Today in the morning they went to golden beach, Nanha went directly to water and
after some hesitation she also joined him. Tides came with great force and took
them back to the sea shore. She remembered their journey from Calcutta to puri
by jagnnnath express, that day in Kolkata the had visited Niko park and science
city with one of jun’s friend’s family. In fact they came to see them off also. Due to train accident some
where their train reached ten hours
late. Train journey was boring, it was
sleeper class and their co-passenger one Bengali family was unclean and
uncultured, so when train reached puri they were so happy, and guest house is
very clean and comfortable. Here sea is very violent,it was amazing to see the
waves, which came with great force and then became calm within seconds. Market
on the shore is very big and colorful. They strolled for some time and saw
typical oriya handicrafts. There are so many hotels. Raj bhavn, All India
Radio, Circuit house were also on the way. Puri seems to be a clean and
pleasant resort.
समुद्र का ऐसा विकराल रूप,
लहरों का शोर और उनमें उठती हुई सफेद झाग, सभी कुछ बेहद मोहक लग रहा था, समुद्र
कितना विशाल होता है और कितना आकर्षक. उसके पास जाओ तो लहरें फिर किनारे पर ले आती
हैं. वे काफी देर तक नमकीन पानी में भीगते रहे, जून भी आये पर ज्यादा देर नहीं
रुके. एक मछुआरे ने (लाइफ गार्ड) उन्हें ट्यूबस दे दी और उनमें बैठकर पानी पर
तिरते हुए वे काफी दूर तक निकल गये. उसे वे स्वप्न याद आने वाले लगे जिनमें पूरी दक्षता
से वह तैरा करती थी. जीवन में पहली बार इस तरह लहरों पर तिरने का अनुभव किया है जो
सदा उसके साथ रहेगा. वहाँ से लौटकर वे चिल्का झील देखने गये, जो उड़ीसा की एक विशाल
झील है, जहां डाल्फिन रहती हैं. डाल्फिन
तो ज्यादा नहीं दिखीं पर एक घंटे की नौका यात्रा अच्छी लगी. अचानक मिल गया एक
पूर्व परिचित परिवार भी उनके साथ गया था. कल वे भुवनेश्वर जायेंगे, सुबह जल्दी उठना
है. इस समय जून और नन्हा नीचे टीवी पर समाचार देखने गये हैं, वह यहाँ कमरे में है,
लहरों का शोर इस कमरे तक आ रहा है.
उड़ीसा एक सुंदर प्रदेश है,
नारियल के पेड़ों के झुंड, जगह-जगह कमल के श्वेत, नीले और गुलाबी फूलों से भरे कुंड
और सीधे-सादे लोग ! आज उनकी यात्रा का अंतिम दिन है. वे भुवनेश्वर आ गये हैं, जो
उड़ीसा की राजधानी है. साफ-सुथरा यह शहर योजना बद्ध तरीके से बसाया गया है. वे शहीद
नगर में रह रहे हैं. फोटो बनने को दिए थे, जो सुबह मिल भी गये, दोपहर को ‘महाराजा’
पिक्चर हाल में एक फिल्म देखी. थोड़ी बहुत खरीदारी की. कल उन्हें राजधानी से दिल्ली
जाना है. जहाँ से घर.
आज उन्हें यहाँ आए तीसरा
दिन है, परसों रात वे यहाँ पहुंचे, उनकी ट्रेन कई कारणों से लेट होती हुई साढ़े
पांच घंटे देर से पहुँची थी, अगली ट्रेन स्टेशन पर लग चुकी थी, उनके पास टिकट
खरीदने का समय भी नहीं था, टीटी से बात करके वे ट्रेन में बैठ गये यात्रा मात्र कुछ
घंटो की थी. टीटी ने रूपये तो लिये पर
टिकट नहीं बनाई, शायद उन रुपयों से वह अपने परिवार के लिए कोई सामान ले जायेगा. मंझला
भाई स्टेशन पर लेने आया था. ट्रेन में एक चार साल की बच्ची मिली जो बेहद शरारती थी
बल्कि बिगड़ी हुई थी, पर बहुत सुंदर थी और उसकी आवाज भी बहुत मीठी थी. यहाँ ठंड
काफी है पर बहुत ज्यदा भी नहीं. माँ-पापा तथा सभी लोग अपने-अपने तरीके से जिन्दगी
को पूरी तरह जी रहे हैं. घर में सभी को मिलजुल कर रहते देखकर बहुत अच्छा लगता है,
कहीं तनाव नहीं, कहीं कोई उलझन नहीं. सभी माँ-पिता का बहुत ख्याल रखते हैं. मंझला भाई
मकान बनाने में व्यस्त है. छोटे को अक्सर घूमना पड़ता है, अलग-अलग शहरों में. बच्चे
पढ़ाई और खेलकूद में व्यस्त हैं. कल उन्हें यहाँ निकट के गाँव में पिकनिक पर जाना
है, खाना घर से बनाकर ले जायेंगे.
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आज मेरी ओर से उसे बहुत बहुत धन्यवाद कहियेगा... हालाँकि कल मुझे गुस्सा आया था जब उसने कोलकाता को एक स्टिंकिंग सिटी कहा था. मुझे प्यार है उस शहर से.. सिर्फ पाँच साल रहा, लेकिन उसने मुझे मेरी बेटी दी... जीवन है वहाँ इसलिये शायद ज़िन्दगी सारी बदसूरती दिखती है.. यह शहर छिपाता नहीं कुछ भी.. मेक-अप नहीं करता..
ReplyDeleteपुरी की यादें ताज़ा हो गयीं! मेरी ओर से एक बार फिर उसे धन्यवाद कहियेगा!!
सही कहा है आपने, वैसे अब तो कोलकाता बहुत बदल गया है..
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