Friday, April 26, 2013

टॉम एंड जेरी



नन्हा आज गेट खोलकर ही भागता हुआ बस में चढ़ गया, वह गेट बंद करने गयी तो वही अपनी आदत के अनुसार कल्पनाओं में गुम झटके से बिना यह देखे कि उसका हाथ चींटा युगल पड़ रहा है, बंद कर दिया पर दर्द का एक तीखा अहसास हुआ तो मालूम हुआ कि डंक खा चुकी है. इतना दर्द तो जोंक के काटने पर भी नहीं हुआ था. झट प्याज और नमक लगाया पर दर्द अभी भी है एक घंटे बाद भी. आज व्यायाम भी नही कर पायी अब तक, दलिया भूनना था. सुबह महरी भी देर से आई, दूधवाला भी और फिर स्वीपर भी, कभी-कभी ऐसा होता ही है और इसी चक्कर में उसकी दिनचर्या उल्ट-पलट हो जाती है. आज स्वामी योगानंद की पुस्तक का अध्ययन भी नहीं कर पायी. नन्हे का कल अंतिम इम्तहान है, आज सुबह थोड़ा धीरे-धीरे काम कर रहा था, फुर्तीला जरा कम ही है, तभी बस के लिए दौड़ना पड़ा, वह तो अच्छा है घर के सामने से ही बस गुजरती है. कल शाम को वर्षा के बाद रौशनी में चमकती गीली-भीगी सड़क पर साइकिल चलाना अच्छा लग रहा था. कल रात को फिर पहले देर तक ढेर सारे विचार और फिर स्वप्न...इसका कारण कल रात का गरिष्ठ भोजन भी  हो सकता है, आज से ध्यान रखेगी और गर्म स्नान भी. कल शाम ही ऑस्ट्रेलियन मेडिकल गाइड में गहरी नींद के दस उपाय पढ़े और पहले ही दिन नींद गायब. शायद जगह बदलने के कारण  भी ऐसा हो, कल बहुत दिनों बाद वे गेस्ट रूम में सोये. हाथ का दर्द लिखने में बाधक बन रहा है. भगवद् गीता का कैसेट बज रहा है उसने सोचा उसी में ध्यान लगाना चाहिए.  

  कल शाम को जून उससे नाराज हो गए इस बात पर कि वह रात को भोजन में सिर्फ दो फुल्के ही क्यों खाना चाहती है, और वह उन्हें समझा-समझा कर थक चुकी है कि खाने के विषय में किसी को विवश नहीं करना चाहिए खैर....यह तो उनकी गृहस्थी में कोई नई बात नहीं है, चलता ही रहता है, पर खामख्वाह नन्हा परेशान हो जाता है. ओवर सेंसिटिव है यह लड़का. आज वह साढ़े बारह तक आ जायेगा फिर तीन छुट्टियाँ, उन्होंने कितने काम सोचे हुए हैं जो इन छुट्टियों में करने हैं. ग्यारह बजने वाले हैं पर आज अभी तक खाना नहीं बन पाया है, जून की पसंद की भरवां करेले की सब्जी बनाने में काफी वक्त लग गया है और पता नहीं खान में कैसी लगेगी.

  दो दिन कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला, परसों उन्हें मेला देखने जाना था, पर कोलकाता से उन पंजाबी दीदी के पति आ गए, काफी देर बैठे रहे, उनसे बातें करके अच्छा लगा, अगले दिन उन्हें लंच पर बुलाया था, लगभग डेढ़ बजे आये, मन में एक ख्याल आया था कि दीदी के लिए कुछ भेजेगी, पर उस समय कुछ समझ में नहीं आया और कल वे वापस भी चले गए. कल वह अपनी बंगाली सखी के यहाँ गयी, वह आजकल काफी व्यस्त रहने लगी है, ट्यूशन भी देती है, बागवानी तो है ही. उनके यहाँ एक इंग्लिश फिल्म देखी कुछ देर. आज सोमवार है, ‘कृष्ण जन्माष्टमी’ का त्योहार भी, नन्हे का एक मित्र आया है, उसके साथ वह भी कोई कार्टून फिल्म देख रहा है. उसन सोचा अब लिखना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि मन एकाग्र नहीं हो पा रहा है, थोड़ी देर ‘योगी कथामृत’ पढ़ेगी, अच्छा लगेगा.  





2 comments:

  1. मुझे भी इस तरह डंक लग चुका है ,प्याज नमक को रगड़ने के साथ - साथ लोहे की चाबी से डंक को निकलने की कोशिश भी की थी पर एक दिन तो सूजन झेलनी ही पड़े थी.

    ReplyDelete
  2. सचमुच चींटा दीखता है छोटा पर...

    ReplyDelete