Thursday, January 15, 2015

बदली में सूरज


हृदय में आध्यात्मिक क्रांति का उदय हो इसके लिए जीवन में साधना, सेवा, सत्संग व स्वाध्याय, चारों का होना अति आवश्यक है. उसके जीवन में तीन बातें तो हैं पर चौथे अंग ‘सेवा’ का कोई स्थान नहीं है. उसे घर में रहकर ही सेवा का पालन करना चाहिए. ज्यादा सचेत रहकर अपने कर्त्तव्य का पालन करना होगा. गोविन्द तभी उसका अभिन्न मित्र होगा. कृष्ण उसे एक पल के लिए भी स्वयं को भूलने नहीं देंगे. कृष्ण अपना वरद  हस्त उसके ऊपर सदा ही रखे हुए हैं, उसे ही उनकी कृपा को ग्रहण करने का सामर्थ्य अपने भीतर जगाना है. वर्तमान में रहने की कला सीखनी हो तो ‘मन्त्र जाप’ से बढ़कर कोई उपाय नहीं. इस तरह श्वास भी नियमित रहती है. ऋषि-मुनियों ने कितने सुंदर उपाय बताये हैं, यदि वे उन पर चलें तो ईश्वर उसी क्षण उन्हें प्राप्त हो सकते हैं, बल्कि वे तो कहते हैं  ईश्वर पहले से ही प्राप्त हैं, उन्हें सचेत होना है उसकी उपस्थिति के प्रति, उसके सान्निध्य में कोई विषाद नहीं रहता. सारी आवश्यकताएं अपने-आप पूर्ण होने लगती हैं. मन के भीतर सुमिरन चलता रहे तो अद्भुत शांति का प्रादुर्भाव होता है, अधर मुस्काते हैं, ऑंखें उसके रूप को देखती हैं. उसकी कविताओं में जो कामनाएं उसने व्यक्त की थीं, वे सारी की सारी सद्गुरु को भेजकर कृष्ण ने पूरी कर दी हैं. अब उसका कर्तव्य यही है कि इस मार्ग पर दृढ़ता से आगे बढ़े, क्योंकि यही ऐसा मार्ग है जहाँ आकर सारे मार्ग मिलते हैं. जो परम सत्य तक उन्हें ले जायेगा, जहाँ जाना और जाने के लिए परिश्रम करना मानव मात्र का कर्त्तव्य है, जहाँ जाने के लिए पाथेय है हृदय में असीम प्रेम, इतना प्रेम जो पोर-पोर से छलकता हो, जो उच्चता के प्रतीक उस ईश्वर के लिए हो !

जब वे धर्म के नियमों का पालन करते हैं तब प्रकृति उनका साथ देती है जब उसके प्रतिकूल चलते हैं तब प्रकृति विपरीत हो जाती है. धर्म क्या है इसका ज्ञान शास्त्र, सत्संग तथा अंतर में स्थित परमात्मा के चिन्तन से मिलता है. यह बिलकुल स्पष्ट है उतना ही जितना हथेली पर रखा आंवले का फल ! कृष्ण गीता में उसी धर्म की चर्चा करते हैं. परमेश्वर असीम हैं, उनका अनुग्रह अनंत है, दया अनंत है, उनकी स्मृति में जितना समय गुजरे वही सार्थक है. जब जीवन का हर क्षण उसके प्रति कृतज्ञता में बीते तो उसकी कृपा का अनुभव भी हर समय होगा, और धीरे-धीरे मन ख़ाली होता जायेगा, खाली मन में ही भक्ति का प्रकाश उदित हो सकता है. ईश्वर ही अपना ज्ञान दे सकते हैं तो पहले उसकी निकटता का अनुभव करना होगा, उसके शरणागत होना होगा. भजन, साधना से मन इतर से खाली होता है और उसकी ओर खिंचता है. एक वही है जो अनंत हृदय को भर सकता है, मन भी निस्सीम है. संसार की नश्वर वस्तुएं उसे तृप्त नहीं कर सकतीं, वह असीम से ही भरा जा सकता है ! आज सुबह उन्हें उठने में देर हुई, नन्हा आज स्कूल नहीं गया, सूर्य देवता बादलों के पीछे छिपे हैं, पूरे भारत में सर्दियां अपनी चरम सीमा पर हैं. यहाँ उत्तर भारत की अपेक्षा मौसम सुहावना है. अज जून उसका लेख व कविताएँ छपने के लिए दे देंगे. नया वर्ष आने में दो हफ्ते भी शेष नहीं, उन्हें एक बार पुनः घर की विशेष सफाई करनी है, नये वर्ष के स्वागत में इतना तो उनका कर्त्तव्य बनता ही है.






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