खत आया है, ठीक से पहुंच गए
थे, एक दिन लेट होने से कोई समस्या नहीं हुई क्योंकि जीएम नहीं थे. मार्च का अंतिम
दिन, फागुन का अवसान, अप्रैल का महीना यानि गर्मियों की शुरुआत ! आज सुबह पांच बजे
उठी, नन्हा भी साथ ही उठ गया पर आधे घंटे बाद फिर सो गया. इस वक्त खेल रहा है ऊपर
मकान मालिक की छोटी बेटी के साथ. कल अप्रैल फूल है, बचपन याद आ जाता है इस दिन,
पडोस की एक लड़की एक बार साबुन को बर्फी की तरह काट कर लायी थी पहचानना मुश्किल था,
रेडियो पर अनाउंसर भी सुबह से अजीब-अजीब बातें शुरू कर देते थे. बहुत दिनों बाद उसने
रीठा-आंवला-शिकाकाई से बाल धोए. कितना अपनापन लगता है यहाँ कभी-कभी, जून वहाँ अकेले
हैं, यही बात खलती है. बाबूजी, मकानमालिक के बूढ़े पिता को गुस्सा आ रहा है कि
पड़ोसी उनकी दीवार पर (जो दोनों की साझी दीवार है) टाइल्स क्यों लगा रहा है, पिता
भी उनका साथ दे रहे हैं इस क्रोध में.
कल रात एक अजीब हादसा हुआ, बाबूजी के बेटे ने अपनी किशोरी कन्या को टीवी खराब
हो जाने के कारण बेतहाशा मारना शुरू कर दिया, वह जरूर नशे रहे होंगे. ननद ने
बताया, यह कोई नई बात नहीं है, कितनी ही बार ऐसा लड़ाई-झगड़ा करते हैं. नशे में
इंसान, इंसान नहीं रह जाता, हैवान ही बन जाता है. कल रात उसका मन बहुत परेशान हो
गया था घर की याद आ रही थी. उसे नहीं लगता कि एक साल वह यहाँ रह पायेगी. उसे याद आया,
बाजार से अंतर्देशीय पत्र लाने हैं, सभी को जवाब देने हैं.
अभी उसे दशाश्वमेधघाट जाना है, माँ के साथ टहलने व कुछ सब्जी लेने. कल नन्हें
को लेकर पहली बार गयी खिलौने की दुकान में, हर बार वे तीनों साथ होते थे. घर लाते
ही एक पंख खराब भी कर दिया पर उसकी खुशी, उसकी आँखों की चमक, खिलौने की दुकान पर
जाने का उसका अनुभव भी तो बहुत है, उसे जैसी कार चाहिए थी वैसी नहीं मिली. कल जून,
बड़ी भाभी व बड़ी ननद के पत्र आए. जून को उसकी याद उतनी नहीं आती जितनी उसे या वह
लिखता नहीं है. उसका पर्स खाली होता जा रहा है, उसे लिखे या पहले वह.
थोड़ी देर पूर्व ही वह पढ़ने बैठी है, पर ऑंखें हैं कि साथ नहीं दे रही हैं. आधा
घंटा और बैठकर वह खाना बनाने ऊपर किचन में जायेगी. नन्हें को जो जहाज ले दिया था,
खराब कर दिया है उसने, क्या यह धन की अपव्ययता है, शायद नहीं, थोड़ी देर के लिये
उसकी खुशी से कीमत वसूल हो गयी. पर ऐसी थोड़ी देर की खुशी कम कीमत के खिलौने से भी मिल
सकती थी. खैर जो हुआ सो हुआ. अब उसके पापा ही खरीद देंगे उसे. कल एक पत्र और लिखा,
कुल छह पत्र लिख चुकी है पर जवाब एक का ही, कहाँ जाते हैं उसके खत. माँ आज फिर
बहुत उदास हैं, उनके मन की क्या अवस्था है वह नहीं जान सकती, पर कब तक, आखिर कब तक
वह यूँ निष्क्रियता का आवरण ओढ़े रहेंगी, उदासीन होकर कितने दिन जिया जा सकता है, मन
को खुश रखना पड़ता है, उसके लिए कोशिश करनी पडती है, मगर कोई चाहे तब तो.
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