Thursday, January 29, 2015

इदुलजुहा की रौनक


कल वह छह बजे से थोड़ा पहले उठी, दिन भर संसार का संग किया सो रात को देखे स्वप्न भी ईश्वर के नाम से संयुक्त नहीं थे. कल रात सिर में दर्द था, उस क्षण उसे सचमुच ही संसार दुखों का घर लग रहा था, जैसे शास्त्रों में वर्णन किया गया है. मन बहलाने के लिए वे चाहे लाख प्रसन्नता के उपाय कर लें लेकिन ख़ुशी टिकती नहीं, उसके लिए तो गोविन्द का ही आश्रय ही लेना पड़ेगा. उसने कृष्ण से प्रार्थना की इससे मुक्ति की ! इस जीवन का मोह नहीं रह गया है उसे, किसी भी क्षण इस कठोर दुनिया से उठ जाने के लिए तैयार है लेकिन अगला जन्म भी न हो ...इसकी गारंटी नहीं है सो...कृष्ण को आर्त भक्त नहीं भाते तो सोचा ज्ञान का आश्रय लेना चाहिए. यूँ अगर छोटी-मोटी बातों से मन व्यथित रहा तो मार्ग और भी लम्बा हो जायेगा. इस संसार में तो कहीं ठौर नजर नहीं आता, होश में आ चुके को तो कतई नहीं, पल-पल रंग बदलता है यह जग..स्वार्थ की भाषा बोलता है, पर कृष्ण की नजर से देखो तो कृष्णमय नजर आता है. फिर सब में उसी का रूप और सभी उस पथ के राही दीखते हैं. सब उसी के बनाये खेल के पात्र हों जैसे, तब कोई भेद नहीं रह जाता, कोई आक्रोश नहीं, यह सब एक महानाटक लगता है जिसके सूत्रधार कृष्ण  हैं, और तब मन शांत हो जाता है. अपनेप्रति, सम्बन्धों के प्रति और कर्त्तव्यों के प्रति सजग ! इन्द्रियां तब मन में, मन बुद्धि में, बुद्धि आत्मभाव में स्थित हो जाती है. तन फूल की तरह हल्का, मन रुई के फाहों सा ! कहीं कोई स्थूलता नहीं, कोई भारीपन नहीं, कोई अलगाव नहीं, वाष्प वत आत्मा और उसके निकट परमात्मा..   परसों वह उस सखी के साथ मृणाल ज्योति गयी थी. आज उसने बताया कि अभी वह स्वयं को इसके लिए तैयार नहीं पा रही, वह उस दिन परेशान रही, असहाय बेबस, बच्चों को देखना उससे सहन नहीं हुआ. नूना को भी उस रात स्वप्न आया कि आग लगने पर बच्चों को छोड़कर वह स्वयं अपनी जान बचाने के लिए भाग आती है.

कोई जो चाहता है, वह होता नहीं, जो होता है वह भाता नहीं और जो भाता है वह टिकता नहीं...इस बात को वे जितनी गहराई से समझ लें उतना ही जीवन सरल व सरस होगा. कृष्ण कहते हैं, मन में प्रसाद हो तो यह मानसिक तप है. करने की शक्ति, जानने की शक्ति और मानने की शक्ति सबके भीतर है, जिनका सदुपयोग करना है. कृष्ण की गीता अद्भुत है, विश्व में अनोखा ग्रन्थ है यह, पढ़ो तो लगता है कृष्ण सम्मुख बैठे हैं और प्यार से समझा रहे हैं. कितने भिन्न-भिन्न कोण से वह उन्हें समझाते हैं. कभी थोडा कठोर होते हैं कभी आश्वस्त करते हुए स्नेह देते हैं, कृष्ण की तरह उनकी बोली भी निराली है ! अभी बहुत कुछ सीखना शेष है, ज्ञान का अथाह भंडार सम्मुख पड़ा है, उसमें से मोती चुगने हैं.

कल एक आध्यात्मिक पत्रिका का अंक मिला, परसों भी एक अंक मिला था, छोटी ननद से बात हुई तो पता चला उन्होंने ही subscribe करायी है. आज मौसम ठंडा है, कल रात आंधी-तूफान और वर्षा हुई. कल शाम ही उन्होंने भिंडी के बीज लगवाये थे, पानी डालने का काम प्रकृति ने अपने ऊपर ले लिया. शाम को एक सखी के यहाँ जाना है कल उनकी शादी की सालगिरह है, परसों उन्हें यात्रा पर जाना है सो आज ही मना रहे हैं. उसे भी हेयर कट के लिए जाना है, मन के साथ-साथ देह की साज-संवार तो करनी ही पड़ती है. मानव का दुर्लभ तन ईश्वर ने ही दिया है !

कल इदुलजुहा है, उनकी नैनी के यहाँ ढेरों मेहमान आये हैं, जिनकी वह खातिरदारी कर  रही है. जून का ऑफिस बंद है. उन्हें तिनसुकिया जाना है, उसकी किताबें आ गयी हैं, जिन्हें वहाँ से लाना है. सुबह एक परिचिता के यहाँ कोरस में गाया जाने वाला गीत लेने गयी. उसे गले में खराश लग रही थी सो कुछ दिनों के लिए दही खाना बंद किया है आज से, जून ने भी कुछ दिनों से दूध-दही बंद किया है. उम्र के साथ-साथ खान-पान में कुछ परिवर्तन तो करने ही होंगे.


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