Sunday, November 30, 2014

कबीर का दोहा


इस समय एक तरफ तो धूप निकली है दूसरी तरफ बादलों के गरजने की आवाज भी सुनाई दे रही है. सुबह-सवेरे मौसम ठंडा था, जून को सर्दी लग गयी है, सो पहले वह उठी, बाहर गयी तो हवा शीतल थी पर कल सुबह चार बजे की शीतल स्वच्छ हवा का एक झोंका भी कितना प्रफ्फुलित कर गया था. ब्रह्म मुहूर्त में उठने की महिमा यूं ही तो नहीं गयी गयी है धर्म ग्रन्थों में ! अब दोपहर के पौने एक बजे हैं, अभी कुछ देर पहले जून को बाहर तक छोड़कर आने लगी तो उन्होंने पौधों पर पड़ रही धूप की ओर ध्यान दिलाया, पौधों को टोपी से ढका अन्यथा शाम तक कुम्हला जायेंगे. जून ने वह पुस्तक भेज दी है, अगस्त का आरम्भ है यदि वर्ष के अंत तक भी छप जाये तो बड़ी बात होगी. ढेर साडी पत्रिकाएँ पड़ी हैं पढने के लिए, लिखना भी है, पत्र व इमेल भी. एक ड्रेस पर बटन टांकने हैं, अभ्यास करना है, और यह सब करना है इन सवा दो घंटों में. जागरण में आज कर्मवाद पर सुना, मानव कर्म करने के लिए स्वतंत्र है पर फल भोगने के लिए नहीं, वह उसके चाहने अथवा न चाहने पर भोगना ही पड़ेगा, सो कर्म करते समय प्रतिक्षण सजग रहना होगा. उस वक्त वह जीनिया के सूखे फूलों से बीज निकाल कर अलग कर रही थी, इस कर्म का फल तो रंगीन ही होने वाला है. ‘आत्मा’ में गीता के ‘प्रथम अध्याय’ पर चर्चा हुई, मन ज्ञानियों की सी बातें तो बहुत करता है पर ज्ञान उसके भीतर टिकता नहीं है !

‘जब कोई उसे ढूँढ़ता है तो वह उसे नहीं मिलता पर जब वह ढूँढ़ते-ढूँढ़ते खो जाता है तो वह उसे ढूँढ़ता है !’ आज सुबह के समाचारों में जम्मू स्टेशन पर आतंकवादियों द्वारा अँधा-धुंध गोलियां चलाये जाने से दस व्यक्तियों के मरने की खबर सुनी. पिछले एक हफ्ते के अंदर यह तीसरी बड़ी दुर्घटना है जिसमें निर्दोष लोगों की जान जा रही है. सरकार अपने नागरिकों की सुरक्षा करने में असफल है. कुछ दिन पहले लगा था कि इस समस्या का हल शीघ्र निकल आएगा पर अब ऐसा नहीं लगता. कल शाम को बड़ी ननद को पत्र लिखा. तीन इमेल लिखे. पर सर्वर में कुछ खराबी होने के कारण भेज नहीं सकी. जून का स्वास्थ्य अभी भी पूरा ठीक नहीं है पर वह art of living का कोर्स करने के बाद काफी सचेत हो गये हैं. कल शाम से प्राणायाम का अभ्यास भी शुरू कर दिया है. वे दोनों टहलने भी गये. लाइब्रेरी से ‘झुम्पा लाहिरी’ की एक किताब लायी और हैरी पॉटर का एक और भाग. कल रात नन्हे को दस बजे ही सोने को कहा ताकि सुबह वक्त से उठ सके, सुबह उठा, तब तक गुस्सा दिखा रहा था पर स्कूल से आने तक सब भूल जायेगा. उसे इक्यानवे प्रतिशत नम्बर मिले हैं इस परीक्षा में, और पढ़ाई की जरूरत है विशेषतया गणित में.


जैसे धूँए से अग्नि छिप जाये या धूल से दर्पण ढक जाये उसी तरह मन पर अज्ञान का पर्दा पड़ा रहता है. यह अज्ञान तामसिक व राजसिक गुणों का परिणाम है. पिछले दिनों वह रजोगुण के अधीन रही. सात्विकता का भाव टिक नहीं रहा क्योंकि उसको टिकने का स्थान नहीं दिया. मन निर्विचार हो, निर्विकार तभी पवित्र विचारों को प्रश्रय मिल सकता है. जीवन जीते हुए ही जनक की तरह विदेह होना बहुत कठिन है. जीवन की धारा इतनी वेगवती होती है की मन को अपने साथ ले जाती है. बाबाजी ने कहा, “सुख देवे, दुःख को हरे, करे पाप का अंत, कहे कबीर वह कब मिलें, परम सनेही संत” गुरुमाँ ने कहा स्वप्न में भी साधक को सचेत रहना चाहिए, स्वप्न मन की वास्तविक स्थिति का परिचय देते हैं. जून कल तिनसुकिया गये थे, bookcase का आर्डर दे दिया, एक महीने बाद मिलेगा. 

3 comments:

  1. अच्छी प्रस्तुती..

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  2. अब फिर वो मुँह चिढा रही है मुझे ब्रह्म मुहूर्त में उठने की बात करते हुये. वैसे यहाँ भी सुबह सुबह ही उठ जाता हूम मैं, चिड़ियों का चहचहाना और शीतल बयार के स्पर्श से. पुस्तक के प्रकाशन का इंतज़ार हो चला है अब.
    जून की सेहत के लिये शुभकामना... जल्दी अच्छे हो जाएँ! हैरी पॉटर भी पढने की इच्छा नहीं हुई कभी!
    दर्पण, धूल, धुँआ और धुन्ध के बड़े गूढ रहस्य ओशो ने कहे हैं गीता दर्शन में...!

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  3. ओशो ने अपने वचनों में जीवन के हर पहलू को खोल कर रख दिया है..संतों की तो बात ही निराली है,..आभार !

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