Thursday, October 12, 2017

जीवन के बाद


आज वह अकेले ही भाई के घर जा रही है. पिछले दिनों कई यात्रायें कीं, सो यात्रा का कोई भय नहीं है. शाम को सात बजे तक भाई के घर पहुँच जाएगी. बड़ी बहन भी नौ बजे तक आ जाएँगी, ऐसा उन्होंने लिखा है व्हाट्सएप पर. अभी कुछ देर पहले मंझली भाभी ने बताया, उनकी बिटिया एयरपोर्ट पर लेने आएगी. भाई को और बहुत से काम देखने होंगे, कल उठाला है, काफी लोग आयेंगे. पंडितजी ने भी सामान की एक लिस्ट पकड़ा दी होगी. आज सुबह अलार्म सुनते ही नींद खुल गयी, पर पांच-दस मिनट उनींदा बना रहा. महसूस हुआ जैसे भाभी बातें कर रही हैं. उन्होंने कहा, वह बहुत खुश हैं और उनके लिए आंसू बहाने की जरा भी आवश्यकता नहीं है. उन्हें प्रेम से याद करना है, दुःख से नहीं (देह से मुक्त आत्मा कितना सुख अनुभव करती है इसका भी पता चला), उठी तो मन शांत था बल्कि प्रसन्न भी. कल कैसा बुझा-बुझा सा था मन दिन भर ही, जून ने ही नाश्ता व खाना बनाया. शाम का टिफिन व रात के लिए सब्जियों को भी छौंक लगा दिया. वह बहुत ही ध्यान रखते हैं. उसकी भावनाओं का बहुत ही सम्मान करते हैं. भाभी जी के जाने का दुःख उन्हें भी कम नहीं हुआ है. कल शाम को उनकी तस्वीरें निकाल कर एक कोलाज बनाया, उसने एक कविता भी लिखी थी श्रद्धांजलि स्वरूप. इतवार को वह लौटेगी. ये छह दिन जून के बिना बिताने होंगे. मोह-माया के बन्धनों से पार जो होना है ! उसने सोचा पिताजी से बात कर लेनी चाहिए. वह अपनी नाजुक सेहत के कारण नहीं आ पा रहे हैं. उन्हें वृद्धावस्था के कारण क्या तकलीफें हैं, किसी से कहते तो नहीं पर उसके कारण कहीं आ जा नहीं सकते.

सुबह के आठ बजे हैं. कल वह समय पर पहुंच गयी थी, घर का वातावरण भारी था, पर उसके कहने पर सभी ने अपने हृदय की बात कही और कुछ ही देर में भाई सहित सबके मन हल्के हो गये. सुबह कुछ मेहमान आये, फिर सब भाई मिलकर फूल चुनने गये. सफाई वाला आया तो उसे रात का बचा खाना दे दिया गया. सफाई के बाद घर ठीक लग रहा है. सुबह उसकी नींद पांच बजे खुल गयी थी. रात को साढ़े ग्यारह बजे तक नींद नहीं आ रही थी. भतीजी एक बार कमरे में आई तो उसने ट्यूब लाइट जलाई, शायद खराब है, उसने स्विच खुला छोड़ दिया होगा. भाभी जी से संवाद पुनः आरम्भ हो गया. वे हर प्रश्न का उत्तर दे रही थीं. फिर भी उसने पूछा, आप इस बात का सबूत दें कि आप यही हैं, तत्क्ष्ण बत्ती जली-बुझी फिर जल गयी. उसका मन हर्ष से भर गया. उनकी शुभकामनायें उन तक पहुंच रही हैं.


आज सुबह नींद अपने आप ही पांच बजे से कुछ पहले खुली. इस समय साढ़े आठ बजे हैं. भतीजी सो रही है, भांजी नहा रही है. मंझली भाभी ने खाना बनाने के लिए एक नौकरानी का इंतजाम कर दिया है. कल दोपहर सभी लोग नीचे हॉल में चले गये थे, फिर एक घंटा शोक सभा हुई. काफी लोग आये थे, हॉल भर गया था. दुःख की खबर सुनकर किसी से भी आये बिना रहा नहीं जाता. सभी लोग उन्हीं बातों को बार-बार दोहरा रहे हैं, जिन्हें याद करके कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है, पर उनके मन में और कुछ है ही नहीं. अतीत ही तो मन है और भावी की आशंका ही तो मन है. जब तक मन है तब तक चैन नहीं मिल सकता पर मानव इस बात को समझने में बहुत समय लगा देता है, कई जन्म भी शायद. अभी कुछ देर में वे नीचे टहलने जायेंगे. जून घर पर अकेले हैं पर वे ठीक हैं. नन्हा आने वाला था, पर अभी तक उसका कोई संदेश नहीं आया है. कुछ काम न हो तो ध्यान ही करना चाहिए, वही ठीक रहेगा, उसने सोचा.

No comments:

Post a Comment