आज सुबह घर में सत्यनारायण
की कथा हुई थी, दिन भर उसकी सुगंध फैली रही. नन्हा भी आज जल्दी उठ गया था, शाम को
उसे लेकर माँ के साथ गंगा घाट तक गयी, वह बेहद खुश था, नदी को देखते ही दूर से
बोला, गंगा जी ..वापसी में जैसे ताकत भर गयी थी उसमें. इस समय रात्रि के साढ़े आठ बजे
हैं, ननद ने पेठे की मिठाई का एक टुकड़ा दिया, उसके मुख में दाहिने तरफ दांत में
दर्द होने लगा है.
आज का दिन शायद उनके लिए कोई विशेष अर्थ रखता है, जून को भी याद होगा, यही
तारीख तो थी कितना इंतजार किया होगा उसने उसके पत्र का तब..और आज भी उतना ही
इंतजार रहता है. जब तक यह इंतजार बरकरार है, प्यार भी बरकरार है. आज सुबह नींद
पौने छह बजे खुली. एक बार सुबह उठी थी, सोनू ने पानी माँगा था, तब चार बजे थे, सोचा
इतनी शीघ्र उठके क्या करेगी, लेकिन उसके बाद नींद खुली तो..दिन काफी चढ़ आया था.
शायद आजकल साढ़े पाँच बजे से भी पहले सूर्योदय हो जाता है. अप्रैल समाप्ति पर है. उसे
याद आया आज इतवार है, जून भी सुबह की चाय पी रहे होंगे, उसने पूछा, बोलो क्या
कार्यक्रम है आजका ?
सुबह के पाँच बजे हैं, ऊपर छत पर सोने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि सुबह नींद
जल्दी खुल जाती है. वरना पिछले दो-तीन दिन पौने छह बजे से पूर्व उठ ही नहीं पाती
थी. अभी सूर्योदय नहीं हुआ है, दिन और रात के मिलन का समय कितना भला होता है, आकाश
हल्की कालिमा की चादर ओढ़ लेता है कि सब कुछ छिपा भी रहे और दिखाई भी दे. नन्हा सो
रहा होगा. वह नीचे सीढ़ियों पर बैठी है, यहाँ हवा रुकी हुई सी है. बैठना तो ऊपर ही
चाहती थी पर छत पर और भी लोग सो रहे हैं.
..पर अब वह ऊपर आ गयी है, ऊपर काफी रोशनी है ठंडक भी एक टेबिल फैन जो चल रहा
है. आज जून का पत्र आना ही चाहिए, अन्यथा...अन्यथा क्या, कुछ भी तो नहीं, इंतजार
करेंगे और क्या. कल शाम टीवी पर ‘अनुरोध’ फिल्म दिखाई गयी थी, वर्षों पूर्व माँ-पिता,
भाई-बहनें सभी मिलकर गए थे यह फिल्म देखने, कहाँ पर, यह तो याद नहीं, शायद बनारस
में ही, पर बहुत अच्छी लगी थी सभी को यह फिल्म, उसे लगा कि इसी तरह उन सभी को भी
यह बात जरूर याद आयी होगी, यदि वे भी इतवार शाम की फिल्म देखते होंगे.
कल जून का एक पत्र मिला और एक बैंक ड्राफ्ट भी, समझ नहीं आता कि इससे उसे खुशी
हुई है या परेशानी बढ़ी है. उसे कल रात पहली बार स्वप्न देखा, कितना दुबला-पतला,
खोया-खोया सा लग रहा था, दाढ़ी बढ़ी हुई थी. किन्ही परिचित के यहाँ जाने की बात कह
रहा था, कोई डिपार्टमेंटल समस्या थी. उसने मन ही मन उसे शुभ प्रभात कहा और स्नेह
भेजा. इस समय सुबह के सवा छह बजे हैं, नन्हा सोया है और छत पर आए बंदरों के कारण
आँगन में शोर मचा हुआ है. उसे नीचे जाकर पढ़ने की बात सोचनी चाहिए पर उस कमरे में कितनी
घुटन होगी रात भर बंद रहने के कारण. रात फिर छत पर सोये थे, शाम से ही लाइट गायब
थी. अँधेरे में और गर्मी में किचन में अकेले रहने का उसका कोई इरादा नहीं था, सो खाने
में उसने सिर्फ नमकीन चावल बना दिए थे, जो पिताजी को पसंद नहीं आया, उनके अनुसार
पूरा खाना बनना चाहिए था. कल उसने जून को पत्र लिखा. याद आया कि कितने दिन हो गए
दीदी का पत्र नहीं आया. उसका मन शांत नहीं है, तनाव से जैसे मस्तिष्क तना है, वजह,
चारों और से आती आवाजें, एकांत अब सम्भव नहीं है, सर्दियों की बात और थी, सुबह
जल्दी उठकर एक घंटा स्वयं के साथ हो सकती थी.
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