Saturday, September 22, 2012

जश्न का माहौल



कल रात वे लोग साढ़े दस बजे वापस आए. कार्यक्रम अच्छा था, पर पार्टी का या शादी-ब्याह का भोजन गरिष्ठ तो होता ही है, पेट अभी भी इसकी खबर दे रहा है. समारोह में न सादगी ही थी, न कोई नियम, बस अपने आप चलता जा रहा था, नन्हा तो वहाँ की भीड़, रोशनियों और बच्चों में कैसा घुलमिल गया, उसे बड़ा आनंद आ रहा था था. माँ पहले तो वहाँ जाने के नाम से ही मना कर रही थीं, शुरू में वहाँ अपने को अनफिट भी समझती रहीं पर बाद में बहुत आनंद ले रही थीं. सब मिलाकर देखा जाये तो सब ठीकठाक ही था. आज उसने सभी भाई-बहनों को पत्र लिखे, और एक छोटा सा पत्र जून को भी, उसे कैसा लगेगा इतना छोटा पत्र देख कर. वह उसे एक पेज पर लिख कर ले जायेगी, बाजार से पुस्तकें भी लाएगी और भी कुछ सामान यदि सम्भव हुआ. आज सुबह तीन बजे ही वह छत से नीचे आ गयी थी, ऊपर ठंड बढ़ गयी थी. नन्हे की नाक बंद हो गयी है, उसका बिस्तर पिताजी ने नीचे लगा दिया. वह भी कुछ देर सोयी एक स्वप्न देखा कि कॉलेज में या हॉस्टल में उसके कमरे का ताला बदमाशों ने तोड़ दिया है और उसकी किताब कॉपी चुरा ली है. रो ही पड़ी होती कि नींद खुल गयी. पर अब पढ़ते-पढ़ते उसकी आँखें बंद हो रही हैं, उसने सोचा पहले स्नान करना ही ठीक रहेगा.

एक सुंदर पन्ने पर उसने लिखा- मिसेज एस ने बैठक के दरवाजे पर खड़े होकर कमरे पर आखिरी नजर डाली, हाँ, अब ठीक है. कल ही उन्होंने सारे पर्दे, कुशन, चादरें आदि धुले-धुलाए प्रेस किए हुए बिछाये थे. कमरे की एक-एक वस्तु को पोंछ कर नए सिरे से रखा गया था. कमरा निखरा-निखरा सा लग रहा था. दूसरे कमरों में भी कुछ न कुछ बदलाव तो आए थे और रसोईघर में भी. हों भी क्यों न मिस्टर एस अगले हफ्ते सेवा निवृत्त हो रहे थे. उस अवसर पर उनके सभी बच्चे अपने-अपने परिवारों के साथ आ रहे थे. घर में जश्न का सा माहौल रहेगा. पति-पत्नी दोनों अपने-अपने विचारों में खोये रहते थे. एक-दूसरे से कहे या पूछे बिना ही उनके चेहरे देखकर जाना जा सकता था की वे अपने भविष्य के बारे में सोच रहे हैं. पत्नी प्रसन्न थी कि सेवा निवृत्ति के बाद दोनों साथ-साथ समय बिताएंगे. कम बोलने वाले उनके पति यह सोचा करते थे की अपना समय संगीत, पुस्तकों और बागवानी को देंगे. जाहिर है इसमें पत्नी का साथ तो रहेगा ही. दोनों को साथ-साथ बिताए वर्षों की खट्टी-मीठी स्मृतियाँ बार-बार आकर घेर लेती थीं. मिसेज एस की आँखों में कई बार एक शिकायत झलक जाती थी जो कड़वी स्मृतियों का परिणाम थी और कभी-कभी एक स्निग्ध आभा जो सार्थक क्षणों की देन होती थी. वह  कब चाहती थीं कि उन सब बीती बातों को याद करें पर स्मृतियों पर किसी का वश तो नहीं. यही हाल कमोबेश श्री एस का था, यह अलग बात थी कि उनकी यादों का दायरा कभी घर-परिवार में सिमट जाता था और कभी कार्यालय व सहयोगियों में. अपने विभाग में एक उच्च अधिकारी रहे थे पिछले कई वर्षों से, जिम्मेदारियां काफी थी, जिन्हें वह अच्छी तरह से निभा रहे थे. स्वभाव से मितभाषी, उदार, कोमल हृदयी वह कभी अपने परिवार के प्रति कठोर हो सके थे अब सोचकर जैसे उन्हें विश्वास नहीं होता था. हो सकता है ऐसे किन्हीं दुर्बल क्षणों में उनका हृदय अपनी जीवन संगिनी के प्रति किये गए जाने-अनजाने अपराधों के लिए क्षमा मांग चुका हो. बड़ा पुत्र उनके कठोर अनुशासन में पला जिसका असर उसके मन-मस्तिष्क पर कितना पड़ा यह तो नहीं कहा जा सकता पर यह जरूर है कि वह अंतर्मुखी है मंझले और छोटे बेटे के आते-आते यह अनुशासन काफी ढीला पढ़ गया और सबसे छोटी बेटी तक तो समाप्त प्रायः ही हो गया. अब सभी आ रहे हैं. कभी-कभी किसी विवाह अथवा त्यौहार के अवसर पर ही ऐसा हो पाता है.
आज वह दिन आ ही गया. पिछली रात देर तक बातें होती रहीं. वे दोनों तो मुश्किल से दो-तीन घंटे ही सो पाये होंगे. और सुबह पाँच बजे ही आदत के अनुसार उठ गए हैं. प्रातः भ्रमण उनका पुराना शौक है. पिछले कुछ वर्षों से श्रीमती एस का भी, पहले उन्हें कहाँ वक्त मिल पाता था. जब सब बच्चे छोटे थे. सुबह उठते ही घर के कामों में लग जाना पड़ता था. बच्चे जब तक जगें वह कितना कम निपटा चुकी होती थीं. तब खर्च अधिक था सभी काम उन्हें अपने हाथों से करने होते थे. घर में गैस का चूल्हा भी नहीं था तब. वे दिन क्या वह कभी भूल सकती हैं, सर्दी हो या गर्मी उनके दिन की शुरुआत पाँच बजे ही हो जाती थी. अपनी पूरी मेहनत और आंतरिक शक्ति के बल पर उन्होंने सभी बच्चों को अच्छे संस्कार दिए, आधुनिक माता-पिता की तरह उन्होंने बच्चों के पालन-पोषण पर पुस्तकें तो नहीं पढ़ी थीं बस जो कुछ अपने आस-पास देखा था और जो उनके मन को अच्छा लगा वही शिक्षा उन्हें दी. पर जब परिवार बड़ा हो तो कोई न कोई पक्ष छूट ही जाता है बच्चों को बाहर की दुनिया के जिस कुप्रभाव से बचाकर रखा वहीं घर में उन पर होता अन्याय शायद वे देख नहीं पाए. रोजी-रोटी की फ़िक्र ने तथा परिवार पर विश्वास ने जो कि सामान्यतः हर घर मे होता ही है. बड़ा पुत्र और उसकी पत्नी परसों ही आ गए थे. बेटा अच्छे पद पर है, पत्नी भी मिलनसार और शौक़ीन मिजाज की पाई है. पर ईश्वर जहां फूल खिलाता है कांटे भी उगाता है. बेटे की शादी को दस-ग्यारह साल हो गए हैं पर आंगन अभी तक सूना है. मंझले बेटे की नौकरी भी अच्छी है, वह पत्नी के साथ दो हफ्ते पहले आ गया है. और तीसरे बेटे की शादी अभी हाल में ही हुई है. छोटी बेटी अभी पढ़ाई कर रही है, उसकी शादी को छोडकर सभी बच्चे अपने अपने परिवार में व्यवस्थित हैं. सांसारिक दृष्टि से देखें तो सभी खुश हैं.
वह जो शब्द-चित्र लिख रही थी लगता है, पूरा हो गया है क्योंकि अब कलम रुक-रुक जाती है.

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