Tuesday, December 2, 2014

प्रयोगात्मक रेकी

praktikal 

जीवन होश से जीयें, मन में यदि प्रेम का बीज उगे तो उसकी रक्षा करनी पडती है, लोक व्यवहार की चिंता करते रहे तो भगवद् भक्ति टिकेगी नहीं. मन को गहराई से जानना होगा, जागृत अवस्था में ही नहीं, स्वप्नावस्था में भी सचेत रहना होगा. अपने स्वप्नों की समीक्षा करते हुए पता चलेगा की गाँठ कहाँ बंधी है”. आज गुरू माँ ने उपरोक्त वचन अपने प्रवचन के दौरान कहे. उसके जीवन में प्रेम है, जून, नन्हा, भाई-बहन, पिता, ससुराल के सभी लोग, चचेरे-ममेरे भाई-बहन, मित्रगण के परिवार, पड़ोसी, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, प्रकृति, उनका देश, यह ग्रह, यह ब्रह्मांड.. सबके लिए प्रेम है. यह प्रेम भी आसक्ति रहित होना चाहिए, निष्काम होना चाहिए, इन सब से उसे क्या मिलने वाला है इसकी रत्तीमात्र भी परवाह न करते हुए वह इनके लिए क्या कर सकती है यही भाव रहना चाहिए. मन हल्का रहेगा. यूँ भी जीवन का कोई भरोसा नहीं, कब किस वक्त क्या देखना पड़ सकता है कोई कुछ नहीं कह सकता. अब बाबाजी आ गये हैं, उनकी शांत मुद्रा हृदय में शांति उत्पन्न करती है, नश्वर वस्तुओं के ध्यान से मति भ्रमित हो जाती है और कोई अपने वास्तविक रूप को जान नहीं पाता, लेकिन जब सुख की चाह वस्तुओं से नहीं होती, विचार पावन होते हैं. आत्मबल बढ़ता है. सत्संग सर्वश्रेष्ठ फल देने वाला है. संग दोष से बल घटता है.

पिछले पांच दिनों से स्वयं के निकट आने का अवसर नहीं मिला. शनिवार, इतवार को वैसे ही समय नहीं मिलता. एक दिन जुकाम से परेशान थी. कल पन्द्रह अगस्त की पार्टी थी, परसों जून का जन्मदिन था. अभी भी पूरी तरह जुकाम ठीक नहीं हुआ है. आज भी अमृत वचन सुने थे सुबह, कुछ-कुछ याद है, बाबाजी ने कहा, जो अपने साथ ईमानदार नहीं वह किसी के साथ ईमानदार नहीं हो सकता. सहजता जीवन में आ जाती है तो व्यक्ति साधारण हो जाता है, दम्भ नहीं रहता, अभिमान सूक्ष्म रूप में भी हो तो उतना ही हानिप्रद है, उसे अपनी देश भक्ति का अभिमान है, यह भी गलत है, यदि कोई अपने देश से प्रेम करता है तो यह एक सहज, स्वाभाविक बात होनी चाहिए न कि कोई विशेष बात. संत की परिभाषा भी उन्होंने बतायी, वे लोग, जो अपने घर का रास्ता भूल गये हैं, असंत हैं, जिसे अपने घर का रास्ता याद है वह संत है. अभयदान सब दानों में श्रेष्ठ है.

आठ बजने को हैं. कल शाम वे क्लब गये, लाइब्रेरी में क्विज बुक (विज्ञान) के लिए आलमारी खोली तो practical reiki किताब मिली जिसमें step by step स्वयं को व दूसरों को रेकी देने की बात सचित्र समझाई है. उसका गला अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है, अध्यापिका को अभी-अभी फोन करके मना किया. स्टार टीवी पर ‘आत्मा’ आ रहा है. “हमारी बुद्धि देहात्म हो गयी है, हम देह के परिचय को स्वयं मान बैठे हैं अर्थात आत्मा मान बैठते हैं”. अभी एक सखी का फोन आया, वह कम्प्यूटर ऑफ करने का तरीका पूछ रही थी. सुबह नन्हे ने इन्टरनेट कनेक्ट किया तो दो-तीन इमेल मिले अभी देख नहीं पाये हैं, सुबह-सुबह इतना वक्त नहीं होता. नन्हा लगभग रोज ही भागते-दौड़ते बस पकड़ता है. आज सुबह जून और वह दोनों उसके बारे में बात कर रहे थे. वह आजकल छोटी-छोटी बात पर चुप हो जाता है, शायद पैर के दर्द की वजह से. जून की तरह उसका भी फ़्लैट फीट है, पैर में दर्द स्वाभाविक है. कुछ व्यायाम जो पैर में कर्व बनाने में सहायक हैं, जून ने सिखाये हैं. कल art of living के बेसिक कोर्स के लिए फार्म भी आ गया है. यकीनन उसे इस कोर्स से लाभ होगा. आज पत्रों के जवाब भी देने हैं. दोपहर को नन्हे का पायजामा सिलना है. कई दिनों से व्यायाम/अभ्यास रुका है. सोमवार से सम्भवतः वह पूर्ण स्वस्थ हो जाएगी.


2 comments:

  1. आज का सूक्त वाक्य मेरे लिये है -
    उसे अपनी देश भक्ति का अभिमान है, यह भी गलत है, यदि कोई अपने देश से प्रेम करता है तो यह एक सहज, स्वाभाविक बात होनी चाहिए न कि कोई विशेष बात.
    मैं भी अपने मित्रों से कॉलेज के समय यही कहा करता था. माँ-बाप का आदर करना चाहिये यह शिक्षा का विषय नहीं होना चाहिये बल्कि संस्कारों में होना चाहिये. कोई राजनैतिक दल जब यह कहता है कि विरोधी दल हमारे सदस्यों को बहका/फुसलाकर तोड़ना चाहते हैं, तो सबसे पहले उन्हें यह देखना चाहिये कि उन्होंने अपने सदस्यों को जोड़े रखने के लिये क्या किया जो कोई फुसला ले उन्हें!!
    घर के सभी सदस्यों के दैहिक स्वास्थ्य के लिये शुभकामनाएँ!!

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  2. सही कहा है आपने , स्वयं पर ही नजर रखनी होगी हर हाल में, बाहरी कोई भी ताकत स्वयं से बड़ी नहीं है

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