Saturday, September 15, 2012

उपलों का धुआँ



सुबह के साढ़े छह बजे हैं, कुछ देर पहले वह नन्हे को उठाकर ऊपर ले आयी है, नीचे का कमरा इतना गर्म था कि उसे वहाँ छोड़ने का उसका मन नहीं हुआ. उसकी बुआ को भी उठाकर आयी थी, पर वह अभी तक सोयी है. कल जून के दो पत्र मिले, उसने जवाब भी दे दिये. हँसेगा वह पढ़कर शायद दो पल के लिए उदास भी हो जायेगा. पर उसकी कुछ बातें उसे अच्छी नहीं लगीं, एक तो कुक के बनाये खाने की तारीफ करना और दूसरा यह कहना कि वह उसे सबसे अधिक नहीं, सबके समान ही चाहता है. वैसे उसे इन बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं थी, उनके सम्बन्ध को अब तक इतना परिपक्व तो हो जाना चाहिए कि... या उसे भी अपने को इतना बड़ा तो समझना चाहिए. संभवतः विवाह सम्बन्ध एक कभी न पुराना होने वाला रिश्ता है, नित नूतन. आज भी उसका किसी और की तारीफ करना उसे उतना ही दंश देता है जितना विवाह के तुरंत बाद. उसके पत्र से यह भी पता नहीं चला कि वह उसकी कमी महसूस करता है या यह लिखकर वह अपने को कमजोर नहीं कहना चाहता. उसे आश्चर्य हुआ, एक और तो वह उसे इतना प्यार करने का दम भरती है, दूसरी और उसके ही विरुद्ध सोचती है, उससे नाराज होती है, क्या यह भी प्यार है या यह है उसका अहम्,  प्यार तो देने का नाम है, मांगने का नहीं, लेने का भी नहीं. वह खुश रहे, स्वस्थ रहे, बस यही उसका अभीष्ट होना चाहिए, उसके स्नेह की धूप उसे चारों और से घेरे रहे, उसका प्यार पहले इतना सबल तो हो कि जरूरत पड़ने पर वह उसका आश्रय ले सके. कहीं उसकी इस नुक्ताचीनी से धीरे-धीरे उससे दूर न हो जाये, जैसे कि अब उसे लगता है.

कल का सा समय है, आज सोनू अपने आप ही ऊपर आ गया है, उसे भी उसकी तरह गर्मी व घुटन के कारण नीचे नींद नहीं आ रही थी. कल बैसाखी थी, समाचार सुनने से ज्ञात हुआ, जून का दफ्तर भी बंद होगा, कल उसका पत्र नहीं आया, बड़ी भाभी व ननद के पत्र आये. आजकल वे लोग सुबह भोजन जल्दी कर लेते हैं, इससे दिन में पढ़ने का कुछ समय मिल जाता है. आज रामनवमी है. बचपन में इन त्योहारों का विशेष अर्थ होता था, अब तो समाचार की लाइन बन कर रह गए हैं. कल रात रोज की तरह ग्यारह बजे सोये और दस मिनट बाद ही बिजली गुल हो गयी, और पडोस के घर से उपलों का धुआँ नाक में भरने लगा. पंखे के बिना एक तो यूँ ही कमरे में इतनी घुटन रहती है दूसरे धुएँ ने एकदम परेशान कर दिया. सोनू को लेकर ऊपर कमरे में आ गयी, गर्मी तो यहाँ भी उतनी ही थी पर धुआँ नहीं था, कुछ देर बाद ननद भी आ गयी. कहने लगी गर्मियों में रात-रात भर लाइट गायब रहना यहाँ आम बात है. कैसे बीतेंगे ये महीने..यूँ और तो कोई परेशानी नहीं है. पिता व ननद सभी बहुत अच्छे हैं, स्नेह से भरे, हमेशा दूसरों के काम आने वाले.  नन्हे को भी बहुत प्यार मिलता है. जून की कमी लगती है, अगर उसका खत नियमित आता रहे तो वह भी न लगे. इस हफ्ते उसका सिर्फ एक खत आया है.

उसका मन अशांत है, कारण उसका पत्र नहीं आया है. वह जानता है कि उसे कितनी प्रतीक्षा रहती है उसके पत्रों की. कौन जाने क्या हुआ है, कुछ भी हो यह तो स्पष्ट है कि उसके मन की शान्ति, सुख सभी चले गए हैं. यूँ उसे मालूम है कि मन के सुख के लिए दूसरों पर अवलम्बित होना अपनी कमजोरी है, पर जून दूसरा कहाँ है. अपने ही परायों से ज्यादा दुःख देते हैं क्योंकि वही तो सुख देते हैं. सोनू अस्वस्थ है, कल डॉ साहब आये  थे, दवा बता कर गए हैं, कितना दुबला हो गया है.

एक और इतवार ! पिछली रात देवर का एक मित्र माँ-पिताजी से मिलने आया. कल दोपहर के भोजन के समय नन्हें ने निर्दोष भाव से पूछा, चाचा कहाँ हैं, उसकी बात सुनकर अचानक वे सभी चुप हो गए. इसका अर्थ हुआ कि छोटू भी उसे याद करता है. वह दादा-दादी को व्यस्त रखता है, लेकिन कभी-कभी उसे बहुत परेशान करता है. 

2 comments:

  1. मार्मिक कहानी...एक सच

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  2. रश्मि जी, आपका स्वागत है इस ब्लॉग पर, समय निकाल कर पिछली कड़ियाँ भी पढ़ें तथा हो सके तो फौलोवर भी बनें

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