ईश्वर उनका अन्तरंग है, उसकी
उपासना करने के लिए विधि विधान की नहीं भाव भरे हृदय की आवश्यकता है. सहज रूप से
जब अंतर में उसके प्रति प्रेम की हिलोर उठे तो उसी वक्त पूजा हो गयी, फिर
धीरे-धीरे यह प्रेम उसकी सृष्टि के प्रत्येक प्राणी के प्रति उत्पन्न होने लगता
है, सभी में उसी के दर्शन होते हैं. कल शाम को उसे सड़क पर साइकिल पर जाते एक हॉकर को देखकर
उसे बुलाकर कुछ देने का मन हुआ, शुद्ध प्रेम के कारण, पर उसने स्वयं को रोका
क्योंकि बिना कुछ काम कराए वह शायद कुछ लेना पसंद भी नहीं करता और जून को उसकी इस
बात के पीछे की भावना भी समझ में नहीं आती. ...और आज सुबह एक दिवास्वप्न देखा कि
उसे ईश्वर प्राप्ति हो गयी है और..खैर, दिवास्वप्नों की बात यहीं छोड़ दे. अभी बहुत
सफर तय करना है. एकांत में रहे तो ज्ञान सदा साथ रहता है. मन प्रसन्न व मस्तिष्क
उद्वेग रहित, स्पष्ट..लेकिन जब इस ज्ञान को व्यवहार में लाने का समय आता है तो मन
पुराने संस्कारों के कारण विक्षेपित हो जाता है. सारा ज्ञान कुछ पल के लिए तो धरा
ही रह जाता है, इतना अवश्य है कि शीघ्र ही कोई सचेत करता है पर तब तक वह क्षण गुजर
चुका होता है. यह भी सही है कि पहले की तरह बाद में मन शीघ्र संयत हो जाता है, रेत
पर पड़ी लकीर की तरह..पर उसे तो अपने मन को पानी की धार सा बनाना है जिस पर कोई
लकीर पड़े ही न. अपने मन के विश्वास को, सरलता को बचाकर रखना है. आज भी वर्षा
बदस्तूर जारी है. ‘जागरण’ में नारद भक्ति सूत्र पर चर्चा हो रही है. उसका भी अनुभव
है कि जब कोई ईश्वर को याद करता है उसी क्षण वह जवाब देता है. पर जब कोई अभिमान वश
या अन्य किसी कारण से उसे भुला देता है और दुःख में होता है तो वह नहीं आता अर्थात
मन उसे ग्रहण नहीं करता. इसका अर्थ हुआ कि यदि लगातार उसका सान्निध्य चाहिए तो
ध्यान भी अनवरत चलना चाहिए. एक पल का भी विस्मरण पुनः उसी स्थिति में ला देता है.
आज सुबह छोटी बहन को फोन किया उसका जन्मदिन है, बड़ी बिटिया को स्कूल छोड़ने जा
रही थी सो थोड़ी देर ही बात हो सकी. दोनों ननदों से भी बात हुई, छोटी का स्वास्थय
ठीक नहीं है. बड़ी ने बताया ननदोई जी मुम्बई में रहने लगे हैं, शनिवार को घर आते
हैं. घर-बाहर के सारे कार्य उसे खुद ही करने होते हैं. सासु माँ आजकल आयी हुई हैं,
इस वक्त टहलने गयी हैं. कल क्लब में लेडीज क्लब की चेयर परसन से मिलना हुआ, उनकी
बातें सुनीं, आत्म विश्वास से परिपूर्ण ! कल उसने पत्र लिखने शुरू किये थे, अभी
कुछ शेष हैं, कुल नौ पत्र लिखने हैं. आज सुबह ‘जागरण’ में दिल का ताला खोलने की
चर्चा हुई, ताला जो ममता का है और जिसे खोलना वैराग्य से है. उसने प्रार्थना की,
कृष्ण सदा उसकी स्मृति में रहें, वह उसे न भूले और साधना के पथ पर आगे बढ़े, ऐसा
संकल्प करे. संकल्प उसका और बल परमात्मा का. उसी की कृपा होती है तो साधना का
सामर्थ्य जगता है !
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