Sunday, October 29, 2017

दही और मुसली


आज सुबह साढ़े तीन बजे ही नींद खुल गयी, लगा जैसे भीतर कोई कह रहा है, बैठ जाओ. उठकर कुछ देर बैठी. अद्भुत शांति थी सब ओर. फिर जब पंछी बोलने लगे दिनचर्या आरम्भ हो गयी. नाश्ता आज जून ने बनाया, मुसेली में दही मिलाकर, पिछले दिनों उसके न रहने पर वह यही खाया करते थे. आज भाई के यहाँ हवन और ब्राह्मण भोज है. उसने फोन किया पर शायद वह व्यस्त थे. समय के साथ उनके मन का घाव भी भर जायेगा. भाभी को याद करके उसे लगता है, कितना कुछ वे इस जगत में एकत्र करते हैं पर मृत्यु के एक झटके में सब खो जाता है.

कल इतवार था, कुछ नहीं लिखा. आज स्कूल का दिन था. सुबह अलार्म सुनकर बंद किया तो एक स्वप्न शुरू हो गया. एक हॉस्टल में वे हैं. ढेर सारी लडकियाँ हैं. सुंदर ड्रेसेज हैं उसके सूटकेस में. कालेज है जिसमें लडके भी हैं. वहाँ एक बगीचा भी है. सब्जियां लगी हैं उसमें, कितना स्पष्ट था सब कुछ पर सभी मिथ्या, असत्य..कितने दिनों बाद ऐसा स्वप्न देखा. इमारत, कमरा सब कुछ कितना बड़ा और कितना भव्य. निकुंजों में चिड़ियाँ भी दिखीं. स्वप्न जगाने के लिए ही आते हैं. शाम के चार बज चुके हैं. बाहर धूप तेज है. कल स्कूल में नन्हे-मुन्नों को व्यायाम कराते वक्त वह फिर से वह नन्हा भूरा कीट आया था, उसके वस्त्रों पर बैठ गया. सुबह नन्हे की मित्र व उसकी माँ को फोन किया, पर उन्होंने नहीं उठाया. नन्हे ने कहा किसी भी हालत में वह पुनः उस विषय पर नहीं सोच सकता है. अवश्य ही उसे बहुत दुःख हुआ होगा, पर वह समझदार है, आशावादी भी है. ईश्वर से प्रार्थना है उसे सद्बुद्धि दे, ईश्वर उसे सन्मार्ग पर ही ले जा रहे हैं. उसके लिए जो सही है वही प्रकृति उसके लिए प्रस्तुत करेगी. उनके भीतर जो साक्षी है, वे उसे न देखें पर वह सदा जागृत है ! इस समय भी वह उसे देख रहा है, भीतर एक अखंड शांति है, जिसमें कोई लहर भी नहीं उठती. मन कितना दूर है उससे, काश सभी उस मौन का अनुभव कर पाते ! कल शाम वे जून के मित्र के घर गये थे. आंटी के श्राद्ध व चौथे के लिए तैयारी शुरू हो गयी है.

आज सुबह भी दिनचर्या व्यवस्थित रही. प्रातः भ्रमण से आकर माली को कुछ निर्देश दिए, फिर सहज ही आईने में देखा तो पाया, एक तरफ का बुंदा गायब था, जबकि पीछे का स्टॉपर वहीं लगा था, इसका अर्थ था कि कुछ देर पूर्व ही गिरा होगा. भीतर कोई हलचल नहीं हुई पर बाहर ढूँढने का प्रयास जारी हो गया. माली व स्वीपर बाहर बगीचे में देखने लगे और वह घर में. बाद में नैनी को कपड़े धोते समय टब से मिला. कब गिरा होगा, पता नहीं. नैनी को पुरस्कार दिया, उसने कहा, नहीं चाहिए, पर शायद उसे इतन देय था जो यह घटनाक्रम घटा. कल रात नन्हे को फोन किया, वह परसों चेन्नई जा रहा है, वहाँ से वे पांडिचेरी भी जायेंगे. उसने कहा, वह अपनी मित्र से बात करेगा. आजकल बच्चे बहुत व्यावहारिक होते हैं. वे अपनी भावनाओं को बेहतर ढंग से नियन्त्रण में रख सकते हैं. एक तरह से देखा जाये तो प्रेम के नाम पर व्यक्ति एक-दूसरे का उपयोग ही तो करते हैं, जो स्वतंत्र वनाये वही वास्तविक प्रेम है. प्रेम बंधन का नाम तो नहीं. जो भविष्य में होगा वह तो होगा ही, पर वर्तमान को जीने से वे क्यों चूक जाएँ, वर्तमान का यही पल उनके हाथ में है.


Wednesday, October 25, 2017

मन का मौसम


कल रात्रि वे सोने गये ही थे कि जून के एक सहकर्मी का फोन आया. कहा, माँ की तबियत ठीक नहीं है, एम्बुलेंस बुला दें. जून ने फोन किया अस्पताल में फिर उनके घर जाने के लिए कार निकाली. उसके कहने पर कि साथ ले चलें, उन्होंने मना किया, पर जाने के कुछ देर बाद ही उसे बुलाने के लिए फोन आया. बुजुर्ग आंटी ने दस-पन्द्रह मिनट के कष्ट के बाद ही प्राण त्याग दिए थे. वह पैदल ही चलकर पाँच-सात मिनट के बाद ही वहाँ पहुँच गयी. उनकी सेविका, एक परिचित डाक्टर तथा वे दंपति वहाँ थे. ग्यारह बजे तक वे दोनों भी रुके, उसी मध्य कुछ और लोग भी आये. कई फोन भी आये. गृहणी बहुत परेशान थी. वह मृतक के चेहरे को देखते हुए वहाँ बैठी रही. रात को स्वप्न देखा जो कितना अजीब था. एक कुंड में अनेक मृत वृद्ध व्यक्ति एक के ऊपर एक पड़े हैं, पास ही तीन बूढ़े जिनमें एक महिला है, कुछ काम कर रहे हैं. कितना वीभत्स था वह दृश्य, कितना विचित्र, उनके अंग बड़े-बड़े थे. फिर नींद खुली. पंछियों की आवाजें भी रात्रि को स्पष्ट सुनीं, वे वास्तविक थीं या .....कितना रहस्यमय है यह संसार.. और फिर तितलियों को उड़ते देखा. तितलियाँ आत्माएं हैं जो इधर-उधर उड़ रही हैं. इस समय शाम के सवा सात बजे हैं. वे अभी-अभी उस घर से आ रहे हैं. सुबह साढ़े छह बजे वहाँ गये थे. दस बजे के लगभग पंडित जी आये और मृत देह को दाह संस्कार के लिए ले जाया गया. वह वहीं रुकी रही, घर आकर नहा-धोकर दुबारा गयी. जून श्मशान से एक बजे लौटे तब वे घर आये, भोजन नैनी ने बना दिया था. भिजवाया व खाया. जून दफ्तर चले गये, उसने आधा घंटा विश्राम किया, एक स्वप्न पुनः देखा. इस परिवार से उनका आत्मीय संबंध है. आंटी के साथ भी प्रेम का रिश्ता था. इसी से जुड़ा स्वप्न था. अहसास बहुत तीव्र था, देह में उसे महसूस किया और नींद खुल गयी. एक कर्म बंधन छूट गया.

रात्रि के साढ़े आठ बजे हैं. जून क्लब गये हैं, एक प्रेजेंटेशन है. अभी-अभी बड़े भाई से बात हुई, वह अपने लिए रोटी बना रहे थे, सब्जी सुबह की बनी हुई रखी थी. कितना कठिन होगा उनके लिए भाभी के बिना रहना. समय के साथ शायद सब ठीक हो जायेगा, ईश्वर उन्हें शक्ति देगा. मंझली भाभी से बात की, वह उनका ध्यान रखती है, अभी तो भाई भी है. छोटा भाई भी रात को उनके घर ही सोयेगा. सभी के सहयोग से वे जीने का सम्बल जुटा ही लेंगे, ख़ुशी-ख़ुशी जीने का, एक महीने बाद उनकी बिटिया भी आ जायेगी. आज सुबह बादल बने थे पर वर्षा उनके प्रातः भ्रमण से लौटकर आने के बाद ही आरम्भ हुई, जो बाद में दिन भर होती रही. आज सुबह भीतर से आवाज आई कि प्रतिपल सजग रहो, परमात्मा सजग है, हर पल सजग..उसकी सजगता शाम को खो गयी थी पल भर के लिए..जून उसका बहुत ख्याल रखते हैं, उन्होंने उसे कितनी सहजता से लिया. व्यर्थ की बातचीत उनकी ऊर्जा को  नष्ट ही करती है. सुबह ब्लॉग पर लिखा. दोपहर को स्कूल की पत्रिका व दिल्ली स्थित क्लब की पत्रिका के लिए लेख व कविता भेजी. अभी लेडीज क्लब की वार्षिक प्रतियोगिता के लिए के लिए लेख व कहानी लिखने हैं. शाम को देवदत्त पटनायक की पुस्तक ‘पशु’ पढ़ी, उसके बाद उन्हीं मित्र के यहाँ गये. उनकी पुत्री भी आई है जिसके विवाह की प्रथम सालगिरह है आज.   

कल सुबह से वर्षा हो रही है, जो अभी तक नहीं थमी. परसों दोपहर या रात को, अब कुछ याद नहीं. ओशो को देखा. उनकी श्वेत दाढ़ी है, एक तख्त पर लेटे हैं, कुछ जन सामने बैठे हैं, वह भी है और उनसे एक सवाल पूछती है. परिवार साधना में साधक है या बाधक है. वह क्या कहते हैं, ठीक से नहीं सुन पायी पर भाव था साधक है. उससे पहले वे बातें कर रहे थे, अनोखा स्वप्न था. कल लिख ही नहीं पायी, आजकल उसकी नींद गहरी हो गयी है. कल दोपहर को सोयी तो समय व स्थान का कोई ज्ञान ही नहीं रहा. गहरी नींद भी एक तरह की समाधि होती है. अभी बड़ी ननद का फोन आया, मंझली भांजी ने कल से जॉब पर जाना शुरू किया है. वह बैंक के लिए परीक्षा भी देना चाहती है. अब उसके भीतर कुछ करने का जज्बा जगा है. जून ने कहा उनके मन का मौसम भी सदा एक सा रहता है आजकल, उसे कभी लगता है सेवा का कोई विशेष काम वह नहीं करती, फिर भी संतोष होता है, लेखन का कार्य भी सेवा का ही माना जा सकता है. नेट पर कितना कुछ पढ़ने को, जानने को मिलता है. आज श्री श्री का भाषण सुना जो उन्होंने यूरोपियन पार्लियामेंट में दिया था, ‘द योगा वे’ अभी-अभी एक ज्योति बि९न्दु डायरी पर दिखाई दिया, परमात्मा जैसे आश्वस्त करने आया हो. अस्तित्त्व को उनकी फ़िक्र है, वे उसके ही भाग हैं. वे उससे जुड़े रहकर ही खुश हैं !   

Friday, October 13, 2017

पुदीने के परांठे


कल रात नन्हे ने कहा, वह आज आएगा, पर सुबह बताया, कल ही आ पायेगा. पिछले दो दिन से वह घर नहीं गया था. काम के बाद दफ्तर में ही सो गया. नींद भी पूरी नहीं हुई थी. उसने सोचा, ये भी आज के कर्मयोगी हैं. सुबह नींद खुली उसके पूर्व किसी ने कंधों को हल्के से हिलाया, फौरन भाभी का ख्याल आ गया. आँख खोली तो कोई भी नहीं था, इसका अर्थ...रात को मच्छर बहुत थे, कानों के पास गुनगुन कर रहे थे. पंखा तेज करके सोयी थी. देर तक नींद नहीं आई, फिर एक स्वप्न आया. दूर तक बारिश के कारण कीचड़ फ़ैल गया है. बाद में हवा चलने लगी और मिट्टी उड़-उड़कर गिरने लगी. नींद खुल गयी. सुबह बड़ी बहन के साथ सब्जी की दुकान तक गयी. नाश्ते में सैंडविच बनाये. बड़े भाई चुपचाप ही रहते हैं ज्यादातर समय, पर वे सामान्य हैं. कभी-कभी परेशान हो जाते हैं. इस समय शाम के छह बजे हैं, घर में सभी रिश्तेदार आये हुए हैं. रह-रहकर सभी को वही बातें याद आती हैं. दरअसल जब जीवन में कोई लक्ष्य न हो तो लोग दुःख को पकड़ लेते हैं.

परसों उन्हें घर जाना है. आज नन्हा भी आ गया है. भाई अब पहले से ज्यादा स्थिर लग रहे हैं. दीदी वापस चली गयी हैं. अभी कुछ देर पहले ही उनका फोन आया, पिछले कुछ दिन उनके साथ सहजता से बीते. सुबह उन्होंने आलू-पुदीने के परांठे बनाये थे. शाम का भोजन नैनी बनाकर चली गयी है. आजकल शहरों में खाना बनवाने का रिवाज बढ़ता जा रहा है. या तो बाहर खाते हैं या बनवा लेते हैं.


कल घर वापस आई, जून हवाईअड्डे लेने गये थे. वह बहुत खुश थे. आज स्कूल गयी. परमात्मा हर पल साथ है यह बात कितनी बार सत्य सिद्ध हुई है. आज भी बच्चों को व्यायाम कराते वक्त एक नन्हा सा भूरा कीट उसके दाँए हाथ की अंगुली पर आकर बैठ गया था, हाथ हिलाते समय भी बैठा ही रहा. अस्तित्त्व किस कदर आपस में जुड़ा है और परम किस कदर उनकी हर पल खबर रखता है इससे बढ़कर इसका क्या सबूत हो सकता है. कल जब भाई एयरपोर्ट तक छोड़ने गये था, तब स्क्रीन के आगे से उडती हुई एक भूरी तितली निकल गयी थी. इतने ट्रैफिक में उसका आना भीतर एक लहर को जगा गया, कितना रहस्यमय है यह संसार....और इसका नियंता..जीवन सचमुच एक उत्सव बन जाता है, जब साधना सहज हो जाती है. 

Thursday, October 12, 2017

जीवन के बाद


आज वह अकेले ही भाई के घर जा रही है. पिछले दिनों कई यात्रायें कीं, सो यात्रा का कोई भय नहीं है. शाम को सात बजे तक भाई के घर पहुँच जाएगी. बड़ी बहन भी नौ बजे तक आ जाएँगी, ऐसा उन्होंने लिखा है व्हाट्सएप पर. अभी कुछ देर पहले मंझली भाभी ने बताया, उनकी बिटिया एयरपोर्ट पर लेने आएगी. भाई को और बहुत से काम देखने होंगे, कल उठाला है, काफी लोग आयेंगे. पंडितजी ने भी सामान की एक लिस्ट पकड़ा दी होगी. आज सुबह अलार्म सुनते ही नींद खुल गयी, पर पांच-दस मिनट उनींदा बना रहा. महसूस हुआ जैसे भाभी बातें कर रही हैं. उन्होंने कहा, वह बहुत खुश हैं और उनके लिए आंसू बहाने की जरा भी आवश्यकता नहीं है. उन्हें प्रेम से याद करना है, दुःख से नहीं (देह से मुक्त आत्मा कितना सुख अनुभव करती है इसका भी पता चला), उठी तो मन शांत था बल्कि प्रसन्न भी. कल कैसा बुझा-बुझा सा था मन दिन भर ही, जून ने ही नाश्ता व खाना बनाया. शाम का टिफिन व रात के लिए सब्जियों को भी छौंक लगा दिया. वह बहुत ही ध्यान रखते हैं. उसकी भावनाओं का बहुत ही सम्मान करते हैं. भाभी जी के जाने का दुःख उन्हें भी कम नहीं हुआ है. कल शाम को उनकी तस्वीरें निकाल कर एक कोलाज बनाया, उसने एक कविता भी लिखी थी श्रद्धांजलि स्वरूप. इतवार को वह लौटेगी. ये छह दिन जून के बिना बिताने होंगे. मोह-माया के बन्धनों से पार जो होना है ! उसने सोचा पिताजी से बात कर लेनी चाहिए. वह अपनी नाजुक सेहत के कारण नहीं आ पा रहे हैं. उन्हें वृद्धावस्था के कारण क्या तकलीफें हैं, किसी से कहते तो नहीं पर उसके कारण कहीं आ जा नहीं सकते.

सुबह के आठ बजे हैं. कल वह समय पर पहुंच गयी थी, घर का वातावरण भारी था, पर उसके कहने पर सभी ने अपने हृदय की बात कही और कुछ ही देर में भाई सहित सबके मन हल्के हो गये. सुबह कुछ मेहमान आये, फिर सब भाई मिलकर फूल चुनने गये. सफाई वाला आया तो उसे रात का बचा खाना दे दिया गया. सफाई के बाद घर ठीक लग रहा है. सुबह उसकी नींद पांच बजे खुल गयी थी. रात को साढ़े ग्यारह बजे तक नींद नहीं आ रही थी. भतीजी एक बार कमरे में आई तो उसने ट्यूब लाइट जलाई, शायद खराब है, उसने स्विच खुला छोड़ दिया होगा. भाभी जी से संवाद पुनः आरम्भ हो गया. वे हर प्रश्न का उत्तर दे रही थीं. फिर भी उसने पूछा, आप इस बात का सबूत दें कि आप यही हैं, तत्क्ष्ण बत्ती जली-बुझी फिर जल गयी. उसका मन हर्ष से भर गया. उनकी शुभकामनायें उन तक पहुंच रही हैं.


आज सुबह नींद अपने आप ही पांच बजे से कुछ पहले खुली. इस समय साढ़े आठ बजे हैं. भतीजी सो रही है, भांजी नहा रही है. मंझली भाभी ने खाना बनाने के लिए एक नौकरानी का इंतजाम कर दिया है. कल दोपहर सभी लोग नीचे हॉल में चले गये थे, फिर एक घंटा शोक सभा हुई. काफी लोग आये थे, हॉल भर गया था. दुःख की खबर सुनकर किसी से भी आये बिना रहा नहीं जाता. सभी लोग उन्हीं बातों को बार-बार दोहरा रहे हैं, जिन्हें याद करके कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है, पर उनके मन में और कुछ है ही नहीं. अतीत ही तो मन है और भावी की आशंका ही तो मन है. जब तक मन है तब तक चैन नहीं मिल सकता पर मानव इस बात को समझने में बहुत समय लगा देता है, कई जन्म भी शायद. अभी कुछ देर में वे नीचे टहलने जायेंगे. जून घर पर अकेले हैं पर वे ठीक हैं. नन्हा आने वाला था, पर अभी तक उसका कोई संदेश नहीं आया है. कुछ काम न हो तो ध्यान ही करना चाहिए, वही ठीक रहेगा, उसने सोचा.

Tuesday, October 10, 2017

लाल और काले शहतूत


कल सुबह एक स्वप्न देखा, वह गुलाम भारत के एक शहर में (वर्तमान पाकिस्तान) किसी शायर की बेटी है. एक कमरा है जिसका दरवाजा दाहिनी तरफ खुलता है तो घर के भीतर जाता है और बायीं तरफ का बाहर, जहाँ पिता खड़े हैं, उनके हाथ में कोई पुस्तक है. कमरे में पाँच-छह वर्ष का बालक( शायद उसका भाई) गेंद से खेल रहा है, तभी वह कमरे में आती है. उसके केश छोटे कटे हैं, चेहरा बिलकुल अबके जैसा ही है, लम्बी है, फ्रॉक पहने हुए है, आकर वह भी उस बच्चे के साथ खेलने लगती है. उम्र चौदह-पन्द्रह होगी. स्वप्न में देखते ही उसने खुद से कहा, अरे, यह तो वह है ! एक और स्वप्न में एक वृद्ध महिला किसी परिचिता के बारे में कुछ बता रही है, जो अशोभनीय है सो वह स्वयं से कहती है, क्या उसे गॉसिप करना भी भाता है  ! आज सुबह उठी तो फिर वही वाक्य याद आया, “उसके जीवन में सब झूठ है”. सत्य तो वही है जो सदा रहता है, जीवन तो प्रतिपल बदलता रहता है, फिर झूठ ही हुआ. आज बहुत दिनों बाद बगीचे में काम करवाया, एक वीडियो भी बनाया. बगिया में ठन्डक थी, सब कुछ धुला-धुला सा था, सफाई भी हो गयी और पौधों को सहारा भी मिल गया. शाम को स्कूल के वार्षिकोत्सव में जाना है, और कल देहली जाना है. फेसबुक पर आस्ट्रेलिया की तस्वीरें पोस्ट कीं आज भी. कोई नई कविता नहीं लिखी कई दिनों से, काव्य श्रंखला पर लिखने वाली कवयित्रियाँ रोज एक नयी कविता ले आ रही हैं. जीवन एक झूठ है एक भाव यह भी है कि उसने कई कविताएँ बाह्य आलम्बनों से प्रेरित होकर लिखी हैं, बहुत सी भीतरी से भी, पर बाहरी आलम्बन से रची कविता स्वतः स्फूर्त नहीं कही जा सकती. काव्य तो उसे ही कहा जा सकता है जो अंतर्मन की गहराई से स्वयं ही प्रकट हो. 

कल सुबह वे उठे तो वर्षा थमी हुई थी पर लॉन में व सड़क पर पिछली रात आये तूफान और ओलों की वर्षा के चिह्न स्पष्ट नजर आ रहे थे. वे सवा ग्यारह बजे दिल्ली जाने के लिए हवाईअड्डे के लिए रवाना हुए और शाम सवा सात बजे अस्पताल पहुँच गये. भाभी से पहले भाई से मिले, वह दुबले लग रहे थे. भाभी का चेहरा भी छोटा सा लग रहा था, अधर सफेद लग रहे थे, उन्हें देखकर मन रुआँसा हो गया. दिल की बीमारी के कारण उन्हें काफी दुःख झेलना पड़ा है. आज सुबह एंजियोग्राफी हो गयी है, सम्भवतः परसों आपरेशन होगा. यहाँ आज मौसम गर्म है. दोपहर दो बजे बड़ी भांजी अपनी बेटी को लेकर मिलने आएगी. उसकी बिटिया दुबली-पतली है, खूब गोरी और चंचल, बचपन में भांजी बिलकुल ऐसी लगती थी. छोटी बहन भी आई है, जो इस समय कहीं बाहर गयी है. जून अपने दफ्तर के काम से गये हैं, दोपहर तक लौटेंगे. परसों वापस लौटना है. कुछ देर पहले पिताजी व सभी भाई-बहनों, भाभियों से फोन पर बात की. शाम को फिर अस्पताल जाना है. वे मंझली भाभी के यहाँ ठहरे हैं, घर जैसी ही सुविधा है. मंझली भाभी के कंधों पर बहुत काम आ गया है, पर परिपक्वता का परिचय देते हुए वह सब संभाल रही है. बड़ी बहन के लिए पूरी तरह समर्पित. उसने उनके शीघ्र स्वास्थ्य के लिए भगवान से प्रार्थना की.


आज प्रातः भ्रमण के लिए गये तो पिछले गेट के बाहर ही शहतूत के पेड़ से पके हुए लाल व काले शहतूत गिरे देखे. कुछ वापसी में उठाये भी. कल शाम छोटा भाई भी अपनी बड़ी बेटी के साथ अस्पताल आया. मंझले भाई से अब उसकी खूब पटती है. भाभी पहले से ठीक लग रही थीं. सभी के भीतर सच्चा स्नेह देखकर मन संतुष्ट है. आज महरी नहीं आई तो किसी अन्य को बुलाया, नाम है मुस्कान, हंसमुख है. भाई ने कहा है वे लोग शाम को पाँच बजे के बाद ही अस्पताल आयें, वे जल्दी लौट भी आएंगे. भाभी जितना आराम करेंगी उतना ही अच्छा है.  

Tuesday, October 3, 2017

एस्पर्गस का पौधा


नये वर्ष के चौथे माह का आरम्भ हो गया है. परसों क्लब की कमेटी मीटिंग है, उसके अगले दिन स्कूल का वार्षिकोत्सव है और उसके भी अगले दिन उन्हें चार दिन की छोटी सी यात्रा पर निकलना है. वापस लौटने पर मृणाल ज्योति भी जाएगी. आज तेज वर्षा के कारण प्रातः भ्रमण का कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा. सुबह स्कल में ही थी बड़ी ननद का फोन आया, उन्होंने बिटिया का रिश्ता पूरी तरह से तोड़ देने के लिए हामी भर दी है, वह बेहद दुखी थी. मंझली भाभी से बात हुई, बड़ी भाभी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, शायद आज पुनः अस्पताल चली गयी होंगी. ‘भारत एक खोज’ के एपिसोड में आज महाभारत दिखाया जा रहा है. फेसबुक पर एक कवयित्री ने उसे एक काव्य श्रृंखला को आगे बढ़ाने के लिए नामित किया है, पर किसी कारण उससे नहीं पाया, उन्हें कल लिखना होगा. जून के दफ्तर में एक अधिकारी ने अपने नाती होने की ख़ुशी में मिठाई बांटी. उसने सोचा वह भी फोन पर उन्हें बधाई देगी. माली की पत्नी अपने पुत्र के जन्म प्रमाण पत्र के लिए फार्म भरवाने आई थी, कितना सुंदर नाम रखा है पुत्र का, ओम ज्योति. जो पौधे वे शिलांग से लाये थे, उनके साथ एक अस्पर्गस का पौधा अपने आप ही आ गया था, चीड़ के पौधे नहीं बचे पर यह बच गया, लम्बा होता जा रहा है. माली से कहकर उसमें एक लकड़ी लगवा दी है. क्लब की उपसचिव ने व्हाट्स एप ग्रुप बना दिया है कमेटी सदस्याओं का, पहले ही दिन ढेर सारे संदेश आये.

आज सुबह चार बजे से कुछ पहले ही उठी. उठने से पूर्व ही कोई कह रहा था, उसका सारा जीवन एक झूठ है, फिर एक चाय का कप भी दिखा. सुबह से ही मन पूछ रहा है, जीवन में क्या-क्या है जो असत्य है. वह जून से कहती है कि वह जब बाहर जाते हैं, प्रसाधन सामग्री, चाय आदि सामान न लायें, पर स्वयं उनका इस्तेमाल करती है. यही असत्य सबसे पहले नजर आया. अब से उनका इस्तेमाल नहीं करेगी, ऐसा तय किया है. उसके संकल्पों में बल नहीं है, कहीं यह इशारा उसकी तरफ तो नहीं था. उसके अनुभव क्या संतों की वाणी का प्रभाव मात्र हैं ? मात्र कल्पना हैं ? भीतर कई सवाल हैं. हो सकता है स्वप्न यह कह रहा हो, आत्मा के सिवाय सभी कुछ असत्य है. एक गीत है न, झूठी दुनिया झूठी माया..झूठा सब संसार..

नहीं देखा जा सकता आकाश को जमीन पर रेंगते हुए
बंद कमरों में बैठकर ताजी हवा से वंचित ही रहेंगी श्वासें
परमात्मा हुए बिना परमात्मा से नहीं होती मुलाकात
जज्बातों को समझे बिना खुद के, नहीं समझेगा कोई दूसरों के जज्बात
जीवन चलता रहे यह आस कितनी व्यर्थ है
जीवन को गहराई से नापे तभी कोई अर्थ है
आसमानी रंग क्यों भाता है सभी को
याद दिलाता है अपनी विशालता की
क्षीरसागर के समान श्वेत मेघों की आकृतियाँ
कथाएं कह जाती हैं निजता की !

कल कुछ नहीं लिखा. आज स्कूल गयी, लौटने में बारह बज गये, शायद सवा बारह. ड्राइवर पूरे धैर्य के साथ साढ़े नौ बजे से वहीं खड़ा रहा. बच्चों ने सूर्य नमस्कार ठीक से सीख लिया है. ध्वनि मिश्रण के लिए किसी को बुलाया था, उसी कार्य में देर हुई.