कल शाम पुनः उसे सिर में दूर
से आती ढोल की ध्वनि जैसी ध्वनि सुनाई दी, फिर आज सुबह क्रिया के बाद काफी स्पष्ट
थी. योग शिक्षक से पूछना ही उचित होगा अथवा इसे भी सामान्य घटना मानकर आगे चलती
चले. अध्यात्म के मार्ग पर न जाने कितने-कितने मोड़ आएंगे जिनसे उन्हें गुजरना
होगा. यह तो तलवार की धार पर चलने जैसा है. हर सुख की एक कीमत चुकानी होती है. हर
सुख क्षणिक होता है लेकिन आत्मसुख का न कोई आदि है न ही अंत है. वह तो अनंत है,
उसे सीमा में बद्ध नहीं किया जा सकता. इस समय उसके पोर-पोर से वही आनंद फूट रहा
है, सारा शरीर कम्पायमान हो रहा है, ध्यान न करते हुए भी ध्यान की सी मनः स्थिति
हो रही है, एकांत नहीं है सो अभी वह ध्यान नहीं कर सकती. आत्मा से टपकने वाले इस
मधुर भाव को क्या नाम दे सकते हैं. सारा जग एक स्वप्न की भांति प्रतीत हो रहा है.
सब कुछ जैसे थम गया है, दिशाएं खो गयी हैं, शून्य ही शून्य है, उसके इस आत्मबोध के
अतिरिक्त कोई बोध शेष नहीं रहा है. कान में पड़ने वाली ध्वनियाँ भी अर्थहीन हो गयी
हैं. सब कुछ यथावत होते हुए भी यथावत नहीं है. कुछ बदला-बदला सा है. कहीं यह उसका
मतिभ्रम तो नहीं, लेकिन ऐसा पहले भी तो हुआ है और आनंद की तीव्रता उस समय अधिक थी,
पर उसे संयत होना होगा. स्वयं को अभी और तीव्रतर अनुभवों के लिए परिपक्व करना
होगा. सद्गुरु सदा उसके साथ हैं. कृष्ण भी हर क्षण उसके साथ परमज्योति के रूप में रहते
हैं, जिसे वह आंख बंद करते ही देखती है. जैसे कमल पंक में रहकर भी उसमें लिप्त
नहीं होता वैसे ही उन्हें संसार में रहकर भी इससे अलिप्त रहना है. वे ईश्वर के
निमित्त मात्र हैं. उसने अनंत शक्तियाँ प्रदान की हैं. सूक्ष्म जगत और तात्विक जगत
में प्रवेश करने की क्षमता दी है. अलौकिक आनंद प्राप्त करने के सामर्थ्य भी दिया
है. शाश्वत सुख व शांति का भागी बनने की क्षमता दी है जो वे अपने आत्मस्वरूप में
रहकर ही पा सकते हैं.
आज नन्हे का स्कूल ‘तिनसुकिया बंद’ के कारण बंद है. वे आधा घंटा देर से उठे, क्रिया की जो उनके जीवन का अंग बन चुकी है और
दिन का पहला कार्य. कल दो पत्र लिखे, सभी को भाईदूज का टीका भेज दिया है, दीवाली
के लिए सफाई का कार्य भी नियमित चल रहा है. कल शाम एक मित्र परिवार आया, अच्छा लगा
पर कुछ देर को शायद वह भावना में बह गयी थी. art of living की बात छिड़ते ही वह
संयत नहीं रह पाती, पता नहीं क्यों ? उसके सिर में हल्की आवाजें आज सुबह भी महसूस
हुईं, इसके पीछे जरूर कोई राज है. आज लम्बे समय के बाद ‘सिन्धी पालक’ बनाया है.
सुबह ससुराल से फोन आया, वे लोग इसी माह बड़ी ननद के पास जा रहे हैं. अज गुरुमाँ ने
कड़े शब्दों में फटकर लगाई, पर बिलकुल सही कहा कि ईश्वर का नाम तो जगाने के लिए है
न कि सुलाने के लिए. गुरू युगों की नींद से जगाने आया है. कल ‘इंडिया टुडे’ के
मुखपृष्ठ पर गुरूजी का फोटो देखकर अच्छा लगा. उनकी बातें ही निराली हैं. नन्हे बच्चे
से निष्पाप और महान ऋषि से ज्ञानी. ईश्वर हर क्षण उनकी आँखों में, हँसी में, हाव-भाव
में झलकता है. वह स्वयं ही ईश रूप हो गये
हैं. अब इतना वक्त नहीं है कि अभ्यास करे, सो उसने सोचा संगीत सुनना ही ठीक रहेगा.
No comments:
Post a Comment