Wednesday, March 11, 2015

शरदकाल का चन्द्रमा


आज बाबाजी ने उसे जन्मदिन की बधाई दी ! वायु सुखदायी हो ! आकाश सुखदायी हो ! जल सुखदायी हो ! पृथ्वी सुखदायी हो !  अग्नि सुखदायी हो !  जन्मदिन की बधाई हो ! सुबह-सुबह ससुराल से फोन आया फिर दीदी, भाई-भाभी, पिता जी व बड़ी ननद सभी ने जन्मदिन की शुभकामनायें दीं. जून और नन्हे ने भी बधाई दी. नन्हे का रिजल्ट अच्छा रहा है वे सभी खुश हैं, उसकी मेहनत का परिणाम अच्छा होना ही था. आज बाबाजी ने कहा, दान देना अच्छा है और जन्मदिन पर दान देना और भी अच्छा है. गुरुमाँ ने बताया यदि कोई दुखी है तो अपने आसपास दुःख ही फैलाता है, जिसके पास जो होगा वही तो बांटेगा. मन रूपी सागर पर जब ईर्ष्या और क्रोध रूपी फेन न हो तो जल कितना शांत हो जाता है. कल शाम योग वशिष्ठ पढ़कर उसके मन की भी वही स्थिति हो गयी थी. मुक्त, निर्विचार, शांत और स्थिर..मन की यही अवस्था सम्भवतः आत्मा की स्थिति है क्योंकि उस स्थिति को महसूस ही किया जा सकता है. वह स्थूल नहीं है, अति सूक्ष्म है और व्यापक है शरदकाल के चन्द्रमा की भांति. योग वशिष्ठ अद्भुत ग्रन्थ है. बाबाजी ने भी कहा कि वासना ही दुखों की जड़ है. ‘तू भी अपने मन की काढ़ ले भाया’ अर्थात तू भी हृदय से कामनाओं को निकल फेंक. इच्छा जब तक बनी रहती है दुःख ही देती है, लेकिन कृष्ण से मिलने की इच्छा में जो मीठी पीड़ा है वह सुख ही देती है. ईश्वर के बिना इस जगत में कुछ भी पाने के योग्य है क्या ? सब कुछ छोड़ने के ही योग्य दिखाई पड़ता है !

जून का आरम्भ ! मौसम गर्म है और उमस भरा भी, यानि कि सब कुछ सामान्य है. गला थोड़ा सा खराब है पर कल की परीक्षा की वजह से ज्यादा लग रहा है वर्ना तो इतनी परेशानी उसके लिए न होने के बराबर ही थी. सुबह-सुबह अचानक अध्यापक आ गये, वह तैयार नहीं थी. नन्हा एक मित्र के साथ स्कूल गया है, मार्कशीट व फॉर्म दोनों लेन हैं. माली घर गया हुआ है, लॉन की घास बड़ी हो गयी थी सो जून ने एक आदमी को भेजा है जो उम्र में बड़ा है पर मशीन बड़ी अच्छी तरह चला रहा है.  आज बाबाजी को कुछ ही देर सुन पायी. उन्होंने कहा ईश्वर रसमय है और मानव भी रस ढूँढ़ता है पर गलत जगह, जो मिलता नहीं. अस्तित्व उसे उन्नत बनाना चाहता है, वह विपरीत परिस्थितियों में रखकर उसे योग्य बनाना चाहते हैं. गुरू माँ की तरह दुलारते हैं, रास्ता दिखाते हैं, इस तरह ज्ञान देते हैं जो उसकी समझ के अनुसार हो, प्रकृति के अनुसार हो और धीरे-धीरे वह वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त कर ले, जहाँ समता की निर्मल धारा है, जहाँ स्थित होकर सुख-दुःख नन्हे लगते हैं, उनमें वे फंसते नहीं, जहाँ सहज रूप से जीवन बहता चला जाता है !

कल परीक्षा से वापस आकर मन कैसा तो हल्का होगा था जैसे कोई बोझ सिर से उतर गया हो. आज भी धूप खिली है और मन का कमल भी ! जीवन कितना अनमोल है और कितना मोहक, कितना मधुर ! कान्हा की वंशी की तरह, उसकी मुस्कान की तरह और उसकी चितवन की तरह ! मन में कोई उद्वेग न हो कोई कामना न हो तो मन कितना हल्का –हल्का रहता है. किसी से कोई अपेक्षा न हो, स्वयं से भी नहीं बस जो सहज रूप में मिलता जाये उसे ही अपने विकास में साधक मानते चले. वह लिख ही रही थी कि एक परिचिता आ गयी उसकी बातों से लगा वह अपने परिवार के प्रति अविश्वास से भरी थी, ऐसे लोगों को समझाना पत्थर से टकराने जैसा ही है, वह उसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करेगी, शायद कोई चमत्कार हो जाये ! वह गयी तो लंच का समय हो गया था. उसके बाद बहुत दिनों से पेंडिग पड़ी सफाई का कार्य और फिर शाम होने को आ गयी. जून के एक सहकर्मी के वृद्ध पिता अस्पताल में हैं, उसने उनके लिए भी प्रार्थना की, ईश्वर उन्हें शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करेंगे, हर एक को उस पीड़ा से गुजरना है. जन्म और मृत्यु के बीच बीमारी और बुढ़ापा सभी को पार करना ही है.    



  

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