Sunday, October 29, 2017

दही और मुसली


आज सुबह साढ़े तीन बजे ही नींद खुल गयी, लगा जैसे भीतर कोई कह रहा है, बैठ जाओ. उठकर कुछ देर बैठी. अद्भुत शांति थी सब ओर. फिर जब पंछी बोलने लगे दिनचर्या आरम्भ हो गयी. नाश्ता आज जून ने बनाया, मुसेली में दही मिलाकर, पिछले दिनों उसके न रहने पर वह यही खाया करते थे. आज भाई के यहाँ हवन और ब्राह्मण भोज है. उसने फोन किया पर शायद वह व्यस्त थे. समय के साथ उनके मन का घाव भी भर जायेगा. भाभी को याद करके उसे लगता है, कितना कुछ वे इस जगत में एकत्र करते हैं पर मृत्यु के एक झटके में सब खो जाता है.

कल इतवार था, कुछ नहीं लिखा. आज स्कूल का दिन था. सुबह अलार्म सुनकर बंद किया तो एक स्वप्न शुरू हो गया. एक हॉस्टल में वे हैं. ढेर सारी लडकियाँ हैं. सुंदर ड्रेसेज हैं उसके सूटकेस में. कालेज है जिसमें लडके भी हैं. वहाँ एक बगीचा भी है. सब्जियां लगी हैं उसमें, कितना स्पष्ट था सब कुछ पर सभी मिथ्या, असत्य..कितने दिनों बाद ऐसा स्वप्न देखा. इमारत, कमरा सब कुछ कितना बड़ा और कितना भव्य. निकुंजों में चिड़ियाँ भी दिखीं. स्वप्न जगाने के लिए ही आते हैं. शाम के चार बज चुके हैं. बाहर धूप तेज है. कल स्कूल में नन्हे-मुन्नों को व्यायाम कराते वक्त वह फिर से वह नन्हा भूरा कीट आया था, उसके वस्त्रों पर बैठ गया. सुबह नन्हे की मित्र व उसकी माँ को फोन किया, पर उन्होंने नहीं उठाया. नन्हे ने कहा किसी भी हालत में वह पुनः उस विषय पर नहीं सोच सकता है. अवश्य ही उसे बहुत दुःख हुआ होगा, पर वह समझदार है, आशावादी भी है. ईश्वर से प्रार्थना है उसे सद्बुद्धि दे, ईश्वर उसे सन्मार्ग पर ही ले जा रहे हैं. उसके लिए जो सही है वही प्रकृति उसके लिए प्रस्तुत करेगी. उनके भीतर जो साक्षी है, वे उसे न देखें पर वह सदा जागृत है ! इस समय भी वह उसे देख रहा है, भीतर एक अखंड शांति है, जिसमें कोई लहर भी नहीं उठती. मन कितना दूर है उससे, काश सभी उस मौन का अनुभव कर पाते ! कल शाम वे जून के मित्र के घर गये थे. आंटी के श्राद्ध व चौथे के लिए तैयारी शुरू हो गयी है.

आज सुबह भी दिनचर्या व्यवस्थित रही. प्रातः भ्रमण से आकर माली को कुछ निर्देश दिए, फिर सहज ही आईने में देखा तो पाया, एक तरफ का बुंदा गायब था, जबकि पीछे का स्टॉपर वहीं लगा था, इसका अर्थ था कि कुछ देर पूर्व ही गिरा होगा. भीतर कोई हलचल नहीं हुई पर बाहर ढूँढने का प्रयास जारी हो गया. माली व स्वीपर बाहर बगीचे में देखने लगे और वह घर में. बाद में नैनी को कपड़े धोते समय टब से मिला. कब गिरा होगा, पता नहीं. नैनी को पुरस्कार दिया, उसने कहा, नहीं चाहिए, पर शायद उसे इतन देय था जो यह घटनाक्रम घटा. कल रात नन्हे को फोन किया, वह परसों चेन्नई जा रहा है, वहाँ से वे पांडिचेरी भी जायेंगे. उसने कहा, वह अपनी मित्र से बात करेगा. आजकल बच्चे बहुत व्यावहारिक होते हैं. वे अपनी भावनाओं को बेहतर ढंग से नियन्त्रण में रख सकते हैं. एक तरह से देखा जाये तो प्रेम के नाम पर व्यक्ति एक-दूसरे का उपयोग ही तो करते हैं, जो स्वतंत्र वनाये वही वास्तविक प्रेम है. प्रेम बंधन का नाम तो नहीं. जो भविष्य में होगा वह तो होगा ही, पर वर्तमान को जीने से वे क्यों चूक जाएँ, वर्तमान का यही पल उनके हाथ में है.


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