Sunday, September 23, 2012

क्यों चुप हैं तारे



साढ़े ग्यारह बज चुके हैं, रोज वे लोग इस समय तक दोपहर का भोजन खा चुके होते हैं, आज पिता गली में लगा चापाकल ठीक करने गए हैं, यह नल अगर खराब हो जाये तो उसे ठीक करने की जिम्मेदारी पिता और बाबूजी(मकान मालिक) की है, और अगर ठीक रहे तो इस्तेमाल सारा मोहल्ला करता है. पिता का व्यवहार कभी-कभी उसके समझ में नहीं आता, कभी इतने कठोर, कभी इतने उदार. कल जून का पत्र आया, उसे नहीं लगता कि वह भी उसके पिताजी की सेवानिवृत्ति के उत्सव पर घर जाने की बात पर राजी होंगे, उसने सोचा है वह दस दिन वहाँ रहेगी, कितने दिन हो गए हैं उन सब से मिले हुए, विशेषतया माँ-पिता से.
कल अंततः उसकी पासबुक बनवाने के लिए बैंक से देवर के एक मित्र आकर फार्म भरवा कर ले गए. वह ड्राफ्ट ऐसे ही पड़ा था, जो जून ने उसके लिए भेजा था. उसके पास पैसे खत्म हो गए थे, आखिर उसने माँ से कह ही दिया.
कल सुबह से समय ही नहीं मिला कि अपने निकट आ सके, यानि उसके पास, दिन भर कैसे बीत  गया पता ही नहीं चला. दिन में सोना हर तरह से हानिप्रद है, कल रात देर तक नींद नहीं आ रही थी, जिससे सुबह भी देर से उठी, और दिन में पढ़ नहीं पाई वह अलग. आज नन्हा उसके साथ ही सुबह पांच बजे ही उठ गया था, सो उसका स्नान, नाश्ता भी हो चुका है. वे दोनों ऊपर बैठे हैं, उसने सोचा एक घंटा यहाँ पढ़ाई करके ही नीचे जायेगी, यहाँ कितना शांत है वातावरण, नीचे तो शब्दों का शोर ही शोर हर तरफ.. जून के मित्र भी अजीब हैं, टिकट के पैसे ही नहीं ले रहे, अब आज तो वह आ नहीं रहे, कल आएंगे तो किसी भी तरह उन्हें पैसे देने हैं. एक अजीब तरह की बेचैनी छायी है मन पर कल शाम से जब से उन्होंने पैसे वापस किये. रात अजीब-अजीब स्वप्न देखती रही.

आज शायद उसकी दो भांजियों में से किसी एक का जन्मदिन है, कितनी बार सोचा कि चारों बच्चों  के जन्मदिन डायरी में नोट करने हैं पर ऐसा कभी कर नहीं पायी. कल रात एक फ्रेंच फिल्म देखने नीचे कमरे में गयी, नन्हा छत पर सो चुका था, पर निर्धारित समय पर फिल्म शुरू नहीं हुई, वह बैठे-बैठे ही सो गयी, फिर अचानक नींद खुली तो फिल्म शुरू हो चुकी थी, नींद का आवेग मन पर छाया था, सो वह समझ नहीं पायी कि पर्दे पर क्या चल रहा है, सो वापस छत पर आ गयी, पर आश्चर्यचकित रह गयी कि आकाश पर चमकते तारे देखकर नींद पता नहीं कहाँ खो गयी और काफी देर वह तारे ही गिनती रही. अभी कुछ देर पूर्व ही वह स्नान करने गयी, पानी में ठंडक नहीं थी और पानी की बहुत कमी भी है यहाँ, सो स्नान के बाद भी तन में ठंडक नहीं समायी है. उस जून का ख्याल आया, वह भी तैयार हो रहे होंगे. पांच दिनों बाद उन्हें भी एक परीक्षा देनी है, खूब पढ़ाई हो रही होगी. कल उसकी पासबुक व चेकबुक मिल गयी, उसने सोचा आज बैंक जाना चाहिए, देखेगी.
कल शाम जून के मित्र आए और उसने टिकट के पैसे दे दिए, कल बैंक भी गयी. उसके पेन की रीफिल खत्म हो गयी, सो घर में पड़ा एक पेन उसने उठाया, पर वह भी रुक-रुक कर चल रहा है.


  

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