Wednesday, January 28, 2015

गुलाब वाटिका




Happy valentine day  जून ने आज सुबह कहा और कहते हुए वह हँस भी रहे थे और वह सोच रही थी कि वह उससे नाराज हैं. मन स्वयं ही अपने मत का शिकार हो जाता है. खुद के बनाये जाल में फंस जाता है. अपनी ही कामना का फंदा उसके गले में पड़ता है, तीनों गुणों के वशीभूत होकर वह संकल्प-विकल्प के चक्रव्यूह में फंस जाता है. सुबह पिता से बात की, छोटे भाई से भी बहुत दिनों के बाद बात हुई. उनकी पीड़ा अभी घटी नहीं है, समय के साथ-साथ सब ठीक हो जायेगा. नन्हे की परीक्षाओं में मात्र दो हफ्तों का समय रह गया है, उसकी पढ़ाई ठीक चल रही है. शाम को जून और वह रोज टहलने जाते हैं, गुलाब वाटिका में नित नये गुलाब खिलने लगे हैं. आज लेडीज क्लब की एक सदस्या से बात की, शनिवार को वह और एक एक सखी उनके साथ ‘मृणाल ज्योति’ जायेंगे, जो विशेष बच्चों का एक स्कूल है. पिछले कई दिनों से सुबह डायरी खोलने का समय नहीं मिल पाता है. भागवद पढ़ रही है, सारा ध्यान कृष्ण की ओर लगा रहता है. नारद जी ने भक्ति पर कितने सुंदर श्लोक कहे हैं जो सभी की समझ में आ सकें ऐसी सरल भाषा में श्री प्रभुपाद जी द्वारा अनुदित हैं. भगवद की इतनी सुंदर टीका और नहीं मिलेगी. यथारूप भगवद गीता भी उसे डाक द्वारा मंगवानी है. जीवन के अनबूझ रहस्य जैसे सुलझते जा रहे हैं, इसमें अद्भुत ज्ञान छिपा है. कृष्ण उनके अंतर में परमात्मा रूप से विद्यमान हैं, यह ज्ञान आश्वस्त करता है. उन्हें मृत्यु से भी भयभीत होने की आवश्यकता नहीं क्योंकि गुणात्मक रूप से जीवात्मा और परमात्मा एक ही हैं, परमात्मा की शक्ति अपार है !

आवश्यकताएं कम हों तो जीवन सरल हो जाता है. आज बाबाजी खुदीराम बोस की बात बता रहे हैं. फांसी की सजा मिलने पर भी उन्होंने अपना पूर्व सहज हास्य स्वभाव नहीं छोड़ा. मान-अपमान, सुख-दुःख, हानि-लाभ के समय मन में समता बनी रहे तभी वे अपने सहज स्वभाव में रह सकते हैं. संसारी रसों का भोग करते-करते तन-मन क्षीण हो जाता है फिर भी वासना बनी रहती है, किन्तु ईश्वरीय रस का पान करने से शक्ति का अनुभव होता है और वासनाओं का नाश होता है. सुबह ‘जागरण’ में एक वेद मन्त्र का भाव सुना, देवताओं का आशीर्वाद उन्हें मिलता है जो सजग हैं, जागृत हैं, सचेत हैं, पल-पल सचेत रहते हैं. संसार की आसक्ति न रहे और ईश्वर के प्रति प्रीति बढ़ती जाये यही उनके जीवन का लक्ष्य होना चाहिए. जीवन भर मानव शरीर की देखभाल करता है पर अस्वस्थता से बचना मुश्किल है, जो वह वास्तव में है चेतन, मुक्त आत्मा..उसे कोई रोग नहीं व्याप्ता.
नुक्ते की हेर फेर से खुदा से जुदा हुआ
नुक्ते को ऊपर रख दें तो जुदा से खुदा हुआ

गुरू कितना अनमोल ज्ञान प्रदान करते हैं, जीवन में सद्गुरू नाव की पतवार की तरह है अन्यथा नाव को डूबने से कोई नहीं बचा सकता. ईश्वर उन्हें सही मार्ग पर लाने के लिए, उनके अहंकार को दूर करने के लिए सुख-दुःख के झूले में झुलाता है. वह जानता है उनके लिए क्या उचित है और क्या अनुचित ! वे अपनी सामान्य बुद्धि से ईश्वर को समझ नहीं पाते पर वह परमात्मा रूप में उनके भीतर है और पल-पल उनकी खबर रखता है ! दुनियादारी में आकंठ डूबा हुआ व्यक्ति यह विचार भी नहींकरता कि एक दिन यह दुनिया उसकी आँखों के सम्मुख नहीं रहेगी, मृत्यु का घना अंधकार जब चारों ओर छा जायेगा, शरीर शक्तिहीन हो जायेगा तब कृष्ण के सिवा और कोई साथ नहीं देगा !

   

  

2 comments:

  1. सखि! थोड़ा अजीब लग रहा है यह सम्बोधन. जून का वैलेंटाइन दिवस बधाई देते हुए "हँसना" कैसे डर का सम्प्रेषण कर सकता है किसी के अन्दर. कल हिस्ट्री चैनेल पर देख रहा था कि कैसे मन अपने बनाये मत का शिकार हो जाता है, चाहे यह मत किसी अन्य के द्वारा ही मन पर अंकित किया हुआ क्यों न हो! एक व्यक्ति ने स्वयम को नक़ली टीवी क्र्यू के सामने खड़े होकर हर आने जाने वाले को बताया कि मनुष्य चाँद पर कभी गया ही नहीं और वह नासा का पूर्व निदेशक है और यह स्वीकार करना चाहता है कि वह सब एक प्रोपेगैण्डा था. असली लगने वाला टीवी दल और नासा का निदेशक इतना ऑथेण्टिक था कि कई लोग उसकी बात मानकर अपना मत निर्धारित कर चुके थे.
    सखि, क्या अपने पिता को पिताजी नहीं कहती? नन्हा भी जून के साथ टहलने जाता है यह अच्छा संकेत है, विशेषकर परीक्षाओं के पूर्व. भागवद्कथा मेरी भी पढने की इच्छा है. हमारी फेसबुक मित्र ई. शिल्पा मेहता ने भी इसके कई अंश साझा किये हैं. इस्कॉन द्वारा प्रकाशित भगवद्गीता मेरे पास भी है - मेरा पहला परिचय.
    खुदी राम बोस जैसे क्रांतिकारी का विनोदी स्वभाव फ़ाँसी के फन्दे तक हो या मंसूर का परमात्मा की राह पर अपने अंगों को काटने वालों को यह बताना कि यहाँ काटने से प्राण जल्दी छूट जाएँगे, एक ऐसी अवस्था की ओर इंगित करता है जहाँ मृत्यु जीवन का ही विस्तार दिखाई देती है - जीवन से किसी भी अर्थ में भिन्न नहीं.

    मेरी नौकरी में कई बार प्रताड़ित होना पड़ा है विरोध के कारण, क्योंकि यह सिर परमात्मा के अलावा किसी के समक्ष नहीं झुका. प्रताड़ना का प्राकट्य स्थानांतरण या प्रोन्नति न दिये जाने के रूप में होता है. एक बार ऊबकर मैंने उस उच्चाधिकारी को कह दिया कि अब मैंने वह अवस्था प्राप्त कर ली है जहाँ न प्रोन्नति का लालच लुभाता है, न स्थानांतरण का आदेश डराता है. और सच पूछिये मेरे लिये वह अवस्था बड़ी संतोषजनक थी. मंसूर की तरह या खुदीराम बोस की तरह!

    गुरू के महत्व पर जो बात कही है, वह सर्वथा अनमोल है! तस्मै श्री गुरुवे नम:!!

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  2. अजीब लग रहा है तो मौन में ही सम्प्रेषित होने दें.. 'हँसना' तो उन व्यर्थ के विचारों को हटा गया जो वह पहले सोच रही थी...ok पिता को पिता जी कहना ही ठीक रहेगा. पर जैसे माँ में जी लगाने से एक दूरी बन जाती है वैसे ही पिता में एक अपनापन नजर आता है उसे और कोई बात नहीं...

    सचमुच जब न कोई लोभ सताये न कोई डर..वही अवस्था जीवनमुक्त की अवस्था है...शुभकामनाये और बधाई !

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