Wednesday, September 5, 2012

चन्द्रकान्ता -देवकीनंदन खत्री


कल वे चले गए, अभी तो ट्रेन में होंगे, कल शाम को जाकर पहुंचेंगे. कल से समय अच्छा ही बीत रहा है, शाम को उसकी सखी आ गयी थी, उसके पति भी दिल्ली गए हैं. सुबह वह उसके घर गयी और अभी वह फिर आयेगी. सुबह से लगातार होती वर्षा के कारण मौसम बहुत ठंडा हो गया है. जून कह कर गए हैं कि वह दोनों घरों पर पत्र लिख दे. नन्हा अभी सो रहा है, कितना शरारती है, मगर कितना प्यारा है, डांट खाकर भी उसके निकट आ कर सो जाता है. अभी कुछ देर पहले एक मराठी फिल्म देखी, अच्छी थी. आज इतवार है, टीवी देखने में ही समय गुजर जाता है, पढ़ाई कुछ विशेष नहीं हो पा रही है. जून कल दो किताबें लाए थे, हिंदी उपन्यास- चन्द्रकान्ता और गोरा. पढ़ना शुरू करेगी तो समाप्त किये बिना मन नहीं मानेगा. कितने दिन हो गए हिंदी की कोई पुस्तक पढ़े हुए. उसने सोचा यदि जून इंटरव्यू में सफल हो जाते हैं तो...भविष्य सुंदर दिखाई देता है, अपना घर अपना सब कुछ पांच-छह वर्षों में ही...नहीं तो जाने कितने बरस कम्पनी के मकान में कटेंगे बीस-तीस बरस, सोनू को भी तब अच्छे स्कूल में पढ़ा सकेंगे, स्वप्न कितने सुंदर होते हैं न, देखे सब्जी कहीं जल न जाये, उसे ध्यान आया..यह यथार्थ है.

कल दिन भर व्यस्त रही, शाम को उसकी दो सखियाँ आयीं थीं सबने एक साथ खाना खाया, उसे अच्छा लगा पता नहीं उन्हें कैसा लगा हो, दस बजे हैं, जून का इंटरव्यू होने ही वाला होगा. अभी चार-पांच दिन और लगेंगे उसको आने में, आज चौथा दिन है उसे गए. ‘गोरा’ उसने पूरी पढ़ ली, और किसी काम के लिये वक्त ही नहीं मिला. कल दिन भर वर्षा हुई, ओले भी गिरे, ऐसा लगा. आज आकाश बिल्कुल स्वच्छ है.

आज सुबह से उसमें सात्विक प्रवृत्ति का उदय हुआ है तभी तो सब कुछ भला-भला लग रहा है. दीदी को उस दिन पत्र में निराशा भरी बातें लिख दीं थीं, उसने सोचा एक पत्र और लिख दे. मौसम भी आज मन की तरह है साफ, स्वच्छ और शीतल. जून आज बनारस में होंगे. कल शाम उस भी खाना खाने के लिये बुलाया था, मगर सबके पहुँच जाने के बाद उसकी सखी ने बनाना आरम्भ किया, उसे बहुत भूख लग आयी थी, सफेद चने, पूरी और रोटी खाकर बहुत अच्छा लगा. कल रात उसने ‘चन्द्रकान्ता’ भी समाप्त कर दी, अब आज से अपनी पढ़ाई शुरू करेगी.



   










   








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