आज सुबह पिताजी व छोटे भाई
से फोन पर बात की. दोनों ने टीवी पर आने वाले आध्यात्मिक प्रवचनों की बात की. उस
पर ईश्वर की कृपा हुई है कि वह अपनी पूरी शक्ति और श्रद्धा के साथ यह यात्रा कर
रही है. नित नये-नये अनुभव होते हैं. कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे वे पहले से ही तय
हों. सभी कुछ सही समय पर होगा, ठीक होगा, कोई यह आश्वासन देता रहता है. उसकी
इच्छाएं अपने आप पूरी होती प्रतीत होती हैं. सद्गुरु और सद्शास्त्र के प्रति
कृतज्ञता की भावना बढ़ती जाती है. मन संतुष्ट रहता है जैसे कोई भौतिक इच्छा न रह
गयी हो और हो भी तो उसका पूरा होना या न होना दोनों ही बराबर हैं. संसार का कोई भी
सुख आकर्षित नहीं करता जितना की ईश्वर का विचार और उससे मिलन की ललक ! ईश्वर ही
उसे निर्देशित कर रहे हैं, वही उसका मार्ग सुगम बना रहे हैं तभी तो समय भी है,
स्थान भी है, शास्त्र भी हैं, सद्गुरु भी हैं. सभी कुछ उसके अनुकूल कर दिया है उस
प्रभु ने. जून भी इसी मार्ग पर चल पड़े हैं चाहे अनजाने ही सही. दृढ़ संकल्प हो और
एक मात्र यही संकल्प हो तभी सफलता सम्भव है. धैर्य भी उतना ही चाहिए तथा प्रतिक्षण
सजग भी रहना होगा. श्रद्धा अटूट हो तो उस का हाथ सर पर रहेगा, वह इसी तरह उनके
मार्ग को सरल करता जायेगा. उसकी स्मृति ही इतनी सौम्यता भर देती है हृदय में कि
उसका साक्षात्कार कितना अभूतपूर्व होगा !
ईश्वर हर क्षण उसके साथ है, वह कितने विभिन्न उपायों से अपनी उपस्थिति को जता
रहा है. सद्गुरु भी प्रेरणादायक वचन बोल रहे हैं. साधना के पथ पर कैसे चला जाये,
ध्यान कैसे किया जाये, इसके सूक्ष्म तरीकों की चर्चा कर रहे हैं. सारी बातें जैसे
किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार स्पष्ट होती जा रही हैं. सुबह ध्यान में
कोई चेहरा दिखा, स्पष्ट नहीं था. आँख बंद करते ही अथवा खुली रहने पर भी अब वस्तुएं
अपने वास्तविक रूप में दिखाई देने लगी हैं. धीरे-धीरे उस आवरण को ईश्वर अपनी कृपा
से हटाना चाहते हैं. उसे पूरा सहयोग देना है, शुभ संकल्प करके मन को स्थिर रखना
है, बूढी को प्रज्ञा में बदलना है. मन ध्यानस्थ रहेगा तो उस प्रभु को आने का मार्ग
मिलेगा अन्यथा तो हजारों हजार विचार, वासनाएं, इच्छाएँ आदि सत्य से दूर रखती हैं.
सत्य पर चलना हो अथवा सत्य को पाना हो तो मन को खाली करना होगा. सद्गुरुओं के वचन
अब स्पष्ट होने लगे हैं. भौतिक इच्छाओं में कोई सार नहीं है, जो सुख इनसे मिलता है
वह क्षणिक होता है किन्तु अध्यात्मिक सुख अनंत है उस अनंत प्रभु की तरह. उसे पाना
ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए. जीवन अमूल्य है क्योंकि इसी में वे परम
सत्य को पाने की चेष्टा कर सकते हैं, पा सकते हैं. वह उनके निकट से भी निकटतर है
केवल मिथ्या अहंकार का पर्दा बीच में पड़ा है.
आज सुबह एक घंटा संगीत का अभ्यास किया. कपड़े प्रेस किये, भोजन की तैयारी की,
इस मय साढ़े नौ बजे हैं. एक सखी का फोन आया. धूप तेज है उसने मौसम की जानकारी माँगी
तो नूना ने कहा की मौसम सुहाना है..खैर मौसम के मिजाज तो बदलते रहते हैं. उन्हें
अपने भीतर वह धुरी खोज निकालनी है जो अचल है, अडिग है, जिसका आश्रय लेकर वे दुनिया
में किसी भी ऊँचाई तक पहुंच सकते हैं. उसी एक का पता लगाने योगी भीतर की यात्रा
करते हैं. उस स्थिति की कल्पना ही कितनी सुखद है. स्थिर मन ही उस बिंदु तक ले जा
सकता है जहाँ जाकर कुछ पाना शेष नहीं रह जाता. जहाँ जाकर लौटना नहीं होता. उसकी
झलक तो उन्हें अब भी मिलती है पर यह अस्थायी होती है, संसार पुनः अपनी ओर खीँच
लेता है.
No comments:
Post a Comment