Friday, January 9, 2015

ईश्वर का विधान


विवेक रूपी बाण और वैराग्य रूपी धनुष सदा अपने साथ रखना है, जैसे ही कामना रूपी राक्षसी प्रकट हो तो उसका विनाश किया जा सके. ईश्वर की भक्ति का अर्थ है माया से युद्ध, मन की शक्ति का विकास ईश्वर भक्ति में ही होता है. कल उसने चौथी बार सुदर्शन क्रिया की. हर बार की तरह कल भी अतीन्द्रिय अनुभव हुआ. सुख की अनुभूति तो हुई ही फिर स्लेटी फूलों के मध्य नील रंग का कमल दिखा जो बेहद चमक लिए था, फिर कई रंगों के प्रकाश दीखते रहे. कल की क्रिया के दौरान एक बार भी भय का अनुभव नहीं हुआ और समय भी बहुत कम लगा. कुछ देर और क्रिया चलती तो ठीक था पर बुद्धि में अनाग्रह रहे तो ही उचित है. कल योग शिक्षक से उसने कहा कि उसे लग रहा है आज परमात्मा से उसका appointment है. और वह कल उस क्षण से उसके साथ है, बल्कि उसके पहले से ही, हर पल हर क्षण उसके साथ है, वह ख़ुशी बनकर उसके पोर-पोर में समा गया है. सुदर्शन क्रिया में सचमुच सु-दर्शन होते हैं, अद्भुत अनुभव होते हैं. श्री श्री के प्रति मन कृतज्ञता से भर जाता है और उनके योग शिक्षक के प्रति भी. जीवन में एक उजाला बनकर, आनंद का स्रोत बनकर वह उनके जीवन में आए हैं. जून का कहना है कि वे उन्हें एक बार फिर खाने पर बुलाएँ. इस समय साढ़े दस बजे हैं, सब कुछ कितना शांत लग रहा है. आज एक सखी के जन्मदिन की पार्टी में जाना है.

मन प्रशांत होगा तभी उत्तम सुख की प्राप्ति होगी. संशय, आलस्य, प्रमाद से विमुक्त मन ही शांत होगा. शांत मन ही प्रसन्न रहेगा और यही प्रसन्न मन ही ईश्वर को पा  सकता है. वह देह से स्वयं को पृथक जानता है. स्वयं को आत्मा के स्तर पर ले जाकर परमात्मा के सान्निध्य का सुख प्राप्त करता है. वह पूर्ण अमृत का स्वाद लेता है, उसके आनंद की निरंतर वृद्धि होती है. प्रसन्न रहना ही ईश्वर की सबसे बड़ी पूजा है. वह ईश्वर जीवन के टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर चलने की समझ देता है, पग-पग पर उनका हाथ थाम लेता है, वह नितांत अपने से भी अपना ईश्वर ही सच्चा मित्र है. उसका नाम ही अंतर्मन को वर्तमान की शांत जलधारा पर स्थिर रखता है. ऐसे प्रभु का सत्संग गुरू कृपा से आज शाम उन्हें प्राप्त होने वाला है.

अभी कुछ देर पूर्व योग शिक्षक से बात हुई, उनका जन्मदिन पहली जुलाई को है. अभी वह ऋषिकेश जायेंगे फिर डिब्रूगढ़ और फिर तेजपुर ‘साधना’ के लिए, और कुछ करने की आवश्यकता भी नहीं है. मन को पवित्र रखने तो सब कुछ अपने आप होता जाता है. ईश्वर हर जगह है उसको देखने के लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं, सभी में ईश दर्शन करके सभी को अपने समान जानकर कोई ईश्वर की अनुभूति कर सकता है. कल शाम क्लब में योग शिक्षक को सुना, फिर एक सखी के यहाँ उनके भजन सुने. एक व्यक्ति इतना शांत, इतना पवित्र, इतना मधुर, समदर्शी और भक्तिभाव से पूर्ण हो सकता है, गुरू के सभी लक्षण उनमें हैं. मन श्रद्धा से भर जाता है. आज सुबह से ही वर्षा हो रही है, जीवन में भी प्रभु प्रेम की वर्षा हो रही है. लेकिन ईश्वर के प्रति वह तड़प, वह खिंचाव जो प्रथम क्रिया के बाद उसने अनुभव किया था वह शांत हो गया है. अब वह उससे एक पल को भी दूर नहीं है, उसके नाम का मानसिक जप वर्तमान में रहने की प्रेरणा देता है. वर्तमान में जीना व्याधियों से मुक्त रखता है. मन फूल की तरह नित नवीन बनकर खिला रहत है.

कल कोर्स का अंतिम दिन था, ध्यान किया फिर सामूहिक भोज व सत्संग, लौटते-लौटते उन्हें साढ़े दस हो गये. सुबह पांच बजे उठाने का वादा जून ने शिक्षक से किया था. उन्होंने उनकी देखभाल का उत्तरदायित्व पूरी तरह निभाया है. चार बजे ही उसकी नींद भी खुली पर उठने की चेष्टा नहीं की. पांच बजे उसे एक स्वप्न आया, कोई कह रहा है, 'पांच बज गये', 'पांच गये'. वह ईश्वर थे या उसकी चेतना.
उसके अंतर में न जाने कहाँ से एक कसक या कचोट ने प्रवेश पा लिया है. यह महीनों बाद हुआ हुआ है, सो यह अपरिचित, अनजाना मेहमान अप्रिय लग रहा है. कल दोपहर से इसका आरम्भ हुआ होगा, एक क्षण को भी सजग न रहो तो कामनाएं मन पर अधिकार जमा लेती हैं. अपने आत्मभाव से वे च्युत हो जाते हैं. ईश्वर का विधान बहुत कठोर है, जिस क्षण उसका पथ छोड़ा अथवा छोड़ने का भाव भी मन में आया तो उसका फल मिले बिना नहीं रहता. मन यदि सद् मार्ग पर चले तो आत्मसुख में रहता है. पूरा प्रभु आराधिया, पूरा जाका नाम. वह ईश्वर जब तक पूरा नहीं मिलता, ज्ञान पूर्ण नहीं होता तभी तक यह विचलन, विक्षेप मन पर छाने का साहस कर सकते हैं. उसका लक्ष्य तो उस पूरे को पाना ही है. वही इसका रास्ता बता सकते हैं. मन और देह में जब तक आसक्ति रहेगी तब तक वह नहीं मिलेगा. अपने अहं को तुष्टि देने का भाव, सुख-सुविधाओं का आकर्षण जब तक रहेगा वह अनवरत सुख इसी तरह बीच-बीच में लुप्त होगा. यही दुःख लेकिन उसी मार्ग पर स्थित करेगा, जब प्रार्थना और हृदय एक हो जाते हैं तभी उसका अभ्युदय होता है. ध्यान ही उसे पावन करेगा. उसकी कृपा अपार है, वे अकृतज्ञ होकर उससे और-और मांगते हैं. उलटी चल चलते दीवाने, दीदारे यार करते आँख बंद करके !







2 comments:

  1. श्री श्री का सान्निध्य और सुदर्शन क्रिया... साधना यदि लगन और आस्था के साथ की जाए तो मानसिक शांति के साथ ही पूरी काया के रूपांतरण का मार्ग प्रशस्त करता है.
    अच्छा लग रहा उसे एक साधिका के तौर पर देखकर!

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  2. स्वागत व आभार !

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