Tuesday, September 4, 2012

उड़द डाल की बड़ियां



नन्हें को सुलाने में उसे एक घंटा लग गया, गोदी में लेकर सुलाने से उसका सूट कितना क्रश हो गया है, कभी-कभी इतनी कहानियाँ सुनने पर भी उसका मन नहीं भरता. जून के सहकर्मी जिनका पुत्र उनके साथ रह रहा था, वापस लौट आये हैं, एक रबर प्लांट लाए हैं उनके लिये, अच्छा लगेगा जब बड़ा हो जायेगा. सोनू के लिये भी खिलौना लाए थे, प्लास्टिक का एक हवाई जहाज और मोम के रंग..पाकर बहुत खुश था, बातें बहुत करता है प्यार और गुस्सा दोनों को खूब समझता है. आज सुबह ठंड जरा भी नहीं थी, इस समय भी रोज से कम है. कल शाम उसने पोस्तदाना डालकर पपीते का हलवा बनाया. वे मार्च में फिर बनारस जा रहे हैं और यदि उसका एडमिशन हो जाता है तो वह और नन्हा वहीं रहेंगे, जून पुनः जुलाई में आएँगे. उसका पेट भारीपन की शिकायत कर रहा है, शायद गरिष्ठ भोजन करते हैं वे लोग आजकल, सर्दियों में वैसे भी पराठों पर ज्यादा जोर रहता है. कल से दोपहर को भी टीवी के कार्यक्रम दिखाए जायेंगे. कल गणतन्त्र दिवस है, परेड देखेंगे वे लोग, यदि रंगीन में देख सकें तो कितना अच्छा हो, उसने सोचा अपनी उड़िया मित्र से बात करेगी.

छब्बीस जनवरी की सुबह जो वह अस्वस्थ हुई तो लिख नहीं सकी. ज्वर था, गला भी खराब हुआ. फिर शनि व इतवार को वक्त ही नहीं मिला. आज पहली बार उसने दोपहर का कार्यक्रम देखा, लैम्प शेड बनाने का तरीका कितना अच्छा है. कल सभी को पत्र लिखे, जून लिखते-लिखते भावुक हो गए और अपने को रोक नहीं सके. आँसू बहाना भी तो कमजोरी की निशानी है. यहाँ आकर भी उसने दो-तीन बार उसे स्वप्न में देखा है, स्वप्न में ही वे उसे देख सकते हैं, वास्तव में तो कभी देख नहीं पाएंगे. उस दिन माँ का लम्बा सा पत्र पढ़ मन भर आया. अगर वह उनके पास रहकर आगे पढ़ाई कर सके तो ज्यादा अच्छा रहेगा, वैसे कहीं भी रही ज्यादा अंतर नहीं पड़ेगा. उसे गणित की पढ़ाई भी शुरू करनी है, उसने सोचा, लिखने के बाद किताब निकलेगी या जून की सहायता लेनी होगी, पता नहीं किताबें कहाँ रखी हैं. इतवार को जून तिनसुकिया गए थे उसने सुबह के टीवी कार्यक्रम देखे, ‘भारत एक खोज’ सबसे अच्छा लगा. लिखना शुरू करने से पूर्व वह अखबार पढ़ रही थी, यह सोचकर  पुनः वही उठा लिया, कि पढ़ने के वक्त कोई लिख कैसे सकता है.

फिर तीन दिन का अंतराल, आज जून को विभाग से नयी डायरी मिल गयी, जिसका इंतजार करने को वह उसे कह रहे थे, बहुत अच्छी है इससे तो कहीं ज्यादा जिस पर वह लिख रही है, पर अब वही उसमें लिखेंगे. कल वह दिल्ली जा रहे हैं, पूरे एक हफ्ते के लिये. यहाँ ज्वाइन करने के बाद पहली बार कहीं और इंटरव्यू देने. उसकी आँखें पता नहीं क्यों दुःख रही हैं, चश्मा लगाना ही पड़ेगा क्या ? यह जिंदगी भी बस इसी हिसाब-किताब में बीतती जाती है. सोचती है जब पूरी तरह स्वस्थ रहेगी तब कितना अच्छा रहेगा खूब काम करेगी, पर तब आराम ही तो करती है. नन्हा आज फिर खूब जिद करके सोया है, किस तरह सो रहा है अब, मासूम चेहरा लिये, जैसे कभी तंग करना जानता ही न हो. उसकी एक मित्र बड़ी देकर गयी है उड़द डाल की बड़ियाँ. मौसम आज डल है, धूप खिली हुई नहीं निकली. कल शायद जून उसकी रिपोर्ट ले आयें, वैसे अब उसकी आँखों में उतना दर्द नहीं है. ननद की चिट्ठी आयी है, पच्चीस को वे लोग बहुत उदास थे, छब्बीस को वह भी तो दिन भर बेड पर थी, जून बहुत ख्याल रखते हैं ऐसे में, इस समय सीएमडी का भाषण सुनने क्लब गए हैं.


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