Sunday, August 5, 2012

रवा दोसा और कटलेट



कल वह अभी स्नान ही कर रही थी कि नन्हा उठ गया और उसके बाद पढ़ना-लिखना कुछ नहीं हुआ, दोपहर को भी वह सिर्फ एक सवा घंटा ही सोया, उसके साथ व्यस्त रहते समय का पता ही नहीं चलता. दिन बीत गया और आज अभी तक वह निद्रालोक में है. जून की कल रात की ड्यूटी थी, सुबह आये, सो वह भी सो रहे हैं. कर्मचारियों की हड़ताल के कारण उनकी ड्यटी ओ.सी.एस.१ पर लगी थी. हड़ताल वापस ले ली गयी है सो सुबह छह बजे वे लौट आये, अन्यथा उन्हें आज का दिन व रात भी अकेले ही रहना पड़ता. कल उसने बड़ी बनाने के लिये दाल भिगोई थी, पीस भी दी थी, पर सुबह से वर्षा, बादल...धूप का तो नाम भी नहीं. आज गीता का चौदहवां व पन्द्रहवां अध्याय पढ़ा, सात्विक, राजसी व तामसी प्रवृत्ति वाले मनुष्यों के गुण बताए गए हैं. उसकी प्रकृति राजसी है, आखिर क्षत्रिय वंश की है.
जिस पेन से वह पहले लिखती थी, नहीं मिला शायद जून ले गए हों. आज सुबह उसने अलार्म सुना था पर फिर सो गई, सोचा जून अभी उठेंगे और उसे उठायेंगे, पर वे खुद भी देर से उठे, जल्दी-जल्दी सब करके उन्हें ऑफिस जाना पड़ा. उसे अपने व्यवहार पर आश्चर्य हुआ, उसे अपना यह व्यवहार खुद भी समझ में नहीं आता. अलार्म सुन कर उसका न उठ पाना और यह सोचना कि उसने ने भी तो सुना होगा, सुबह की नींद कितनी आलस्य भरी होती है, शायद उन्हें सुनाई ही नहीं दिया हो, उसने सोचा आज वह उनसे पूछेगी, सुबह तो समय ही नहीं था. आज क्लब में फिल्म है, Passage to India   वे जायेंगे. उसने याद करने की कोशिश की कि आज क्या पढ़ा था पर सफल नहीं हुई, उसे लगा वह आजकल पाठ पुरे मनोयोग से नहीं करती, कुछ याद नहीं रहता. इससे तो कोई लाभ नहीं सम्भवतः कुछ लाभ तो अवश्य है पर विशेष नहीं.

नन्हा कल रात सो नहीं पाया मच्छरों के कारण सो अभी तक सो रहा है. वे दोनों भी कहाँ सो पाए, उसे तो बहुत देर से नींद आयी और जब नींद खुली तो जून जा चुके थे. पता नहीं कैसे उनकी मसहरी में मच्छर चले आते हैं. कल क्लब में Passage to India  देखी, कोई भी हिंदी फिल्म इस तरह दिल-दिमाग पर नहीं छायी होती, रात भर फिल्म के सीन ही आँखों के सामने आ रहे थे और अभी सुबह भी डॉ आज़िज़ की पुकार, उसका निष्पाप चेहरा. लेकिन जून को बीच में ही नन्हें को लेकर बाहर आना पड़ा, हमने तय किया है अब से एक बार में एक ही जन देखेगा, एक सोनू के साथ घर पर ही रहेगा और बाद में कहानी सुन लेगा. कल दोपहर वह जून से फिर छोटी सी बात पर नाराज हुई, कितना मन को समझाये और कितना पढ़े पर उस वक्त यह सब याद कहाँ रहता है.

कल-परसों दो दिन नही लिख सकी, परसों जून खरसांग गए थे शाम को लौट आये. कल दिन में उसने बारबरा कार्टलैंड का नॉवल lane to rescue पूरा किया, छोड़ने का मन ही नहीं होता था, लगता था सब आँखों के सामने हो रहा है. बेल बजी है सफाई कर्मचारी आया है. नन्हा अभी सोया है. कल शाम वे लोग प्रार्थना गए थे, रवा दोसा और कटलेट मंगवाया, अच्छा लगा, घर आकर दोनों टेली फिल्म देखीं अच्छी थीं दोनों ही. पता नहीं कैसे कल वे दोनों अलग-अलग सोच रहे थे कि शाम को बाहर जायेंगे किसी रेस्त्राँ में.

2 comments:

  1. प्रार्थना किसी रेस्टोरेंट का नाम है क्या ?

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  2. हाँ, तब नया-नया खुला था अब भी है पर अब होटल बन गया है ठहरने के लिये.

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