Friday, January 23, 2015

पीली ऊन का स्वेटर


आज बहुत दिनों के बाद बल्कि हफ्तों के बाद उसने वस्त्रों की आलमारी सहेजी और कुछ और कार्य किये जो कई दिनों से किये जाने थे. वह अपने अंतर्जगत में इतना डूब गयी थी कि बाहरी दुनिया एक स्वप्नवत् प्रतीत होती थी. लेकिन आज उसने अपनी प्रतिबद्धताओं पर पुनः सोचा. हफ्तों के सूखे मौसम के बाद पिछले तीन दिनों से वर्षा हो रही है. एक सखी का फोन आया, उसने एक को फोन किया जो aol का एडवांस कोर्स करने तेजपुर जा रही है. दोनों बुआ के यहाँ से पत्र आये हैं. उन्हें जवाब देने हैं. जून को आज सेंट्रल स्कूल में दसवीं के बाद होने वाली कोचिंग के सिलसिले में होने वाली एक मीटिंग में जाना है. अगले वर्ष से नन्हे को उसमें जाना होगा, स्कूल के बाद कोचिंग से उसकी व्यस्तता काफी बढ़ जाएगी पर यही जीवन है. कल उसका गणित का (प्री बोर्ड) पेपर है. आज सुबह टीवी पर एक कार्यक्रम देखा, “yoga for life”. आज लेडीज क्लब के सेक्रेटरी का फोन आया, पूछ रही थी कि क्लब के वार्षिक कार्यक्रम में सम्मिलित न होने का क्या कारण है. उसने नन्हे की परीक्षाओं की वजह बताई. जून ने ‘महासमर’ वापस कर दी और भागवद् लाये हैं. पढ़ने में उसे अवश्य ही आनंद आयेगा और लक्ष्य की प्राप्ति भी होगी.

कल रात नींद खुली तो आभास हुआ मन में भागवद् चल रहा था. कल शाम को ही पढ़ना शुरू किया है. कृष्ण की कथाएं पढ़ने से अद्भुत शांति मिलती है, अनोखी है उनकी कथाएं ! कल शाम जब जून मीटिंग से आये तो नन्हे को वहाँ की कार्यवाही के बारे में बताया. कालेज में प्रवेश के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी और तब सफलता निश्चित है. टीवी पर ‘जागरण’ आ रहा है, जब कोई उससे जुड़ता है तो जीवन रसपूर्ण हो जाता है, कभी न खत्म होने वाली आनंद की अजस्र धारा बहने लगती है. संसार से जुड़ो तो झटके खाने पड़ते हैं जबकि प्रभु से जुड़ने पर जीवन जैसे एक हिंडोला बन जाता है या नदी की शांत जल धारा..बाबाजी भी आ गये हैं, कल से उन्होंने ‘योग वसिष्ठ’ पर बोलना शुरू किया है. कह रहे हैं-
 अन्न बिगड़े तो मन बिगड़े
पानी बिगड़े तो वाणी बिगड़े
अनवरत होती वर्ष से मौसम ठंडा हो गया है. आज ऐसे भीगे, ठंडे मौसम में जून मोरान  जा रहे हैं. नन्हा भी स्कूल गया है. कल रात भी देर तक मन में भागवद् की कथाएं विचरती रहीं. कल इतवार था, वर्षा कुछ देर को थमी तो वे दूर तक टहलने गये. नन्हे का आज विज्ञान का इम्तहान है. कल जून ने उसके कहने पर ऊन लाकर दी, चमकदार पीले रंग में, जिससे नैनी अपने नाती का स्वेटर बनाएगी. पिछले दिनों उसे ऐसा महसूस हुआ वह हर वक्त खिंची-खिंची सी रहती है, उसके भीतर का रस सूखता जा रहा है, रसहीन व्यक्ति विस्फोटक रूप धारण कर सकता है. तभी तो कहते हैं ईश्वर को याद करो जो रस का स्रोत है, वह प्रेम, ज्ञान और आनंद का भी स्रोत है., वह ऊर्जा का भी स्रोत है बल्कि वह तो सब कुछ का स्रोत है. जितना जितना वे उससे जुड़े रहेंगे सजग रहेंगे, रसपूर्ण रहेंगे. आत्मा में स्थित रहेंगे. वही तो चेतना का आधार है, वह है तो जगत है. स्वयं को नित्य मानकर तीन गुणों के पार होना है, वृत्तियाँ आती-जाती हैं, उनसे सुख मिले ऐसी आकांक्षा व्यर्थ है. जीवन माधुर्य, आनंद और रस के सागर में डूबने के लिए है !
उसे ढेर सारे काम करने हैं, सो लिखना बंद करके उनमें जुट जाना होगा.  
  

4 comments:

  1. चाहे कितने भी दिनों के बाद यहाँ आऊँ, एक अजीब सी शांति अनुभव होती है. न शब्दों का कोलाहल, न नारों का शोर, न भाषणों की गहमागहमी और न अनर्गल आदर्शवाद की बारिश! जून को मेरा नमस्कार और नन्हे के लिये ढेरों शुभकामनाएँ!
    कृष्ण के चरित्र के विषय में ओशो कहते हैं कि इतने आयाम हैं कि हर किसी को एक से नहीं दिखते कृष्ण. सूर के लिये वो आज भी बाल रूप हैं, मीरा के लिये प्रेमी, गोपियों के लिये सखा... पूर्णावतार... मैंने शायद पहले भी कहा था कि आज से केवल पाँच साल पहले तक जो मैं था वो सिर्फ एक साल में ऐसा रूपांतरित हुआ कि मुझे भी विश्वास नहीं होता. तब से अब तक उसी यात्रा में हूँ!
    कृष्ण चरित ने पूरा जीवन रूपांतरित कर दिया.
    आपकी बातें बल प्रदान करती हैं! आभार आपका.

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    1. कृष्ण चरित ने पूरा जीवन रूपांतरित कर दिया...कितने सुंदर हैं ये वचन..कृष्ण को कोई प्रेम करे और वह उसे बदल न दें ऐसा तो हो ही नहीं सकता...स्वागत व आभार !

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  2. रसो वै सः - वह स्वयं रस रूप है - जड़ता दूर कर आनन्दित करनेवाला!

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  3. सही कहा है आपने..वह रसरूप है..स्वागत व आभार आपका...

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