कल जून ने उसे ‘शांतला पट्ट
महादेवी’ उपन्यास के चारों भाग लाकर दिए. कुछ वर्ष पूर्व इसका एक भाग उसने पढ़ा था,
आगे पढ़ने की बहुत इच्छा मन में थी. कहीं मिला ही नहीं, और अब पढ़ने बैठती है तो
किताब छोड़ने का मन ही नहीं होता. कल शाम वे काली बाड़ी गए. सोनू को बहुत अच्छा लगा
बाद में बाजार गए फिर एक परिचित के यहाँ बहुत दिनों के बाद. उनके यहाँ जाकर अच्छा
लगा, स्वच्छता नहीं थी न बैठक में न शयन कक्ष में पर किचन साफ था. आश्चर्य है किसी
के यहाँ की सफाई पर टिप्पणी करने का उसका कभी इरादा नहीं हुआ, शायद वह दूसरे धर्म
का है इसलिए..
आज फिर एक लम्बे अंतराल के बाद डायरी लेकर बैठी है, जून ने जो किताबें लाकर दी
थीं, पढ़ती रही लगातार, चारों भाग समाप्त कर दिए. उन दिनों तो समय का भान ही नहीं
था. बहुत अच्छा लगा ‘सी. नागराजन’ का यह उपन्यास. शांतला का चरित्र कितना महान था,
कितना अद्भुत, सबसे अच्छी बात उसे यह लगी कि अपने मन की शांति खोना न खोना हमारे
अपने वश में है. कल उन्हें जाना है, तिनसुकिया से ट्रेन पकडनी है, तैयारी अभी आधी
ही हुई है. एक परिचित माँ-बेटी भी उनके साथ जाएँगी, उन्हे दिल्ली जाना है. पहली
बार गर्मी के मौसम में वे घर जा रहे हैं. सुबह से ही वह व्यस्त है, अभी दोपहर के
भोजन में एक घंटा शेष है, काम करते-करते उसे थोड़ी भूख महसूस हुई, सोचा बिस्किट ही
खा ले तब तक. कुछ देर पूर्व बंगाली सखी से मिलकर आयी.
आज फिर एक सप्ताह बाद डायरी लिखने का सुयोग मिला है. जून उसे और नन्हे को
छोडकर वापस चले गए हैं. उनके जाने के एक दिन पहले उसका व्यवहार उनके प्रति अच्छा
नहीं कहा जा सकता पर वह मन से विवश थी. ऐसे वातावरण में उस स्थिति की कल्पना भी दुष्कर
थी. पर यह तो स्पष्ट है कि जाते समय वह नाराज नहीं थे. आज वह गोहाटी में होंगे,
पत्र लिखेंगे, वह भी लिख रही है. सोनू यहां खुश है. उसका मन भी स्थिर है. अच्छा लग
रहा है यहाँ रहना.
जून आज सुबह दफ्तर गए होंगे वापस जाकर. पता नहीं उसने गोहाटी से भेजे पत्र में
क्या लिखा है, उसे लिखा है या नहीं, पर वह उसकी तरह हृदयहीन नहीं है न ही उसकी तरह
स्वार्थी है. स्वार्थवश ही तो उसने ऐसा व्यवहार किया था या प्रेमवश. शायद प्रेमवश
ही. उससे अलग रहना कहीं गहरे चुभ रहा होगा न..तभी तो. प्यार कभी मरता नहीं, कभी कम
नहीं होता, कुछ भी नहीं बदलता. नन्हे को अपने पापा की याद नहीं सताती, वह अपने
दोस्तों में खुश है. काफी देर से बिजली नदारद है.
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