आजकल धूप आँख-मिचौली खेलती
रहती है, मौसम ठंडा-ठंडा सा ही रहता है. उन्होंने मोज़े, स्वेटर पहनना शुरू कर दिया
है. आज दोपहर को जब जून ऑफिस चले गये वह प्रमाद वश नहीं उठी तो अजीब सा स्वप्न
आया. सड़क पर चलते हुए कुछ खिलौने उससे मिलने आ रहे हैं. स्वप्न चेताने आते हैं और
स्वप्न भी तो वही भेजता है. आज सुबह कृष्ण कथा सुनी, उसकी कथाएं अनुपम हैं, अगली
बार घर जाने पर वह अवश्य ही ‘भागवद् पुराण’ खरीदेगी. कल रात दीदी का फोन आया. सुबह
उसने छोटे भाई को किया था. उसने गर्मी की छुट्टियों में वहाँ आने के लिए कहा है.
जून भी घर जाने को कह रहे हैं. हिमाचल जाने का भी उनका मन है. परीक्षाओं के बाद
यात्रा का योग काफी प्रबल है. ईश्वर उनके साथ है, वही सही मार्ग सुझाएगा. आज पिता
का पत्र भी आया है. कल ‘श्री शंकर देव’ के लिए लिखा लेख हिंदी पत्रिका के लिए
भिजवाया. नन्हे की पूर्व परीक्षाएं चल रही
हैं. मात्र दो महीने उसके फाइनल्स में रह गये हैं. आजकल वह स्वयं ही पढ़ता है.
ध्यान में यदि उतरना हो तो एक भी व्यर्थ का ख्याल नहीं आना चाहिए नहीं तो वही
एक ख्याल रस्सी बन जाता है जो ऊपर ले आती है. मन पूरा का पूरा खाली हो जाये तो
ध्यान गहरा होता जाता है. आज जून ने छुट्टी ली है, साल का आखिरी महिना है
छुट्टियाँ व्यर्थ हो जाएँगी, इसलिए आज वह घर पर हैं. उन्हें दोपहर को कोपरेटिव
स्टोर जाना है और शाम को नन्हे के साथ कनज्यूमर फोरम भी जाना है. यानि आज का दिन
खरीदारी को समर्पित होगा. नये वर्ष के लिए कुछ कार्ड्स भी उन्हें खरीदने हैं. मौसम
आज खिला हुआ है. कल रात स्वप्न में एक घायल महिला को जो खून से लथपथ थी वह अस्पताल
ले जाती है. शायद रात को देखी ‘Matilda’ फिल्म के कारण यह स्वप्न आया था. यह किताब
उसने काफी पहले पढ़ी थी.
क्रोध कब आकर उन्हें परास्त कर देता है पता ही नहीं चलता. लेकिन यह आध्यात्मिक
प्रगति के लिए बहुत बड़ी बाधा है. कल शाम जून ने उसकी बात नहीं सुनी तो चाहे कुछ
क्षणों के लिए ही सही उसे क्रोध आया तो था. मन, वाणी और क्रोध के वेगों को रोकना
ही होगा, अन्यथा वे जहाँ है वहीं रह जायेंगे बल्कि पीछे जाने का डर अधिक है. इन
सारे वेगों को नियंत्रित करने का एकमात्र उपाय है कृष्ण का नाम. उसकी स्मृति बनी
रहे तो कोई ताप नहीं सताता भौतिक जगत में कोई न कोई दुःख तो रहेगा ही, जब तक ईश्वर
की स्मृति बनी रहेगी तभी तक वे इन दुखों से अलिप्त रह सकते हैं ! उसे दिल से चाहो
तो वह विश्रांति के रूप में तत्क्षण अपना अनुभव करा देता है. आत्मा जो उसी का अंश
है उसी की भाषा बोलती है परदेश में कोई अपनी भाषा बोलने वाला मिल जाये तो कैसी
ख़ुशी होती है. मन जब शांत होकर आत्मा का आश्रय लेता है तो वह भी उसी की भाषा बोलता
है.
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