Thursday, May 8, 2014

नार्मन विंसेट पील - एक प्रेरक व्यक्तित्व


पिछले दस दिनों से उसने डायरी नहीं खोली, भई, ऐसी भी क्या बेरुखी अपने आप से, दिल परेशान तो होगा ही न, दुःख भी मनायेगा जब उसे पता चलेगा कि उसकी बात सुनने वाला कोई नहीं था पिछले दिनों. क्यों नहीं लिख सकी, इसका कारण व्यस्तता ही है या कुछ और भी, स्वेटर बनाना इतना बोझिल काम बन जायेगा सोचा नहीं था, हर काम अपनी कीमत वसूलता है, हर वक्त अपनी कद्र करवाना जानता है. उसने पिछले दिनों बहुत सी किताबें पढ़ी हों ऐसा भी नहीं हुआ. दो-तीन फ़िल्में जरूर देखीं, जून के दो दाँतों का RCT भी हुआ. उन्हें पांच दिनों तक इंजेक्शन भी लेने होंगे. पत्र लिखे, कार्ड भेजे, और आज सुबह घर से फोन आया, ननद के पति ने पास वाले शहर में ज्वाइन कर लिया है, अब जाकर उनका परिवार एक साथ हुआ है. आज भी कल की तरह बादल तो हैं पर बरस नहीं रहे हैं, पिछले दो-तीन दिन तो वह घर से बाहर ही नहीं निकल पायी, हर वक्त आसमान टपकता रहा.

उसने जून को एक पत्र लिखा, उसका दिल प्रेम से भरा था, प्रेम नन्हे के लिए, जून के लिए और सारे ब्रह्मांड के लिए, हर इन्सान की जरूरत है प्रेम और हर एक के दिल की गहराइयों में असीम प्रेम है. उसके भीतर का यह प्रेम जगाने का काम किया था एक किताब ने, उसे लगा, किताबें इन्सान के लिए कितनी जरूरी हैं भोजन से भी ज्यादा जरूरी. कितने तरीकों से वे मानव को प्रेरित करती हैं, वे हृदय के भीतर छिपी नरमी, गर्मी और करुणा को जगा देती हैं. The book written by “Norman Vincent Peale” has got filled her heart with a tender feeling. Yesterday she decided to go Ladies club meeting after reading a line in it and enjoyed there very much. To talk and to listen is very encouraging and self stimulating. Today is sunny day, she has to finish mother’s sweater.
सुबह का काम खत्म होते ही वह बाहर गयी, मौसम सुहाना है, बगीचे में खिले ढेर सारे फूल धूप में मुस्करा रहे था, सर्दियों में धूप कितनी भली लगती है, यही धूप गर्मियों में सताती है तो चिढ़ होती है. उसने कुछ पालक और फ्रेंच बीन्स तोड़ीं, शाम को सूप बनाएगी. और एक सखी से फोन पर बात की. कल शाम वे दूर तक टहलने गये, दुनिया में कितनी सुंदर और कितनी आश्चर्यजनक वस्तुएं हैं, जिन्हें देखकर इन्सान खुद को ही भूल जाता है. कल समाचारों में एक रेल दुर्घटना की दुखद खबर सुनी, अगले माह उन्हें भी तो रेल यात्रा पर जाना है, यही जीवन है. ईश्वर ही उन्हें सुरक्षित रखेगा और वापस घर सुरक्षित पहुंचाएगा.

नवम्बर का अंतिम दिन, आज जाकर वे स्वेटर पूरे हुए जो उसने दीवाली के बाद से शुरू किये थे. आज वह पार्सल बनाकर जून को देगी. लिखना–पढ़ना कितना कम हुआ इन दिनों. कल वे तिनसुकिया गये थे, सभी के लिए उपहार खरीदे इस उम्मीद पर कि उन्हें पसंद आयेंगे, नहीं भी आये तो कोई चारा नहीं. नन्हे के स्कूल में आज Elocution था, उसने भाग लिया. आज सुबह  एक परिचित टीचर ने स्कूल से फोन किया कुछ हिंदी शब्दों के अर्थ जानने के लिए, और कल ही क्लब की पत्रिका में लिखने के लिए बुलेटिन आया है, पर अभी उसमें कुछ लिखने का उत्साह नहीं है, वापस आकर यात्रा विवरण लिख सकती है. इसी हफ्ते जून के विभाग की पिकनिक भी होने वाली है, वे तीनों  यदि पूरी तरह स्वस्थ रहे तो जायेंगे, वे अस्वस्थ क्यों होते हैं, that is a big question ?






2 comments:

  1. अरे! कुछ छूट गया क्या मुझसे!!! ये जून कहाँ गये कि उसे ख़त लिखने की ज़रूरत दरकार हुई? लेकिन इससे अगर प्रेम पनपता है या प्रेम की जड़ें गहरी होती हों तो दूरी अच्छी है. स्वेटर की बुनाई अगर इतनी सहज होती तो उधेड़बुन का मुहावरा न गढा गया होता.
    और हाँ उसे ये नहीं पता कि ननद के पति को ननदोई कहते हैं, ननन्द का पति नहीं. आख़िर घर का दामाद होता है वो. हमारे यहाँ तो उसे "मेहमान" कहते हैं और अतिथि देवो भव की तर्ज़ पर भगवान की तरह सिर आँखों पर बिठाते हैं!!
    किताबों के बारे में जो कहा, उससे सहमत हूँ. सच्चे पढने वाले का जीवन रूपांतरित कर देती हैं!!

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  2. जून तीन घंटे बाद जाकर दफ्तर से आने वाले थे पर वे भाव तो तब तक मुरझा जाते..भाव जो फूल से भी हजार गुणा ज्यादा कोमल होते हैं..मजाल है कि आगे कभी मेहमान के लिए हल्के शब्द का इस्तेमाल हो..शुक्रिया भूल की पहचान कराने का..

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