...और दीवाली का उत्सव सोल्लास सम्पन्न हो गया, आज सब ओर कैसी शांति है, जून दफ्तर
गये हैं और नन्हा स्कूल, उसका दिन भी अपने पुराने क्रम में गुजर रहा है. पहले उसकी
छात्रा आई फिर कपड़े धोने थे. संगीत, लंच और दोपहर को हिंदी क्लास. रात्रि स्वप्नों
में रिश्तेदारों से मिलती रही, अभी अपने लोग, दीदी भी थीं, उनका गला खराब था, उस
दिन फोन पर बात की तो थोड़ा खांस रही थीं. आज उसने आलू व कसूरी मेथी की सब्जी बनाई
है, गुलाब जामुन अभी भी बचे हैं. बगीचे में जाकर देखा तो बीज अंकुरित हो गये हैं
पर साथ ही खर-पतवार भी निकल आये हैं, जिन्हें साफ करना जरूरी है. उसने plumber को
बुलाकर कहा जो उनके बेडरूम का फ्लश ठीक करके गया था और लौट रहा था कि पानी नहीं चढ़
रहा है, पर उसने आते ही चलाकर दिखाया and she felt like a fool and last evening when one family came late when they were least expecting them she could not
talk properly, she thought she can not adjust in odd situations, she even does
not try, finds easy always known things and situations, but life is full of new
events, her music teacher gave syllabus, may be next year she should appear in
exam.
अज टीवी पर एक शायर का इंटरव्यू सुना तो कुछ अधूरी
कविताएँ पूरी कीं, लिखने वालों को शायरों, कवियों से काफी प्रेरणा मिलती है, लगता
है कोई जाना-पहचाना मिल गया, दिल की कैफियत तो हर जगह एक सी होती है. शायर का दिल,
चाहे वह कहीं का भी हो, एक सा धडकता है, उसे हर उस शै से प्यार होता है, जिसमें
खलूस हो, जो दुनिया को बेहतर बनाने में मददगार हो. प्यार तो दुनिया को जोड़े रखने
का बहुत बड़ा साधन है, कुदरत से भी और इंसानों से भी, जानवरों, पेड़ों से भी. कल
लाइब्रेरी से नई किताबें लायी है, स्वामी योगानन्द जी की भी एक किताब है, ध्यान
में मदद मिलेगी. उनके लम्बे बाल देखकर उसने भी बाल न कटवाना तय किया है, और धोने
के लिए शैम्पू की जगह बेसन व दही से धोएगी. अभी जून का फोन आया, उन्हें दफ्तर में
रहकर भी घर का ख्याल बना रहता है, उसने सोचा, वह यदि काम करे तो पूरा ध्यान बाहर
ही रहेगा, उतने वक्त तक घर को भूली रहेगी, वह दो तरफ ध्यान नहीं बंटा सकती सिवाय
उस वक्त के जब ध्यान कर रही हो, तब तो मन हजार दिशाओं में जाता है.
अभी-अभी घर वापस आई है, कल music class नहीं जा पाई
थी सो आज गयी थी, टीचर ने गाउन पहना हुआ था जैसे वह क्लास लेने के मूड में न हों,
हमेशा वह साड़ी या सूट पहने होती हैं, उसने सोचा शायद वह आराम कर रही थीं, सुबह
उन्होंने कहा था अपनी एक मित्र को खाना देने अस्पताल जाना है, शायद देर से आई हों,
उसे दो बुलेटिन भी दिए जो उसके घर के पास ही भिजवाने थे. मौसम अच्छा था और वह
जल्दी आ गयी थी सो खुद ही देने चली गयी. सभी के दरवाजे बंद थे, अपने-अपने घरों में
बंद लोग आराम कर रहे थे, एक के लॉन में गुलाबों के इर्द-गिर्द गड्ढे खुदे हुए थे,
सब्जी की क्यारी में पौधे काफी बड़े-बड़े थे और दूसरे का बगीचा बहुत सुंदर था, फूलों
से लदे मुसन्डा के पेड़ और गुलदाउदी के ढेर सारे गमले और क्यारियां, उनका घर भी
बहुत सुंदर हैं नूना को कुछ वैसी ही कैफियत हुई - भला उसकी साड़ी मेरी साड़ी से सफेद
कैसे ? पर एक पल के लिए. आज हल्की बूंदा-बांदी हो रही है इसलिए छत पर काम करने
वाले मजदूर नहीं आए, जिन्होंने कल से काम करना शुरू किया है. कल नये सोफे, कारपेट,
लैम्पशेड तथा डोर मैट बिछाने के बाद उनकी बैठक भी बहुत सुंदर लग रही है, उनके मन
भी सुंदर बनें !
ये प्लम्बर और इलेक्ट्रीशियन जब आकर हाथ लगा देते हैं तो समस्या समाप्त हो जाती है. मानो कभी थी ही नहीं.. या जदू होता है उनके हाथों में. मैं तो उन्हें कलाकार मानता हूँ. लेकिन उनके सामने सामान ठीक हो जाए तो ख़ुद को बड़ा एम्बैरेसिंग लगता है.
ReplyDeleteपरमहंस योगानंद जी के अनुभव पढने के बाद शायद अनहोनी या फिर odd situations से सामना करने से डर नहीं लगेगा. कितने ऐसे ही सिचुएशंस से भरी पड़ी है वो किताब... अविश्वसनीय, किंतु सच.
शायरों और कवियों को सुनना अच्छा होता है, लेकिन उनसे अपनी अधूरी कविताएँ पूरी करना अच्छा नहीं. अपनी शायरी में अपने लफ्ज़ न हों तो एहसास भी उधार लिये से लगते हैं.
म्यूज़िक की परीक्षा के लिये शुभकामनाएँ.. सोफ़ा और लैम्पशेड सचमुच सुन्दर लग रहा है... अब पड़ोसियों की बारी कहने की.. भला उसकी...!! :)
बहुत-बहुत काम की बातें आपने बताई हैं.. शुक्रिया..
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