दिल था कि संभल ही गया
जां थी कि मचल ही गयी
अक्तूबर महीने का प्रथम
दिन, लॉन में हरसिंगार में फूल झरने शुरू हो गये हैं. शरद पूर्णिमा भी आने वाली है, जब चाँदनी रात में चावल
की खीर बनाकर चाँद की किरणों से सेवित होने के लिए रखी जाती है. वर्षों पहले उसने
वाराणसी में शरद पूर्णिमा की महत्ता पर एक प्रवचन सुना था, जिसकी स्मृति अभी तक
बनी हुई है, उसमें रास का जिक्र था, राधा-कृष्ण के प्रेम का, गोपियों के मधुर भाव
का. आज भी अवकाश है, उसने लंच में कढ़ी-चावल बनाये. कल शाम एक मित्र के यहाँ भोजन
किया, वह भी एक सब्जी बनाकर ले गयी थी पर उसे किसी भी वस्तु में स्वाद नहीं आया.
आज दिन भर कुछ नहीं लिखा
पर रात्रि भोजन के बाद बाहर वे टहलने गये तो जुगनुओं की झिलमिल ने मन मोह लिया,
नन्हे ने पल भर के लिए एक जुगनू को मुट्ठी में बंद कर लिया और अंगुलियों की दरारों
से झांकती रोशनी देखकर मुग्ध हो गया. उसे याद आया कभी-कभी कोई जुगनू खिड़की से उनके
कमरे में आ जाता है, अँधेरे कमरे में उसकी उपस्थिति स्पष्ट हो जाती है.
बस थोड़ा सा तम हरते,
टिमटिम यूँ चमका करते
बागों, खेतों, जंगल,
रस्तों को जलकर उजला करते
अद्भुत काया, पंख सुनहरे,
नन्हे-नन्हे दीप जलाये
सूने पथ पर साथी बनते,
मीलों संग चलते-चलते
कोमल तन, छुअन कोमल, हाथों
पर आ कर टिकते
हुई शाम तो दिया जलाकर,
रजनी का स्वागत करते
आज उसने टीवी पर एक हास्य
कवि सम्मेलन देखा-सुना, एक किताब पढ़ी Milan Kundera की, बहुत अच्छी लग रही है यह
किताब. laughter का विश्लेषण लेखक ने बखूबी किया है. हँसी जो कभी-कभी आती ही जाती
है, यूँही रूकती ही नहीं, महान लेखक वाकई महान होते हैं. सोचा हँसी पर खुद भी कुछ
लिखे-
खन-खन करती और कभी रुनझुन
पायल सी
हँसी बिखरती ज्यों नभ से वर्षा
होती
अंतर से फूटे ज्यों झरना
अधरों से बिखरे ज्यों नगमा
पड़ श्रवणों में मन को भी
गुदगुद करती
गूँज किसी निर्दोष हँसी की
बन स्मृति दिल में बसती
कभी भिगोती आँखें भी कभी नम
करती
आज भी धूप काफी तेज है,
सफाई अभियान में आज वह स्टोर की सफाई करवा रही है, सुबह हल्का व्यायाम किया, पर
इतना पसीना आया और श्वास भी फूलने लगी, शायद यह उसका वहम हो या अभी तक.. थक जाने
की हद तक काम करने का मन अब नहीं होता. कल शाम एक सखी के यहाँ एक विज्ञापन देखा,
पर इंटरव्यू उसी दिन है जिस दिन उन्हें दीवाली की खरीदारी के लिए तिनसुकिया जाना
है, दिसम्बर में घूमने जाने के लिए टिकट भी उसी दिन रिजर्व करानी है. सखी ने
लक्ष्मी पूजा के दिन हलवा(सूजी का) खिलाया, लगा कि प्रसाद ही खा रहे हैं. घर से ‘सगड़ा’
भी आया है, वे हर वर्ष भेजते हैं या स्वयं देते हैं, उन तीनों को हाथ पर बांधना है
और फिर वापस भी भेजना है. उसे याद आया भैयादूज का टीका भी भेजना है.
Today she is alone at home
since 7 in the morning. Jun has joined a training programme for three days in T
&D so he is not coming for lunch. She got cleaned dining room and gallery
then cooked lunch for Nanha and herself, took bath leisourly at 10.30 then read
‘bhagvad gita’ for half an hour, exercised and watched a music based prog on ptv, anchor was shanaz and guest was a modern lady singer of Pakistan. Song was
about freedom, which is very essential thing for every person and for her it is
a part of life, to spend some time of day with herself doing the things which
she likes, so what is the use of 9-4 job for which she will have to give entire
morning also at least eight hours of each day for some money, which she does
not want. So ‘yes’ to tinsukiya and no to interview.
आज भी जून दोपहर को घर
नहीं आये, कल शाम उन्हें घर आते-आते साढ़े पांच हो गये थे, उनकी ट्रेनिंग अच्छी
रही, बहुत सी बातें उन्हें भी बतायीं. ध्यान कैसे करते हैं, मन की विभिन्न
अवस्थाओं के बारे में भी, नींद, स्वप्न, तनाव सभी के बारे में. जून को इन सब
विषयों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, सो उन्हें अच्छा लगा. कल रात सोने से
पहले व सुबह उठकर भी उन्होंने ध्यान किया. जिन्दगी के एक नये पहलू की ओर उनका
ध्यान जा रहा है. वह बेहद खुश लग रहे थे तनाव मुक्त, वाकई में संतुष्ट. उसे इसलिए
भी अच्छा लगा कि उम्र के साथ-साथ जो गम्भीरता स्वभाव में आती है वह ध्यान से ही आ
सकती है. आज उन्हें प्राणायाम सिखाया जायेगा. उसने सुबह सफाई का काम आगे बढ़ाया फिर पीटीवी
देखा, एक फिल्म का थोड़ा सा भाग, फिल्म की नायिका इतनी घरेलू सी लगी. मोहसिन खां का
इंटरव्यू भी, जो पहले क्रिकेटर थे फिर फिल्मों में चले गये. एक सखी का फोन आया,
उसने व्रत रखा है आज करवाचौथ का, जून को उसने कहा तो हमेशा की तरह उन्होंने टाल
दिया उसे भी कहाँ इन बचकानी बातों में रूचि है.
त्यौहार, हँसी का महत्व और कविता... अक्तूबर महीने ने इत्ना कुछ इगनाइट कर दिया. पूजा, प्रसाद और प्रेम... टीवी शो, उपन्यास और शरद पूर्णिमा... रोज़मर्रा की छोटी बड़ी घटनाओं का बेहतरीन कोलॉज... एक सवाल दिमाग़ में आया, सोचा पूछ लूँ... ये अचानक हिन्दी से अंग्रेज़ी और फिर हिन्दी में लौट जाना.. इसे क्या मानूँ?? उसके मन के विचार जो जैसे आए (हिन्दी या/और अंग्रेज़ी में) वैसे ही उभरते चले गये?
ReplyDeleteध्यान से ध्यान आया कि मैंने इसके बारे में पढा बहुत है, लोगों को प्रेरित भी किया है पर ईमानदारी से कभी किया नहीं. सोचता हूँ शुरू कर ही दूँ!! कुछ रूपानतरण हो ज़िन्दगी में!!
सही कहा है आपने, ऐसा ही लगता है जो विचार जिस भाषा में आये उसे उसी में लिखने से प्रवाह बना रहता है. आभार !
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