Friday, September 21, 2012

गहराई कितनी गहरी...



कल रात वर्षा ने आंखमिचौली खेली, दो बार बिस्तर ऊपर-नीचे हुआ, फिर उन्हें नीचे कमरे में सोना पड़ा, इतनी घुटन, इतनी बंद हवा कि अभी तक सिर भारी लग रहा है, और नींद भी कैसी स्वप्नों भरी थी. इस समय भी मौसम बेहद गर्म है. नन्हा इन सारी परेशानियों के बीच कैसे आराम से सोया है, बच्चे आखिर बच्चे ही होते हैं, बादशाह अपने मन के. दिन में जब वह सोया न हो, उसके हाथ, पैर तथा मुंह चलते ही हैं, न चलते-चलते थकता है न बोलते-बोलते. जून को पत्र लिखते समय वह हर बात लिख देती है, छोटी-बड़ी अपने मन की, और उसके बाद एक अजीब सा खालीपन महसूस होता है, यह अपना आप उड़ेंल देना, अपने को निर्वस्त्र कर देने सा ही है न, कहीं कुछ तो बचा कर रखना ही चाहिए, भले ही जून उसका ‘स्वयं’ ही क्यों न हो, स्वयं से भी कुछ बातें छिपी रहें तो रहस्य बना रहता है, कौतूहल भी. कल रात से उसे खत लिखने के बाद से ही एक रीतापन सा महसूस हो रहा है अब उसका अगला पत्र आने तक ऐसा ही रहेगा.

परसों उसने सौ रुपये के नोट का फुटकर करवाया, दो ही दिन में आधे पैसे खर्च हो गए, जब तक नोट बंद था ठीक था. ननद के पेपर चल रहे हैं. सोनू और वह छत पर हैं, माँ किचन में. बिना प्रेस किये कपड़े पहने हों कभी याद नहीं पड़ता, सातवीं-आठवीं में पढ़ती थी उसके बाद से तो कभी भी नहीं, यहाँ प्रेस खराब है, पैसे देकर कपड़े प्रेस करना खलता है, पर क्या करें. कल शाम को गर्मी ज्यादा थी उसने स्नान किया, बाल पोंछे ही नहीं, देर तक ठंडक साथ रही. अभी फिर रीठा आदि लगाकर बाल धोए हैं, छींके आनी शुरू हो गयी हैं, लगता है सर्दी होगी, वही कॉमन कोल्ड...

जून का खत आया है, सो मन तो खुश है, पंछी की तरह उन्मुक्त खुले-खुले गगन में उड़ता हुआ सा..उसने भी उसे लिखा है, उस भोले, उदार मित्र को, वह स्वयं भी नहीं जानती थी कि उसके लिए इतना प्यार छिपा है उसके मन में , उसके मन में उसके सिवा और कुछ है भी कहाँ. वह खुश रहे, सुखी रहे यही दुआ निकलती है हर पल. उसको खुश रखना उसका सर्वप्रिय कार्य है. आज घर का माहौल हल्का-हल्का है, माँ भी ठीक हैं, पर उनका दुःख कितना गहरा है उसका अनुमान कोई और नहीं लगा सकता. पर फिर भी जीना तो है ही, खुश भी रहना है, क्यों कि जीवन है तो खुश रहने की इच्छा भी है, सुख की आकांक्षा भी है. दुःख को भुला कर मुस्कुराना भी है. समाचारों का समय हो रहा है, जून भी समाचार दख रहे होंगे.

कल रात उसने ‘गहराई’ फिल्म देखी, फिल्म के दृश्य बार-बार स्वप्न में आ रहे थे. पहले कभी इसके बारे में सुना था. आज इतवार है, वह स्नान करके लिखने बैठी है, नन्हा सो रहा है. जून भी शायद चाय की चुस्कियां ले रहे होंगे. आज शाम को उन्हें चाची की लड़की की मंगनी में जाना है. माँ-पापा का खत भी आया है, उसे घर जाना ही चाहिए. उसने सोचा २८ या २९ को जायेगी, रिजर्वेशन के लिए जून के मित्र को कहना होगा.

 



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