पिछले दो दिन डायरी नहीं लिख
सकी. सुबह का वक्त जो श्रवण-लेखन में बीतता है, छुट्टी होने पर अन्य कार्यों में
चला जाता है. जीव हर वक्त इन्द्रियों को तुष्ट करने में लगा रहता है. देहात्म
बुद्धि से निजात पाना कितना कठिन हो जाता है पर इन सबके बीच ‘क्रिया’ के क्षण
वरदान बनकर आते हैं, जब मन आत्मभाव में स्थित हो जाता है. आज बड़े भांजे का जन्मदिन
है, सुबह सभी से बात की, कल रात पिता से भी बात हुई, उन्होंने बताया, पत्र लिखा
है. दीदी ने पत्र का जवाब फोन पर दिया. कल दोनों भाई उनके यहाँ परिवार सहित पहुंच
गये आज दोपहर तक वापस आयेंगे. कुछ देर पहले छोटी बहन का फोन आया उसने नन्हे से
यहाँ का पिन पूछा और कुशलता का समाचार लिया दिया. सुबह ससुराल से फोन आया यह याद
दिलाने के लिए कि वे बधाई देने के लिए फोन अवश्य करें. यह फोन उन सभी परिवारजनों
को आपस में जोड़े हुए है.
आज पूरे एक हफ्ते बाद नन्हे का स्कूल खुला है. वे सुबह जल्दी नहीं उठ पाए सो
क्रिया भी नहीं हो सकी. अभी कुछ देर पहले बाबाजी का हिमाचल में हुआ सत्संग देखा,
मन भर आया, गुरू का सन्निध्य कितना अमूल्य होता है. योग शिक्षक से वे पिछले इतवार
को डिब्रूगढ़ में मिले थे, उसके बाद से कोई खबर नहीं है. उस दिन एक मित्र परिवार ने
दो कैसेट दिए एक में समपर्ण के गीत हैं. सुनकर बहुत अच्छा लगता है. गुरू उन्हें
कितनी ऊँचाइयों तक ले जाते हैं, गुरू भीतर ही हैं, सदा उनके पास हैं पर फिर भी किसी
बाहरी आश्रय की आवश्यकता का अनुभव होता है, कोई ऐसा जो दो आँखों से ही अंदर का
सारा हाल जान लेता है, जिसका एक वचन ही काफी होता है. जीवन के प्रत्येक कार्य के
लिए किसी न किसी से शिक्षा लेनी पड़ती है तो ईश्वर को जानने जैसे महान कार्य के लिए
गुरू की आवश्यकता हो इसमें आश्चर्य क्या है. गुरू मन का वैद्य होता है. जो विकारों
से मन को मुक्त करता है. ऐसा सद्गुरु आसानी से नहीं मिलता, पर ईश्वर की अनुभति वही
करा सकता है. वह शिष्य के मंगल की कामना हर क्षण करता है, उसका हृदय ईश्वर की तरह
अनंत प्रेम से भरा हुआ है. कल शाम से ही बल्कि दोपहर से ही उसका सिर भारी था, खैर,
शरीर का अपना धर्म है और आत्मा तो सदा मुक्त है, कल उसने इन दोनों को अलग-अलग रखते
हुए कोई दवा आदि नहीं ली और रात को कब अपने-आप ही दर्द ठीक हो गया पता नहीं चला. आज
‘जागरण’ में विभिन्न चक्रों के बारे में सुना. आत्मा के स्तर पर जीना यदि कोई सीख
ले तो सारे चक्र अपने आप ही जाग्रत हो जायेंगे और उनसे मिलने वाली ऊर्जा से जीवन
ओत-प्रोत हो जायेगा.
कल अंततः जून को शिक्षक का ईमेल मिला. उनके भाई का देहांत हो गया था जिसके
एक्सीडेंट की खबर सुनकर वे गोहाटी गये थे, जीवन कितना क्षणिक है यह उनसे बेहतर कौन
जान सकता है. देह का संबंध क्षणिक है मात्र ईश्वर से मानव का संबंध शाश्वत है. उन्होंने
उसे दो आदेश दिए थे पहला सेवा करनी चाहिए दूसरा ऋषिकेश जाकर एडवांस कोर्स करने का
आदेश. पर दोनों ही आदेशों का पालन वह नहीं कर पायी है. सेवा करने की क्षमता नहीं
है, अपने परिवार और निज आत्मा की सेवा करने में ही सारा समय बीतता है. ईश्वर
प्राप्ति की इच्छा बलवती होती जा रही है. कृष्ण की चेतना में अपनी चेतना जोड़ने की इच्छा.
भगवद स्मरण के सिवा और कोई भी कार्य स्वीकार्य नहीं लगता है. आज सुबह वे उठे तो
गला खराब लग रहा था पर अब देह को आत्मा से अलग रख कर देखने की कला गुरूजी ने सिखा
दी है. परमात्मा उसे जिस हाल में रखना चाहें, क्योंकि वही सब करा रहे हैं. उसके
लिए जो भी अच्छा है वही होगा. वह जड़ वस्तु पर निर्भर न रहकर चेतना की ओर कदम बढ़ा
रही है. इन्द्रियां अपना काम करती रहेंगी, मात्र उसकी चेतना इन्द्रियों की ओर न
जाकर कृष्ण की ओर जा रही होगी.
कल सुबह एक सखी आई थी अपनी समस्या लेकर और गुरूजी ने उसे उसकी सहायता करने की
प्रेरणा दी. सुबह उसको फोन किया. सुबह एक अन्य सखी के साथ बाजार गयी, वह अपने यहाँ
कल पूर्णिमा की कथा का आयोजन कर रही है. बाद में लंच भी होगा जो उसके जन्मदिन का भी
होगा, क्योंकि उस दिन करवाचौथ है. कल शाम दीदी का फोन आया उन्होंने बताया उनके घर
के पास एक नर्सिंग होम बिक रहा है वह चाहती हैं वे सभी मिलकर उसे खरीद लें और
चलायें पर उन्हें यह विचार जंच नहीं रहा है, न तो
उन्हें इसका कोई अनुभव है और न ही इतना धन है. जून आज देर से आने वाले हैं.
इसी माह होने वाले एक कोर्स के लिए सहायता करने में व्यस्त हैं. कल पिता का एक
लम्बा सा पत्र आया है. उसने उनके लिए एक कार्ड खरीदा और अभी छह कार्ड खरीदे जो
जिनको मिलेंगे उन्हें ख़ुशी अवश्य देंगे, क्योंकि बहुत प्यार से चुने गये हैं. सुबह
एक सखी को भी उसने इसी प्यार और विश्वास की बात कही, उसका जीवन कैसा अजीब सा हो
गया है उसने स्वयं ही बना लिया है. ईश्वर से प्रार्थना करेगी और गुरूजी से भी की
उसे सामर्थ्य दे, शक्ति दे ! art of living ने जैसे उसके जीवन में एक शांति,
स्निग्धता और प्रेम की लहर ला दी है वैसी ही लहर उसके जीवन में भी आये. वह अपने
रिश्तों की कद्र करना सीखे.
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