उससे पूर्व एक बार ‘मृणाल ज्योति’ भी जाना है. आज सत्संग थोड़ी
देर ही सुन पायी. सब बातों का सार तो यही है कि “वे किसी को पीड़ा न पहुंचाएं,
दूसरों के काम आयें और अहंकार न करें. आत्मा का क्या मान-अपमान और शरीर तो जड़ है उसका क्या मान-अपमान ! ईश्वर से संयोग ही
वास्तविक सुख है उससे वियोग ही वास्तविक दुःख है !”
आज सुबह ध्यान के बाद उसे लगा जैसे भीतर से कोई कह रहा है कि उसे कुछ वक्त
पूरी तरह माँ के साथ बिताना चाहिए. वह ऊँचा सुनने लगी हैं, सो बातचीत चाहेन हो पर
साथ तो रहे. यूँ तो सुबह की चाय, नाश्ता, दोनों वक्त भोजन था पाठ सुनाते वक्त साथ
रहता है पर तब मुख्य कार्य को ही प्रमुखता दी जाती है, ऐसा समय जब दुनिया का कोई
भी कार्य प्रमुख न हो, बस वे ही प्रमुख हों. लगता है उनका हृदय ऐसी तरंगें भेज रहा
है तभी उसे ईश्वर ने ऐसी प्रेरणा दी है. भीतर की आवाज इतनी स्पष्ट रूप से कम ही
सुनाई देती है. सुबह सद्गुरु को टीवी पर देखा व सुना. वह कह रहे थे, सेवा करो तो
तुम मेरे निकट आ सकते हो. वह तो सेवा किये बिना भी स्वयं को उनके निकट ही मानती
है. वह ईश्वर की नाईं सर्व व्यापक हैं. उनकी चेतना इतनी विशाल हो गयी है कि उसमें
सब समा गया है. वह उस हवा की तरह हैं जो परमात्मा रूपी फूल की खुशबू उन तक लाती
है. वह उन्हें परिष्कृत करते हैं. वह पत्थर को तराश कर हीरा बनाते हैं. वह पुकार
सुनते हैं. आज तक जितने भी सद्गुरु संत हुए हैं, वे सभी परमात्म स्वरूप होकर सदा विद्यमान
हैं. कल उसने सच्चे हृदय से नानक को याद किया तो ध्यान में फूलों और प्रकाश
बिन्दुओं की अनुपम छवि उन्होंने दिखाई. उन्हें शरण भर लेनी है ! जैसे शक्कर को
मिठास खोजनी नहीं पड़ती, वैसे ही शरण में गये हुए को सुख की खोज नहीं करनी है.
पिछले दिनों दिनचर्या में कुछ ढील आ गयी थी, आज से पुनः व्यवस्थित करने का
प्रयास है. योगासन भी रोज नहीं कर पा रही थी जो अति आवश्यक है. तन स्वस्थ होगा तो
मन स्थिर होगा, ध्यान होगा तथा सेवा होगी. ‘साहित्य सेवा’ भी तो एक सेवा है.
बच्चों को पढ़ाना भी सेवा है. कल शाम को पुस्तकालय से दो पुस्तकें लायी है. क्लब की
पत्रिका के लिए एक लेख लिखना है, अध्यात्म उसके हृदय के निकट का विषय है, उसी पर
लिखे तो अच्छा रहेगा. आजकल क्लब में गाने का अभ्यास चल रहा है. अगले हफ्ते मीटिंग
है. उसे कविता पाठ भी करना है. उसके लिए कविताओं का चुनाव भी करना है. मौसम वर्षा
के कारण ठंडा हो गया है, बगीचे में सब्जियों और फूलों की पौध लग गयी है. अब वर्षा होने
से भी कोई परेशानी नहीं होगी. वैसे तो उसकी सारी परेशानयों को प्रभु ने एक साथ ही
दूर कर दिया है. जब उसका कुछ रहा ही नहीं तो दुःख क्या ? अब उसके सिवाय अंतर में
कोई दूसरा नहीं रहता ! आज जून ने लंच में गोभी पुलाव बनाने को कहा है.
बहुत बहुत आभार !
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