Tuesday, January 27, 2015

नटनागर का नृत्य


अभिमान में न आना इतना ख्याल रखना
यह राह बहुत कठिन है, पाँव संभाल रखना !

उसे अपने ज्ञान पर, अपनी भक्ति पर अभिमान होने लगा था और गुरू चेताने के लिए आ गये हैं. किसी के शब्दों पर मुरझाना या खिलना अहंकार के पोषण के कारण ही तो है. प्रज्ञा का अपराध ही इस स्थिति में डालता है. बुद्धि का विकास करना है इसका लक्षण है अनाग्रह, सत्य की खोज में लगे व्यक्ति को दुराग्रही या पूर्वाग्रही नहीं होना चाहिए. अपनी बात को ऊपर रखने की व्यर्थ चेष्टा यदि है तो बुद्धि अभी विकसित नहीं हुई है. सत्य को स्वीकार करना ही बुद्धिमत्ता है. प्रज्ञा का दोष न हो तो मन समत्व योग में स्थित रहता है. ऐसा अडिग हो सके अपना मन जो अनुकूल व प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में समान व्यवहार करे तो ऐसा मन ध्यानस्थ है. ऐसा ही मन भक्ति कर सकता है, भक्ति का मार्ग इतना सहज नहीं है, सिर कटाकर ही इस मार्ग पर चला जा सकता है. आज जून शिवसागर गये हैं, नन्हा घर पर ही है, टीवी पर ‘जागरण’ आ रहा है.

गलतफहमियों में जिन्दगी गुजरी
कभी तुम न समझे, कभी हम न समझे

मन अहंकार से मुक्त हो तो छोटी-छोटी बातें पानी पर लकीर की तरह बेअसर हो जाती हैं, साथ ही दूसरों की व्यर्थ बातों पर ध्यान न देने की कला भी आती है व्यर्थ के विवादों से बचने का सबसे अच्छा उपाय है कि भीतर के आँख और कान खुले रहें, बाहर के कान और नेत्र यदि बंद भी रहें तो कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है.
आज तीस जनवरी है, बापू की पुण्य तिथि ! सुबह-सुबह भजन सुना, वैष्णव जन तो तेने कहिये....नरसिंह मेहता का यह भजन मन को ऊंचे केन्द्रों पर ले जाता है. प्रेम सिखाता है, देना सिखाता है. सद्गुरु का यही काम है कि वह अपने हृदय की उदारता और प्रेम साधकों के अंतर में प्रवाहित करता है. उनके दिल-दिमाग को विस्तार देता है. वैदिक ऋचाओं का संदेश पहुंचाता है. सद्गुरु कहते हैं, भागवद समाधि भाषा है, उसे पढ़कर हृदय में रस उभरने लगता है, ‘बिगड़ी जन्म अनेक की, सुधरे अभी और आज’ !

आज फरवरी का पहला दिन है, सुबह जल्दी उठे वे. नन्हे की परीक्षा है, साइंस ओलम्पियाड. कल दीदी का पत्र आया, बड़े भांजे को अखिल भारतीय परीक्षा में प्रथम स्थान मिला है कम्प्यूटर की ‘c’ परीक्षा में. अब यह c में क्या सिखाते हैं, o लेवल क्या है उसे पता नहीं पर बहुत ख़ुशी हुई उसका नाम अख़बार में छपा देखकर. अभी-अभी ‘आत्मा’ में मुम्बई स्थित मन्दिर में आने का निमन्त्रण मिला, कीर्तन में शामिल होने व नृत्य देखने का भी. आज गुरुमाँ ने भी आधा घंटा नृत्य करने की सलाह दी जो सब कुछ भुला कर किया जाये. आँखें बंद हों और हृदय की उमंग इतनी तीव्र हो कि पैर स्वयंमेव ही थिरक उठें. परसों दोपहर भागवद् पढ़कर कुछ देर के लिए उसे भी ऐसा अनुभव हुआ था ! अभी कुछ देर पहले एक परिचिता का फोन आया, इस महीने क्लब में उनके एरिया को कार्यक्रम प्रस्तुत करना है, उसे कविता पाठ करना है तथा कोरस में भी भाग लेना होगा.
 


2 comments:

  1. अहंकार मनुष्य के भीतर छिपा सबसे बड़ा शत्रु है. जिस दिन इसे साध लिया सब सध गया. घर के तमाम सुख सम्वादों में मेरी खुशियाँ भी सम्मिलित समझें!
    उससे पूछियेगा कि क्या मैं उसे सखि कह सकता हूँ! कृष्ण द्रौपदी को सखि कहा करते थे. वैसे भी बहुत सारी घटनाएँ हमारे और हमारे परिवार के बीच कॉमन रही है. और एक अजीब सा सन्योग ही कहेंगे इसे कि वर्त्तमान में मैं जहाँ रह रहा हूँ वो सिन्धुनगर है! :)

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  2. सही कहा है आपने, अहंकार गया तो सब सधा....क्यों नहीं कह सकते..सखी का अर्थ तो मित्र ही होता है और ईश्वर जिसका मित्र है, वह सबका मित्र है... जीवन तो हर जगह एक सा ही है..फिर हम भारतवासी दिल से एक जैसा ही सोचते हैं...हमारे पूर्वज एक हैं..हो सकता है किसी पूर्व जन्म में हम एक ही परिवार में जन्मे हों..

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