Tuesday, March 17, 2015

टिंडे की सब्जी


अभी बहुत दूर जाना है, सहिष्णुता की बहुत कमी है. आसक्ति अभी बनी हुई है, लोभ भी बरकरार है और वाणी पर संयम भी नहीं है. ऐसे में ध्यान का क्या लाभ मिलने वाला है. सुबह-सवेरे ही गुरू माँ ने कहा, गलती करो मगर होश से, तो थोड़ी सांत्वना मिली है क्योंकि पूरे वक्त उसे यह पता था कि जो हो रहा है वह ठीक नहीं है यानि होश तो था, अब आगे ऐसी भूल नहीं होगी. कल शाम भजन संध्या में गयी अच्छा अनुभव था. नाम संकीर्तन के द्वारा भी उससे जुड़ा जा सकता है, कृष्ण हृदयों से राग-द्वेष निकाल देते हैं, जब उसका नाम जिह्वा पर नृत्य करता है. असत संग का त्याग करना है, जो भी लक्ष्य से दूर ले जाये वही असत है. कल दोपहर को एक नया अनुभव हुआ बाथरूम में कपड़ों का ढेर उसके देखते-देखते एक निर्मल आभा से युक्त हो गया और एक बार तो हिलता हुआ भी प्रतीत हुआ. उसकी आँखों से कुछ अन्य तरंगें भी निकलने लगी हैं शायद. गुरूजी कहते हैं अनुभवों के पीछे नहीं जाना चाहिए.

आज ‘मृणाल ज्योति’ जाना है, बच्चों को योग सिखाने. मौसम सुहावना है, संगीत की कक्षा हुई. पिछले हफ्ते अभ्यास ठीक से नहीं कर पायी थी, ध्यान में ज्यादा वक्त चला गया, कई बार पुस्तक पढ़ते-पढ़ते ही भाव ध्यान घटने लगता था. ‘ध्यान’ अब एक स्वाभाविक कार्य लगता है जैसे यह उतना ही सामान्य हो जितना भोजन करना. अभी दोपहर के भोजन की थोड़ी सी भी तैयारी नहीं हुई है, नैनी टिंडे काटकर रख गयी है, जो जून कल लाये थे. कल ही वह ढेर सारे आम भी लाये थे. नन्हे को रात को देर तक पढने की आदत है. कई बार लाइट जलाकर ही सो जाता है सो जून ने उसके नॉवल वापस करने के लिए अपने आपस रख लिए थे, पर उसे यह बात नहीं भायी, बहुत नाराज हुआ और सुबह बिना बात किये ही स्कूल चला गया. वे भी कभी माँ से ऐसे ही नाराज हो जाते होंगे. स्कूल से वापस आने तक सब भूल चूका होगा. उन्होंने उसकी किताबें वापस भी रख दी हैं. जून अपने लिए एक तकिया लाये पर वह भी उन्हें अधिक माफिक नहीं आया. पिछले दिनों तकिये की वजह से उनकी गर्दन में दर्द हो गया था. परसों विभाग में उनका एक प्रेजेंटेशन था, अच्छा रहा. कल से वह रह-रह कर सिर के दायें भाग में कुछ सुरसुरी सी अनुभव कर रही है शायद ‘ध्यान’ की वजह से. ईश्वर उसके साथ है जो भी होगा या हो रहा है उनकी देख-रेख में ही हो रहा है !

जुलाई का प्रारम्भ ! मौसम बरसात का है, वर्ष रात को हो चुकी है, सभी कुछ साफ और धुला-धुला सा है. मन भी ईश्वर की भक्ति रूपी जल से धुलकर इस वक्त तो स्वच्छ  प्रतीत हो रहा है लेकिन कब, कैसे और क्यों और कहाँ इस पर मैल का छींटा लग जाता है, पता नहीं चलता, कब सिलवटें पड़ जाती हैं, पड़ने  के बाद तो लेकिन फौरन पता चल जाता है. एक पल भी नहीं लगता इसे निस्तेज होते हुए. .०००१ % भी यदि स्वच्छता घटे तो अहसास फौरन दिलाता है भीतर स्थित परमात्मा रूपी मित्र, वह तो हर क्षण सजग है न. बहुत बचा-बचा कर रखना पड़ता है, व्यर्थ की बातचीत नहीं, व्यर्थ का कुछ भी नहीं. आज सुबह दीदी का फोन आया, वे भांजियों के ब्याह की बात बता रही थीं. अगले डेढ़-दो वर्षों में दोनों की अथवा एक की तो शादी करने का वे इरादा रखते हैं. छोटे भांजे का दाखिला दिल्ली के एक कालेज में हो गया है. पर अभी वह चंडीगढ़ में बीटेक के दाखिले का इंतजार भी कर रहा है. कल शाम को सासु माँ व छोटी ननद की अस्वस्थता की खबर भी मिली. छोटी बहन इसी माह पूना जाने की उम्मीद रखती है. उस दिन चचेरे भाई का खत आया था, उसकी भाषा अच्छी है, विचार भी सधे हुए हैं पता नहीं क्यों उसने अपने शारीरिक रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया, गरीबी को इसलिए अभिशाप कहते हैं. नन्हे की फिजिक्स की कोचिंग कल समाप्त हो गयी, अगले टीचर गणित आएंगे. वह अपने मन की करता है, आजाद ख्याल किशोर है. जून और वह दोनों ही उसे बहुत प्यार करते हैं और दो वर्ष वह उनके साथ रहेगा फिर तो पढ़ाई  के लिए उसे बाहर जाना है, हो सकता है तब उसे उनका टोकना याद आए कि वे उसके सुधार के लिए ही उसे सन्मार्ग पर लाने के लिए ही टोकते हैं ! आज दोपहर एक सखी और उसका पुत्र आ रहे हैं राखी बनवाने.     


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