Sunday, November 30, 2014

कबीर का दोहा


इस समय एक तरफ तो धूप निकली है दूसरी तरफ बादलों के गरजने की आवाज भी सुनाई दे रही है. सुबह-सवेरे मौसम ठंडा था, जून को सर्दी लग गयी है, सो पहले वह उठी, बाहर गयी तो हवा शीतल थी पर कल सुबह चार बजे की शीतल स्वच्छ हवा का एक झोंका भी कितना प्रफ्फुलित कर गया था. ब्रह्म मुहूर्त में उठने की महिमा यूं ही तो नहीं गयी गयी है धर्म ग्रन्थों में ! अब दोपहर के पौने एक बजे हैं, अभी कुछ देर पहले जून को बाहर तक छोड़कर आने लगी तो उन्होंने पौधों पर पड़ रही धूप की ओर ध्यान दिलाया, पौधों को टोपी से ढका अन्यथा शाम तक कुम्हला जायेंगे. जून ने वह पुस्तक भेज दी है, अगस्त का आरम्भ है यदि वर्ष के अंत तक भी छप जाये तो बड़ी बात होगी. ढेर साडी पत्रिकाएँ पड़ी हैं पढने के लिए, लिखना भी है, पत्र व इमेल भी. एक ड्रेस पर बटन टांकने हैं, अभ्यास करना है, और यह सब करना है इन सवा दो घंटों में. जागरण में आज कर्मवाद पर सुना, मानव कर्म करने के लिए स्वतंत्र है पर फल भोगने के लिए नहीं, वह उसके चाहने अथवा न चाहने पर भोगना ही पड़ेगा, सो कर्म करते समय प्रतिक्षण सजग रहना होगा. उस वक्त वह जीनिया के सूखे फूलों से बीज निकाल कर अलग कर रही थी, इस कर्म का फल तो रंगीन ही होने वाला है. ‘आत्मा’ में गीता के ‘प्रथम अध्याय’ पर चर्चा हुई, मन ज्ञानियों की सी बातें तो बहुत करता है पर ज्ञान उसके भीतर टिकता नहीं है !

‘जब कोई उसे ढूँढ़ता है तो वह उसे नहीं मिलता पर जब वह ढूँढ़ते-ढूँढ़ते खो जाता है तो वह उसे ढूँढ़ता है !’ आज सुबह के समाचारों में जम्मू स्टेशन पर आतंकवादियों द्वारा अँधा-धुंध गोलियां चलाये जाने से दस व्यक्तियों के मरने की खबर सुनी. पिछले एक हफ्ते के अंदर यह तीसरी बड़ी दुर्घटना है जिसमें निर्दोष लोगों की जान जा रही है. सरकार अपने नागरिकों की सुरक्षा करने में असफल है. कुछ दिन पहले लगा था कि इस समस्या का हल शीघ्र निकल आएगा पर अब ऐसा नहीं लगता. कल शाम को बड़ी ननद को पत्र लिखा. तीन इमेल लिखे. पर सर्वर में कुछ खराबी होने के कारण भेज नहीं सकी. जून का स्वास्थ्य अभी भी पूरा ठीक नहीं है पर वह art of living का कोर्स करने के बाद काफी सचेत हो गये हैं. कल शाम से प्राणायाम का अभ्यास भी शुरू कर दिया है. वे दोनों टहलने भी गये. लाइब्रेरी से ‘झुम्पा लाहिरी’ की एक किताब लायी और हैरी पॉटर का एक और भाग. कल रात नन्हे को दस बजे ही सोने को कहा ताकि सुबह वक्त से उठ सके, सुबह उठा, तब तक गुस्सा दिखा रहा था पर स्कूल से आने तक सब भूल जायेगा. उसे इक्यानवे प्रतिशत नम्बर मिले हैं इस परीक्षा में, और पढ़ाई की जरूरत है विशेषतया गणित में.


जैसे धूँए से अग्नि छिप जाये या धूल से दर्पण ढक जाये उसी तरह मन पर अज्ञान का पर्दा पड़ा रहता है. यह अज्ञान तामसिक व राजसिक गुणों का परिणाम है. पिछले दिनों वह रजोगुण के अधीन रही. सात्विकता का भाव टिक नहीं रहा क्योंकि उसको टिकने का स्थान नहीं दिया. मन निर्विचार हो, निर्विकार तभी पवित्र विचारों को प्रश्रय मिल सकता है. जीवन जीते हुए ही जनक की तरह विदेह होना बहुत कठिन है. जीवन की धारा इतनी वेगवती होती है की मन को अपने साथ ले जाती है. बाबाजी ने कहा, “सुख देवे, दुःख को हरे, करे पाप का अंत, कहे कबीर वह कब मिलें, परम सनेही संत” गुरुमाँ ने कहा स्वप्न में भी साधक को सचेत रहना चाहिए, स्वप्न मन की वास्तविक स्थिति का परिचय देते हैं. जून कल तिनसुकिया गये थे, bookcase का आर्डर दे दिया, एक महीने बाद मिलेगा. 

तुलसी की रामायण


आज की सुबह बेहद व्यस्त थी, नन्हे को स्कूल भेजा, उससे पहले जून का फोन आया, उन्होंने उसके लिए ड्रेस तो खरीद ली है पर महंगा होने के कारण दूसरी फरमाइश पूरी नहीं की, अब चाँदी का होगा तो महंगा तो होगा ही...खैर ! नाश्ता कर रही थी कि टीचर का फोन आया, आने को कह रही थीं. नैनी, स्वीपर दोनों का पता नहीं था सो घर बंद करके गयी. एक घंटे बाद लौटी तो दोनों आये, सब मैनेज हो गया और अभी कपड़े प्रेस करके ‘पाठ’ किया, ‘ध्यान’ अभी शेष है. इसी बीच दो फोन आये. एक में पता चला असम के मुख्यमंत्री ‘श्री तरुण गोगोई’ शनिवार को आ रहे हैं सो इस हफ्ते उन्हें विशेष पुष्प सज्जा भी करनी होगी, आज शाम पांच बजे वह एक और महिला के साथ जाएगी, एक नया अनुभव होगा उस दिन भी, क्लब में कितनी ही बार कितने कलात्मक ढंग से पुष्प सज्जा देखी है, पर इस बार स्वयं करने का अनुभव होगा. जून ने कहा है वहाँ रोज शाम को छह बजे से रात दस बजे तक बिजली गायब रहती है, जब सबसे ज्यादा बिजली की जरूरत होती है. परसों वह चल रहे हैं और सोमवार सुबह उनके साथ होंगे !

Jun called in the morning, he was so loving and caring on phone as always. Last evening they went to club and then to book exhibition. She bought “Tulsi Ramayan” it is nine a.m., two friends called then she talked to two friends, could not concentrate what Guru ma and babaji were saying in today’s discourse but she knows they were talking about God, values and love. She loves this world and its maker, she loves all around her, her friends, relatives, country and its citizen, her son and husband and also she loves herself. She is grateful to God and all which bear her, she is grateful that this beautiful world has been the source of inspiration, joy and love.


पिछले दो दिन डायरी नहीं खोल सकी, शनिवार को सुबह संगीत कक्षा में गयी वहाँ से लौटकर क्लब. शाम को एक सखी के यहाँ. कल सुबह इतवार की विशेष सफाई करने में बीती, दोपहर को ‘यादें’ देखी, शनि की दोपहर भी एक फिल्म चल रही थी. आज सुबह जून आ गये, उसकी नींद चार बजे से भी पहले खुल गयी थी, बाहर के गेट का ताला खोलकर पुनः सोने की कोशिश की, वह ठीक पांच बजे आ गये, उनके वस्त्रों से ट्रेन की गंध आ रही थी, जो दो-तीन दिन की यात्रा के बाद भर जाती है. फिर उन्होंने उसके लिए लाये वस्त्र दिखाने शुरू किये, पहले गुलाबी, फिर नीला और फिर पीला - बेहद सुंदर और बेहद भव्य ! गुलाबी पर सफेद से कढ़ाई है, उसने उन्हें कहा यह उसे पसंद नहीं है पर जब बाकी दो देखे तो वह भी भा गया. उसके मन की वह इच्छा जो उस दिन डायरी के पन्नों पर जाहिर की थी अपने आप ही पूरी हो गयी. ईश्वर हर क्षण उनके साथ है यह विश्वास और भी पक्का होता जाता है. जून समय से दफ्तर भी चले गये पर थोड़ा पहले आ गये, खाना जरा कम खाया, सफर से आकर एकाध दिन तो एडजस्ट होने में लगेगा ही. आज नन्हा अपनी क्लास-सिस्टर्स के लिए चाकलेट्स ले गया है, कल नौ लडकियों ने उसे राखी बाँधी थी. आज सुबह ढेर सारे कपड़े प्रेस करने थे सो अभ्यास नहीं हुआ. अभी करेगी, दो बजे हैं, नन्हा तीन बजे तक आता है, पर जून हिंदी की दो पत्रिकाएँ भी लाये हैं, ‘हंस’ और ‘उदय जागरण’, एक साहित्यिक है तो दूसरी राजनीतिक. छोटी ननद की राखी आ गयी है, अच्छा सा पत्र भी लिखा है.  

Friday, November 28, 2014

पुष्प सज्जा की कला


जून घर पहुंच गये हैं, स्टेशन से ही उन्होंने फोन किया. उनके न होने से एक खालीपन तो है पर एक नयी ख़ुशी भी है कि उनके आने के बाद वे पहले से ज्यादा करीब होंगे, दूरियां निकटता को बढ़ा देती हैं. घर में सब ठीक होंगे उसे व नन्हे को याद कर रहे होंगे. कल शाम क्लब की एक सदस्या ने फोन किया, इस बार मीटिंग में पुष्प-सज्जा उसे एक सखी के साथ मिलकर करनी है. इस समय दोपहर के सवा बजे हैं, प्रूफ रीडिंग का काम हो गया है. सुबह पांच बजे वे उठ गये थे, नन्हा भी वक्त पर तैयार हो गया था, उसके कपड़ों को ठीक करना है, उसकी आलमारी भी ठीक करनी है. आज सुबह उसकी पिछले वर्ष की किताबें उठाकर देखीं तो पता चला दीमक ने घर बना लिया था. कल छोटी बहन का जन्मदिन है, कल उसे फोन करेगी, दीदी का फोन आए कई दिन हो गये हैं, बड़े भाई का भी, अब राखी के दिन उनसे बात होगी. सभी सुखी रहें यही उसकी कामना है. अड़ोस-पड़ोस में सभी को अमरूद भिजवाने हैं. उसने सोचा, नैनी के बेटे से तुड़वा कर यह कार्य भी सम्पन्न कर लेना चाहिए.

अभी-अभी छोटी बहन को जन्मदिन की बधाई दी, उसने कहा, पत्र लिखा है. भांजी और पिता से भी बात हुई. पिता ने भी पत्र लिखा है, उन्हें उसने लिखा था, माँ के पत्रों की कमी वह महसूस करती है, अभी तक उसके अंतर्मन में मोहमाया के बंधन बहुत गहरे हैं. कल रात दीदी का भी फोन आया. सुबह जून का भी, वह मित्र के बेटे की पढ़ाई के बारे में बात करने उसके यहाँ जाने वाले हैं. उनकी दिनचर्या बेहद व्यस्त रहेगी वहाँ. गुरू माँ अमीर खुसरो का लिखा एक गीत(जो गुरू की प्रशंसा में है) गा रही हैं, उनकी बातें दिल को छू जाती हैं, उनसे मिलने की इच्छा हृदय में उत्पन्न होने लगी है और वह जानती है ईश्वर उन्हें एक न एक दिन अवश्य मिलाएगा. वे दोनों उसी के द्वारा तो बंधे हैं.

“यह दिल है मेरा मन्दिर, और मन यह पुजारी है,
मन्दिर में जो रखी है, मूरत वह तुम्हारी है”

अगस्त का शुभारम्भ ! कल रात जून का फोन आया, वहाँ शाम से ही बिजली नहीं थी, घर में बैठे-बैठे वह परेशान हो रहे थे, उन्हें उसने अपनी फरमाइशें बता दीं, एक तो दीपक चोपड़ा जी की सलाह पर चांदी का टंग क्लीनर और दूसरी एक ड्रेस. कल शाम ही उसने तय किया है कि अब घर पर भी अच्छे वस्त्र पहनेगी, चालीस के बाद वैसे भी जीवन कितना रह ही जाता है जो चीजों को संभाल-संभाल कर रखा जाये. घर में भी यदि उसी तरह संवर कर रहा जाये तो अपना साथ खुद को तो भला लगेगा ही घर के अन्य लोगों पर भी इसका अच्छा असर पड़ेगा, सो पुराने वस्त्रों को अलविदा ! कल शाम की मीटिंग अच्छी रही, कार्यक्रम सभी अच्छे थे. पुष्प सज्जा का अनुभव भी अच्छा रहा. अभी एक सखी से मिलकर आ रही है जिसकी माँ घातक बीमारी से ग्रस्त हैं, अस्पताल में हैं. आज सुबह बाबाजी व गुरू माँ से भी मुलाकात हुई, उनकी वजह से ही उसका मन समता को पा सका है, ऐसा लगता है कि जीवन में आने वाली किसी भी स्थिति का सामना वह कर सकती है. ईश्वर उसके विश्वास की रक्षा करता है !



नंदन- बच्चों की पत्रिका


जिसके हृदय में ईश्वर का प्रेम उदित हो जाता है, वह पारस हो जाता है. वह जहाँ निवास करेगा वे स्थान तीर्थ हो जाते हैं. भक्त के विचार इतर विचारों से अलग हो जाते हैं, यदि मन में सांसारिक विषयों का ही चिन्तन चलेगा तो बातचीत में वही प्रकट होगा, बातचीत का विषय क्या है इसको देखकर ही अंतर्मन में चलने वाल चिन्तन प्रकट होता है. वाणी का संयम तभी सम्भव है जब विचारों का संयम हो, चिन्तन सही दिशा की ओर हो ! आज बाबाजी ने देश की गरिमा की ओर ध्यान खीँचा साथ ही उन स्वार्थी लोगों की तरफ भी, जिन्होंने शत्रुओं को भेद बताये और निज देश के मान-सम्मान का सौदा किया, जब बाड़ ही खेत को खाने लगे तो कौन बचा सकता है ? इसी तरह जब मानव स्वयं ही निज सुख का हनन करे, नियमों का पालन न करे तो हानि स्वयं को ही होगी. आज मौसम सुहावना है, बदली बनी है, हवा शीतल है. कल दोपहर बाहर लॉन में बैठकर एक कविता लिखी, भोगा हुआ यथार्थ ! कल ही जून ने आखिर प्रकाशक से बात की, नन्हे का आज हिंदी का इम्तहान है, कल शाम उसे पढ़ाती रही, सांध्य भ्रमण का समय नहीं मिला. शनिवार को जून जा रहे हैं, फिर पूरा एक हफ्ता उन्हें अकेले रहना होगा, पुस्तकें और लेखन उसका साथ देगा.

कल अंततः उसकी पुस्तक प्रूफ रीडिंग के लिए आ गयी. नदंन के सम्पादक श्री जयप्रकाश भारती जी ने भूमिका लिखी है, जून के बनारस से लौट आने के बाद ही वे उसे वापस भेजेंगे. रात को ठीक से सो नहीं पायी, अभी भी कभी-कभी मन कहा नहीं मानता. नन्हे का आज अंतिम इम्तहान है. उसके दो पेपर ठीक हुए हैं, दो सामान्य और आज का भी सामान्य होने की आशा है क्योंकि सुबह भी पढ़ रहा था. अगले सप्ताह से ज्यादा गम्भीर होने की जरूरत है. गुरू माँ ने कहा कि भक्ति योग के अनुसार मानव बूंद है, ईश्वर सागर है और वेदांत के अनुसार बूंद ही सागर है, अर्थात पहले के अनुसार सागर में बूंद और दुसरे के अनुसार बूंद में सागर ! कल उसने गुलदाउदी की पौध गमलों में लगा दी, अभी भी कुछ पौधे शेष हैं जिन्हें जमीन में लगाने का विचार है. बाबाजी ने आज पानी के प्रयोग बताये, सुबह उठकर सवा लीटर पानी पीना है और पैंतालीस मिनट तक कुछ खाना नहीं है. दोपहर व रात के भोजन के बाद डेढ़-दो घंटे तक पानी नहीं पीना है. आज भी मौसम ठंडा है, कल शाम काफी वर्षा हुई. वर्षा रुकने पर वह लाइब्रेरी गयी, दीपक चोपड़ा की एक पुस्तक लायी Perfect Health. जून को हल्की सर्दी है, वैसे वे सभी स्वस्थ हैं पिछले कई महीनों से. जून को प्राणायाम से लाभ हुआ है उसे ईश्वर के स्मरण से. यह अहसास कि कोई है जो हर पल उनके साथ है और उनका मनोबल उच्च करता है, सत्मार्ग पर ले जाता है, अपने आप में ही एक उपहार है, वे भटक नहीं रहे हैं, इतना सजग तो उन्हें रखता है.

आज जून कामरूप एक्सप्रेस से गोहाटी जायेंगे. सुबह साढ़े चार बजे वे उठ गये, पांच बजे उसे उठाया. नन्हे और उनके जाने के बाद वह संगीत की कक्षा में गयी, राग हमीर सिखाया अध्यापिका ने. अगले हफ्ते एक दिन दोपहर को भी जाएगी ऐसा उसने तय किया है. घर आकर भोजन की तयारी की, कपड़े प्रेस किये. ध्यान अभी नहीं किया है, आज सुबह बाबाजी से भी नहीं मिल सकी. कल शाम बहुत दिनों बाद दो मित्र परिवार मिलने आये. आज सुबह ससुराल से फोन आया, आसाम की चाय मंगवाई है, नन्हे के लिए राखी भेजी है. अगले कुछ दिन उसके पास वक्त ज्यादा होगा, ध्यान, संगीत और अध्ययन-लेखन के लिए. जून से मिलकर घर में सभी खुश होंगे और जून उनसे मिलकर,  उनकी याद तो आयेगी ही... !




Thursday, November 27, 2014

हैरी पॉटर की दुनिया


सतगुरू मेरा सूरमा, करे शब्द की चोट ! टीवी के माध्यम से उसे गुरू प्रतिदिन मिलते हैं, शब्द की चोट करते हैं, सदुपदेश देते हैं, अंतः करण में उस परम शक्ति का आवाहन करने की प्रेरणा देते हैं, कभी-कभी लगता है वह सही मार्ग पर जा रही है पर फिर असावधानी वश पीछे लौटना हो जाता है और स्वयं को उसी स्थान पर पाती है जहाँ से चली थी. परसों सुबह संगीत कक्षा में गयी, लौटी तो ध्यान आदि किया, भोजन बनाया, जून को फ़ील्ड जाना था. पूरा दिन उउपन्यास पढ़ते या टीवी देखते गुजरा. कल सुबह-सुबह ही जून से गुस्सा हुई, लेकिन इतना तो मानना पड़ेगा कि पता था गुस्सा हो रही है सो ५-१० मिनट से अधिक नहीं टिका, पर दिन उसी तरह गुजरा जैसे शनिवार गुजरा था. कल रात भर डरावने सपने देखती रही, harry potter मन मस्तिष्क पर जो छाया हुआ था. स्टार टीवी पर ‘आत्मा’ आ रहा है. गुरू माँ ने भक्ति का महत्व तथा भक्त के लक्षण बताए.

“मन में भाव न हो तो पूजा-अर्चना व्यर्थ है, ईश्वर के प्रति श्रद्धा का माप पूजा व आरती नहीं बल्कि अंतर्मन में ज्ञान का दीपक जलाने से होता है. गुरुनानक ने कहा है उस परमेश्वर की आरती का थाल यह गगन है, सूर्य, चाँद, तारे मानो उसमें दीपक जल रहे हैं, हवा, फूलों और वनस्पतियों रूपी धूप की सुगंध फैला रही है और चंवर डुला रही है. ऐसे विराट स्वरूप को क्या कोई मन्दिर में कैद कर सकता है ? मन्दिर की पवित्रता भी यदि किसी के भीतर पवित्र भाव न जगा सकी तो वहाँ जाना या न जाना बराबर है. हर क्षण जो उसकी याद में बीते, पूजा का क्षण है और हर स्थान पवित्र है, जितनी साँसें उसके स्मरण में लीं वही सार्थक हैं और जितनी उसे भुलाकर समझें गंवा दीं”. आज गुरू माँ ने उपरोक्त प्रेरणास्पद बातें कहीं. उसे लगा जैसे वह यह भी कह रही हों, सुबह-सुबह जब आकाश में सूर्य उदय हो रहा हो तो अपने अंतर में भी ज्ञान का सूर्य उदय हो ! पंछियों की चहचहाहट से जब बाहरी वातावरण गुंजित हो तो अंतर के प्रांगण में उसके नाम की गूँज हो. वे मन्मुख न हों तथा अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानें. अपने भीतर ही उच्च जीवन की सम्भावनाएं छिपी हैं, सृजन की क्षमता है, सुख और आनंद का स्रोत है. कल जून पहले की तरह के अपने मूल स्वभाव में आ गये थे, आज सुबह उसने संयम की बात कही तो उन्होंने ‘जिद’ कहा. कभी न कभी यह संयम उन्हें भी सधेगा, तब मिठाई देखते ही उसे खाने की इच्छा को नियंत्रित कर सकेंगे. आज नन्हे की गणित की परीक्षा है, कल अंग्रेजी की हो गयी, उसका आत्मविश्वास बढ़ रहा है. बड़े भाई ने अभी तक फोन नहीं किया, ईश्वर ही मदद करेगा.

“जब दिल में राग-द्वेष न हो, स्वर्ग भीतर होता है, जब स्वयं को श्रेष्ठ दिखाने के लिए अन्यों को नीचा दिखाते हैं तो हृदय में नर्क उत्पन्न होता है. जो व्यक्ति सामने न हो, उसकी बात करना उचित नहीं है. अन्यों के कल्याण की बातें ही मन सोचे, चारों दिशाओं में शुभकामनायें भेजे, जो हृदय की गहराइयों से निकली हों. सभी के प्रति, चाहे वे मित्र हों या अपरिचित स्नेह भाव बना रहे. भूलकर भी कोई अप्रिय बात या कटु वचन अथवा भावना भी दिल में न उपजे, तभी कोई ईश्वर का भक्त होने का दावा कर सकता है. हृदय पवित्र होगा, स्फटिक की तरह चमकदार, झील के शांत पानी की तरह स्वच्छ और स्थिर तो उसकी झलक मिलती है”. संतों के वचन उसे एक अनोखी दुनिया में ले जाते हैं, जहाँ प्रेम है, करुणा है, हित की भावना है, उच्च विचार हैं, जहाँ भौतिक वस्तुओं के प्रति उतना ही आदर है जिसके वे योग्य हैं पर मानसिक शांति व सुख की बड़ी पूछ है. आज नन्हे का गणित का इम्तहान है.



Tuesday, November 25, 2014

अज्ञेय की कविताएँ


दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने वार्ता को असफल नहीं बताया है, उम्मीद की किरण अभी भी रोशन है. कल रात से वर्षा हो रही है, मौसम कल जितना गर्म था आज उतना ही सुहावना है. बाबाजी आज कीर्तन करवा रहे थे. उससे पहले टैगोर की जापान यात्रा का एक संस्मरण सुनाया. गुरूमाँ ने ऐसे नृत्य का जिक्र किया जो किया नहीं जाता, हो जाता है. बहुत दिनों से उसके साथ ऐसा नहीं हुआ है शायद आज शाम को ही इसका अवसर आए, क्योंकि वर्षा यदि थमी नहीं तो घर पर ही टहलना होगा जो उसके मामले में कैसेट लगाकर थिरकना होता है. कल दोनों पत्र भी लिखे और दीदी को जवाब भी दिया है. कल रात छोटी बहन व पिता से बात हुई. आज दोपहर स्टोर की सफाई करनी-करवानी है.

सुबह-सवेरे भजन जब अपने आप होने लगे, मन परमेश्वर की स्मृति में सहज रूप से लगा रहे, उसे लगाना न पड़े तो ही जानना चाहिए कि प्रेम का अंकुर फूटा है. चारों ओर उसी का वैभव तो बिखरा है, उसी की सृष्टि का उपयोग वे करते हैं पर उसे भुला बैठते हैं. जबकि वह हर क्षण साथ है, दूर नहीं है. बस एक पर्दा है जो उन्हें एक-दसरे से अलग किये हुए है. वह हर क्षण श्रद्धा का केंद्र बना है, हर श्वास उसकी कृपा है. मन यदि हर क्षण उसी को अर्पित रहे तो इसमें कोई विक्षोभ आ भी कैसे सकता है. संसार की बातें उत्पन्न करने वाला भी वही है. यही आराधना ही राधा है, जिसके माध्यम से कृष्ण को पाया जा सकता है. वह आत्मा है, जिसके प्रसाद के बिना मन आधार हीन होता है, बाहर का सुख टिकता नहीं, यह अनुभव बताता है. उस एक से प्रीति हो जाने पर परम सुविधा मिलती है जो कभी छूटती नहीं, अपने उच्च तत्व का साक्षात्कार करना यदि आ जाये तो यह जो गड्डमड्ड, खिचड़ा हो गया है, देह के अस्वस्थ या मन के दुखी होने पर स्वयं को अस्वस्थ या दुखी मानना, छूट जायेगा. जैसी दृष्टि होगी यह जगत वैसा ही दिखेगा. अँधेरी रात में एक ठूँठ को एक व्यक्ति चोर समझता है, दूसरा साधू और तीसरा रौशनी करके उसकी असलियत पहचानता है. उन्हें भी इस जगत की वास्तविकता को पहचानना है. न इससे आकर्षित होना है न ही द्वेष करना है. तभी वे मुक्त हैं.

आज अमावस्या है. सुबह से ही मन में उत्साह है. एक वक्त के भोजन में फलाहार लेना है आज, जितना हो सके उतना व्रत पालना ही चाहिए. कल दोपहर और शाम को अज्ञेय की कविताएँ पढ़ीं, अनुपम हैं और भावना के उस लोक में ले जाती हैं जहाँ प्रेम है, शरद की चाँदनी, टेसू के फूल हैं, जहाँ इष्ट की आराधना है, “मैं संख्यातीत रूपों में तुम्हें याद करता हूँ” अज्ञेय की कविता अंतर को गहरे तक छू जाती है. अभी-अभी गुरू माँ ने कहा ईश्वर को प्रेम करने का अर्थ संसार का विरोधी हो जाना नहीं है. जब जीवन में प्रेम होता है, तब वह सभी के लिए होता है. उसमें समष्टि समा जाती है. ईश्वर, प्रकृति, मानव उससे कुछ भी अछूता नहीं रहता, प्रेम में महान ऊर्जा छुपी है, वह आस-पास की हर वस्तु को एक नये दृष्टिकोण से दिखाती है. उसे लगता है, मन को एकाग्र करना हर वक्त संभव नहीं पर यह सम्भव है कि इस बात का बोध रहे कब मन एकाग्र है और कब एकाग्र नहीं है, और कब एकाग्र नहीं है ? जब मन गुण ग्राही होता है, बुरी से बुरी परिस्थिति में भी कोई न कोई अच्छाई खोज लेता है, तब वह एकाग्र होना सीख लेता है. उसने प्रार्थना की, आज का दिन ईश्वर के प्रति समर्पित हो, दिन भर वह उसकी याद अपने मन में बनाये रखे, सभी के प्रति मंगल कामना से मन युक्त रहे !   



Friday, November 21, 2014

विनोबा की गीता


आज नन्हे का जन्मदिन है, सुबह उठी फोन की घंटी की आवाज सुनकर, उसके दादाजी का फोन था, उसके बाद नानाजी का, छोटे मामा-मामी तथा बड़ी बुआ व फूफा ने फोन द्वारा मुबारकबाद दी, नन्हा तो स्कूल चला गया था उन्होंने ही सबसे बात की. कल जून ने उसे मित्रों के लिए ढेर सारी चाकलेट्स लाकर दीं जो वह स्कूल में बाँटने वाला है. आज उसे उन्होंने कार्ड व उसने कुछ रूपये दिए पर उसके लिए पैसों का कोई महत्व नहीं है, उसे वापस आलमारी में रखने को कह गया है. एक तरह से अच्छा ही है, पैसों को उतना ही महत्व देना चाहिए जितने के वे हकदार हैं. ईश्वर की उन पर कृपा है कि उनकी जरूरत की सभी वस्तुएं प्रदान कर रहा है. बाबाजी ठीक कहते हैं ईश्वर प्रतिक्षण कृपा बरसा रहा है, उसकी प्रतीक्षा नहीं करनी है बस समीक्षा करनी है. आज शाम को एक मित्र उनके साथ भोजन खायेंगे, नन्हे के लिए विशेष डिनर बना रही है, कल दोपहर केक बनाया था. मौसम आज अच्छा है. कल शाम जून ने उसे प्राणायाम सिखाया पर सुदर्शन क्रिया बिना सीखे करना उचित नहीं है. सतत् अभ्यास से सम्भवतः वह कभी कर पाए. पिता से आज बहुत दिनों बाद बात की, उन्हें बताया कि उनके लेख नन्हे के काम आ रहे हैं. उनकी डायरी से वह आजकल विनोबा का गीता पाठ करती है, यह नहीं बताया. उनका सबसे बड़ा उपहार यही है. 

आज उसे RCT के लिए जाना है. उस सखी के लिए डिब्रूगढ़ भोजन भिजवाना है और  वे सारे कार्य करने हैं जो रोज की दिनचर्या में शामिल हैं. कल दोपहर बाद बड़े भाई का फोन आया नन्हे के लिये बधाई दी और यह भी कहा कि उसकी किताब के लिए उन्होंने अपने सहयोगी ( नाम वह भूल गयी है ) को कहा है. आज सुबह गुरू माँ ने सक्रिय ध्यान की विधि सिखाई, सुदर्शन क्रिया से मिलती-जुलती ही है. कहा कि जिन्हें शरीर से ज्यादा मोह होता है उन्हें ही डर लगता है, सो डरने की कोई बात नहीं है. बाबाजी का प्रवचन भी अति उत्साह देने वाला था. लोग चिंता इसलिए करते हैं क्योकि चिंता करना उनका स्वभाव ही बन गया है कमियां ढूँढने में दक्ष हो जाते हैं. नकारात्मक दृष्टिकोण अपनाये रहते हैं तभी सारी परेशानियाँ चारे वे शारीरिक हों, मानसिक हो, अथवा आध्यात्मिक हों उत्पन्न होती हैं ! ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करना या आभार प्रकट करना तो दूर, वे सदा उससे शिकायत ही करते हैं. यह सुंदर जगत जिसे देखने, समझने और महसूस करने का सुअवसर उसने दिया है, जिसे वे खुद के लिए जंजाल बना लेते हैं. यदि वे अपने सम्मुख आने वाले अवसरों को ईश्वर का वरदान मानें और उनका सदुपयोग करते चलें, मन को सात्विक भावों से परिपूर्ण रखें और एक क्षण के लिए भी उस शक्ति को न भूलें जो सदा उनके साथ है तो कोई भय नहीं !

It’s a lovely morning, typical Assam weather, it is raining since night, breeze is cool just now she finished her “Pranayam and Meditation”,  yesterday dentist did the white filling in her tooth cavity, RCT was not required, she was unnecessary worried since last one month. After so many weeks or month she has switched over to English and finding it difficult, her handwriting as well as sentence making and vocabulary also spelling… all need attention. Last few months she read more hindi books than English. But English is as well as important. Jun is going to Dibrugadh on official trip, he will go to hospital also. Tomorrow she will also go to visit them. She has to send Rakhis this week and also e-mails to all. Yesterday evening they went to a anniversary party. Day after tomorrow Pakistan’s President General Musharraf is coming to India, 750 journalists are going to Agra to cover this historical summit of two leaders, hope something useful and good for both countries comes out of this effort. All is in their hands in fact in their mind.

Today she got up hearing jun’s practice. Nanha got up late and then got his left hand hurt. Jun was upset but when he forgot his water bottle he took it and followed his school bus. He loves him very much and it is natural. And when he sees misbehaving it is natural for him to get upset but with her it is different. Last night he was silent for some reason but did not tell her but in the morning after practice he was happy and then this Nanha;s episode. Any way she should concentrate on positive things, on the discourse by Guru Ma. Today she is telling about Bhakti of Gopies.



Tuesday, November 18, 2014

सुदर्शन क्रिया का अभ्यास


आज बाबाजी ने मन को एकाग्र करने की एक सरल युक्ति बतायी, ध्यान के समय जब मन किसी वस्तु का चिन्तन करने लगे तो यह भाव करें कि उस वस्तु को देखने वाला मानस-चक्षु और सोचने वाला मानस भी उसी आत्मा का अंश है ! कल शाम को वे टेक्निकल फोरम में गये थे, श्री राय ने काफी दक्षता से अपने विषय पर व्याख्यान दिया. एक विधि ETP भी सिखायी जो शरीर में होने वाले दर्द अथवा मानसिक परेशानी को दूर करने में सहायक थी. उनके अनुसार श्वास तथा विचारों में बड़ा गहरा संबंध है. साँस को नियंत्रित करके भावनाओं को नियंत्रित किया जा सकता है. इसी तरह शरीर में होने वाले रोग आदि भी नकारात्मक भावनाओं/विचारों का परिणाम हैं. यदि सोच सकारात्मक हो और नियमित प्राणायाम का अभ्यास करें तो सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिल सकती है ! जून ने तीन दिनों की ट्रेनिंग ली जो उनके लिए बेहद उपयोगी है. वह पहले से ज्यादा संवेदनशील हो गये हैं, अधिक सचेत हो गये हैं. उसे भी अपने ध्यान को बढ़ाना होगा और प्राणायाम नियमित करना होगा. आज दोपहर सिर्फ पुस्तक पढ़ते हुए ही नहीं बितानी है बल्कि कुछ लिखना भी है. कल ‘अपने अपने राम’ पूरी पढ़ ली, राम कथा को कहने का यह एक नया अंदाज है लेकिन प्रभावशाली है. कल माली ने गमलों के लिए मिट्टी खोदकर गैराज में रख दी है, गुलदाउदी के पौधों से कटिंग्स लगाने का काम भी इतवार तक हो जायेगा. रात को वर्षा हुई पर वातावरण में उमस पहले की तरह ही है.

आज सुबह भी जून ने उठकर अपना अभ्यास ( प्राणायाम+सुदर्शन क्रिया ) पूरा किया तो वह उठी. जून जैसे ही गये संगीत अध्यापिका का फोन आ गया, वहाँ से लौटते-लौटते साढ़े आठ हो गये. आज राग विहाग सिखाया. अभी तक सफाईवाला नहीं आया तो नैनी को आवाज दी है. जिसकी बेटी को कई दिनों से बुखार है, उस सखी से फोन पर बात की, वे लोग शायद सोमवार को उसे डिब्रूगढ़ ले जायेंगे. बुखार अभी भी है. आज गर्मी बेहद है, रात को भी वर्षा नहीं हुई. आज उसने शनिवार का विशेष भोजन ‘सिन्धी कढ़ी’ बनायी है, जून देर से आएंगे, दफ्तर के किसी काम से तिनसुकिया गये हैं. नन्हा अपने हॉउस का कैप्टन बना है इस साल, अगले हफ्ते उसका जन्मदिन है और उसके अगले दिन से उसके दांत का इलाज शुरू होगा.

कल रात वे जल्दी सोने गये जिससे सुबह जल्दी उठकर जून अपना अभ्यास कर सकें पर आधे घंटे बाद ही उनके एक सहयोगी ने फोन करके जगा दिया, पुनः सोये हुए अभी दो घंटे भी नहीं बीते होंगे कि आंधी-तूफान की आवाज ने नींद खोल दी, रही-सही कसर बिजली गुल हो जाने से पूरी हो गयी. उमस इतनी ज्यादा थी कि खिड़की व बरामदे का दरवाजा खोला, आधा घंटा जगे ही रहे फिर बिजली आ गयी, इसी बीच बादलों की गर्जन-तर्जन व बिजली का चमकना जारी रहा. सुबह उठे तो बगीचा, पेड़-पौधे तूफान की गवाही दे रहे थे, यूँ कल की भीषण गर्मी के बाद वर्षा राहत बनकर आयी है, हवा ठंडी हो गयी है, पर सुबह जल्दी नहीं उठ पाए. दलिया जल गया उसकी लापरवाही के कारण, उस दिन परसों ही तो चावल पतीले में लग गये थे, उसे ज्यादा सचेत होना है न कि रही-सही सुधबुध भी खो देनी है. जून आजकल शांत हो गये हैं, वह पहले की अपेक्षा ज्यादा स्थिर दीखते हैं, जैसे हर वक्त उन्हें पता हो क्या कहना है, क्या करना है. आज नन्हे के लिए केक बनाना है, उसने काले चने बनाने को कहा था पर वह भिगोना भूल गयी, एक और लापरवाही. उसने अभी तक स्नान-ध्यान नहीं किया है, कपड़े प्रेस करते समय बाबाजी को सुना, उन्होंने कहा ध्यान सुप्त शक्तियों को उजागर करने में मदद करता है.कल दोपहर बाद जून का सिरदर्द रेकी( ध्यान की ही एक विधि ) से हल्का हुआ, शनिवार को बांह का दर्द भी इसी तरह ठीक हुआ था, शक्ति पास ही है स्वयं को ठीक करने की भी और अन्यों की सहायता करने की भी ! जरूरत है वे ध्यान में ज्यादा से ज्यादा उतरें !






१०८४वें की माँ - महाश्वेता देवी की पुस्तक


मन जब पूरी तरह खाली होगा तभी परमात्मा का नाम गूंजेगा, जैसे किसी खाली हॉल में अपना नाम पुकारें तो गूँज सुनायी देती है न, ठीक उसी तरह यदि एक बार भी उसे पुकारें तो खाली मन से टकराकर वह बार-बार सुनाई देगा ! आज बाबाजी कथाएं सुना रहे हैं जिसमें उसकी रुचि नहीं है. कल जून लाइब्रेरी से कुछ पुस्तकें लाये, पी. वी. नरसिंहा राव का लिखा उपन्यास ‘अंतर्गाथा’ जो insider का हिंदी अनुवाद है. अज्ञेय व निराला की कविताएँ, महाश्वेता देवी का उपन्यास ‘१०८४ की माँ’ तथा भगवानसिंह की पुस्तक ‘अपने अपने राम’ ! सभी पुस्तकें उच्च कोटि की हैं पर कल कुछ पृष्ठ अंतर्गाथा के पढ़े सो कुछ स्वप्न देखे. जून आज से तीन दिनों तक art of living पर एक सेमिनार में जाने वाले हैं आज लंच पर देर से आएंगे. कल उस मित्र परिवार ने उनके साथ ही भोजन किया. दोपहर भर पढ़ती रही सो शाम को कुछ गर्मी की वजह से और कुछ पढ़ने की वजह से सिर में दर्द था पर अचानक एक क्षण ऐसा आया कि दर्द नहीं था, बिना दवा लिए इस तरह दर्द पहली बार ठीक हुआ है, वह तो इसे शुद्ध भगवद् कृपा ही मानती है ! ईश्वर हर क्षण उसके साथ है उसकी सहायता करता है. आज सुबह मन में एक भाव आया कि इस क्षण वह जीवित है, अपने घर में है, सुरक्षित है, स्वस्थ है, यह कितनी असीम कृपा है, वे नहीं जानते कौन सा क्षण उनके जीवन का अंतिम क्षण होगा, फिर उन्हें दुखी होने का क्या अधिकार है ऐसा करके क्या वे ईश्वर का अपमान नहीं कर रहे होते ! कल अज्ञेय की पुस्तक में एक सूत्र पढ़ा कि गद्य भाषा से लिखा जाता है और कविता शब्द से, कविता की मूल इकाई शब्द है ! इस पर अमल करते हुए शब्दों को क्रम में रखकर सोने से पूर्व एक कविता रची थी जो अब भी याद है, यदि वाक्य होते तो शायद भूल जाती.

यदि किसी के कार्य राग-द्वेष से प्रेरित होकर होंगे तो उद्वेग का कारण होंगे, लेकिन कार्य तो हरेक को करने ही होंगे. पूसी का बच्चा फिर नहीं बचा, उसने उसे बचाने के लिए कुछ भी नहीं किया, सफेद बालों वाला सुंदर जीव था, पूसी फिर एकाध दिन शोक मनाकर भूल जाएगी. पिछली बार जब ऐसा हुआ था उसने निर्णय लिया था अगली बार अवश्य उसे घर में रखेगी पर अपनी ही परेशानियों में उलझा रहने वाला मन दूसरों की पीड़ा कहाँ महसूस कर पाता है. अब जो दुःख उसे हो रहा है उससे बच गयी होती. आज दीदी का मेल दुबारा आया, उन्होंने अपना अकाउंट खोल लिया है, जून ने जवाब भी भेज दिया. अभी तक उसने स्वयं मेल भेजना सीखा नहीं है, सीखना ही होगा, कब तक इस कार्य के लिए जून और नन्हे पर निर्भर रहेगी. आज भी गर्मी बेहद है, जून का दूसरा दिन है, कल उन्होंने प्राणायाम सीखे. पीवी नरसिंहाराव की पुस्तक रोचक है, राजनीति का क्षेत्र विषमताओं से भरा होता है, जनता, पत्रकार, साथी कार्यकर्ता, रिश्तेदार, परिवार के लोग सभी अपना-अपना काम निकलवाना चाहते हैं. अभी दिन की शुरुआत है पर मन कैसा बुझा-बुझा सा लग रहा है. सुबह-सुबह पुसी का करुण रुदन सुना और बाद में उसके बच्चे का मृत घायल तन देखा, ऊपर से गर्मी का मौसम. मौसम का तो बस बहाना है, खैर, यह दुःख भी सदा रहने वाला नहीं है, सब बदलता रहता है, वक्त का पहिया घूमा करता है यूँही ! कल अमलतास पर कविता लिखने का प्रयास किया, इस वक्त भी कविता ही उसे आश्रय देगी पर उससे पूर्व ध्यान !

आज ‘गुरू पूर्णिमा’ है, गुरू का महत्व जीवन में सर्वोपरि है. उसके जीवन में भी गुरू की कमी झलकती है. साधना के पथ पर आगे जाते-जाते कब वह पीछे लौट आती है पता ही नहीं चलता, फिर स्वयं को उसी स्थान पाती है, श्रद्धा डोलती है, ध्यान सधता नहीं, मन पुनः-पुनः उन्हीं बातों की ओर लौटता है जो दुःख का नहीं तो द्वेष का कारण होती हैं. शुद्ध, मुक्त, पवित्र, असीम उच्च भावनाओं से युक्त मन ठहरता नहीं. आज उसने व्रत रखने का निश्चय किया है. आहार के साथ-साथ वाणी और मानसिक व्रत भी. जून ने कल ‘सुदर्शन क्रिया’ सीखी, उन्हें एक नया अनुभव हुआ, आज भी वे बहुत उत्साहित थे. कई वर्ष पूर्व उन्होंने ‘अन्तःप्राज्ञ’ कोर्स किया था तब भी ऐसे ही उत्साहित थे. प्राणायाम भी सिखाया है और ध्यान भी. आज शाम को इसी सिलसिले में क्लब में होने वाले कार्यक्रम में वह भी जा रही है. आज मौसम भी अनुकूल है. कल की भीषण गर्मी के बाद रात को वर्षा हुई. कल उसकी एक और कविता वापस आयी, इस क्षेत्र में भी उसे गुरू की जरूरत है, पर अब हरेक को अपना गुरू स्वयं ही बनना है. पहले भी वह स्वान्तः सुखाय ही लिखा करती थी अब भी वैसा ही करेगी अगर कभी ऐसा लगा कि बहुत अच्छा कुछ बन पड़ा है तभी भेजेगी. कल शाम को मेल भेजना सीखा, अभी प्रयोग शेष है. आज समय बहुत है जून दोपहर को घर नहीं आ रहे हैं. बाबा जी ने ह्रस्व, दीर्घ व प्लुत जाप का दस मिनट का नियम रात को सोने से पूर्व करने को कहा है. आज से करेगी. सुबह बिस्तर छोड़ने से पूर्व उनका बताया अभ्यास करने से बहुत लाभ हो रहा है. जीवन को सही मायनों में जीने के लिए गुरू का मार्ग दर्शन बेहद आवश्यक है !   



Sunday, November 16, 2014

रेगिस्तान का एकांत


उठ जाग मुसाफिर भोर भयी, अब रैन कहाँ जो सोवत है, जो जागत है सो पावत है जो सोवत है सो खोवत है ! यह निद्रा अज्ञान की है जिससे जितनी शीघ्र जागे उतना ही अच्छा. हृदय में शुद्ध प्रेम जगे तभी यह अज्ञान मिटता है और अज्ञान मिटे तो प्रेम अपने आप उपजता है ! वस्तुओं या व्यक्तियों में यदि आसक्ति हो तो शरीर नष्ट हो जाने के बाद भी आसक्ति का नाश नहीं होता, प्राप्ति होने पर बल का नाश होता है, न मिलने पर दुःख होता है. ऐसा कोई सुख भोग नहीं जिसके पीछे भय-रोग नहीं ! सुख और मान लेने की वस्तु है ही नहीं देने की वस्तु है. किन्तु यही आसक्ति यदि सत्पुरुषों और सद्विचारों के प्रति हो तो यह कटती है और धीरे-धीरे शुद्ध प्रेम में बदल जाती है. परमात्मा में विश्वास ही उसमें आसक्ति है और उसकी प्राप्ति ही अंतर में जगा शुद्ध प्रेम है. शुद्ध प्रेम मुक्त रखता है, मुक्त होता है. आज बाबाजी प्रवचन देते-देते मौन हो गये, ईश्वर की असीम करुणा का वर्णन करते हुए कहा जो भी विपत्तियाँ ईश्वर देता है वह नश्वर से शाश्वत की तरफ मोड़ने के लिए ही देता है, अपने भीतर की शक्ति को पहचानने के लिए ही देता है. कल दोपहर उसकी आँख लग गयी, एक भव्य मकान में घूम रही थी, पर वे उसमें किराये पर रहते हैं. आलीशान संगमरमर का मकान है जो कई भागों में बंटा है, पहले भी कई बार इसी तरह का स्वप्न देख चुकी है. सीढ़ियों से नीचे उतरने के कई रास्ते हैं, वह सदा भूल जाती है, कौन सा रास्ता उनके घर की तरफ ले जाता है. कल ‘सरसों’ वाले आलू बनाये, आज भी एक नई डिश बनानी है, ‘तोरई’ की जिसकी रेसिपी जून इंटरनेट से लाये हैं. कल शाम एक सखी ने ढेर सारे नींबू भिजवाये, दो सखियों से फोन पर बात की अच्छा लगा, एक के लिए आम तोड़े, अभी भिजवाने हैं.

आज बहुत दिनों के बाद सम्भवतः एक वर्ष के बाद वह संगीत अध्यापिका के घर गयी, सचमुच गुरू की बेहद-बेहद आवश्यकता है. सुबह-सुबह जागरण में भी बाबाजी गुरू की आवश्यकता पर बल देते हैं. आज अमृत कलश में एक पत्रकार, जो मुस्लिम थे पर जिनकी भाषा शुद्ध हिंदी थी, को सुना. बहुत सी नई बातों का इल्म हुआ. रेगिस्तान में पनपे धर्मों का रूप वहाँ की भौगोलोक स्थिति की देन है और नदियों के किनारे पनपे धर्मों का रूप जुदा है. यहाँ लकड़ी की बहुतायत थी सो लोग मृतक के शरीर को जलाने लगे और रेगिस्तान में मीलों तक फैली जमीन थी एक तिनके का भी पता नहीं मिलता था सो दफनाने लगे. धीरे-धीरे वह धर्म का रूप लेता गया और कट्टरवाद को जन्म मिला. भौगोलिक और ऐतिहासिक जरूरतों की वजह से पनपा धर्म बंधन बनकर इन्सान के पैरों में लिपट गया. कल्चर और संस्कृति का भेद भी उन्होंने स्पष्ट किया.


सत्ता एक की है, जैसे आकाश एक है, घड़े अनेक हैं ! यह ज्ञान नहीं है इसलिए भेद दिखता है. जैसे कमरे में समान पड़ा हो, अँधेरे में वहाँ जाने पर टकराने की सम्भावना रहती ही है, इसी तरह हृदय में अज्ञान का अंधकार हो तो कुछ स्पष्ट नहीं दीखता, ठोकरें ही मिलती हैं. ईर्ष्या, जलन, डाह, हीन भावना ये सभी ठोकरें ही तो हैं. ज्ञान हो तो इनमें से एक की भी सत्ता नहीं रहेगी. इस जगत में न जाने कितने जीव वास करते हैं. इसकी गति को सिवाय ईश्वर के और कोई नहीं जान सकता. सुबह उठी तो रात्रि में देखा कोई स्वप्न याद नहीं था पर देखे थे इतना याद था. जैसे स्वप्न में सब सत्य प्रतीत होता है लेकिन होता वहाँ कुछ भी नहीं है, उसी तरह यह संसार भी स्वप्नवत् है. कल जो था  वह आज नहीं है, आज जो होने वाला है कल नहीं रहेगा. जीवन का क्रम यूँही चलता चला जायेगा. दीदी व छोटे भाई का मेल आया है. सुबह बड़ी ननद से बात की, आज एक सखी आने वाली है पता चला है उनकी ट्रेन लेट है. आज गोयनका जी भी आये थे, बड़ी सरल भाषा में विपासना की विधि समझाते चलते हैं, देह एक पाँचों तत्वों को किस तरह अनुभूति के स्तर पर जाना जा सकता है, आज बताया. उनकी बातें वैज्ञानिक होती हैं और बाबाजी की भक्तिभाव से परिपूर्ण !   

Saturday, November 15, 2014

गॉल ब्लैडर में स्टोन



मन की वृत्ति ऐसी हो कि इस जग को रैन बसेरा ही समझे, जिस तरह पंछी आते हैं, एक-एक तिनका चुनकर लाते हैं और नीड़ बनाते हैं, फिर कुछ दिन रहकर निर्मोही होकर उड़ जाते हैं. वे संग्रह पर विश्वास नहीं करते, अपने कर्मों के भरोसे रहते हैं, पर इन्सान के पास जोड़ने का, संग्रह का व्यसन है. जबकि उसे पता नहीं कि जिन वस्तुओं को वह संभाल कर रख रहा है वे उसकी हैं ही नहीं ! उसकी तो यह देह भी नहीं, पंचतत्वों से बनी यह देह तो प्रकृति की है. साधन रूप में मिली है”. बाबाजी ने आज ये वचन कहे थे सुबह. लेकिन जब तक देह है तब तक तो इसके प्रति कर्त्तव्य का पालन करना होगा. सुबह छोटी बहन का मेल पढ़ा, जून ने जवाब भी दे दिया है. कल दोपहर उसने ‘वनिता’ के लिए दो कविताएँ भेजीं. कल दोपहर लिखने का प्रयास किया पर बात बनी नहीं, कई दिनों से नया कुछ लिखा नहीं, जैसे स्रोत के इर्दगिर्द खरपतवार उग आये हैं अथवा काई जम गयी है. पहले उसे साफ करना होगा, तभी धारा फूटेगी. मन को ऊंचे केन्द्रों में ले जाना होगा, निस्वार्थता का पालन करना होगा. वाणी पर संयम और हृदय में प्रेम, अपने आप में आना होगा जो हम वास्तव में हैं. निर्मुक्त, शुद्ध, समर्थ, पूर्ण आत्मा..जिसे कुछ पाने की चाह शेष नहीं, जो झूठे अहम् का शिकार नहीं, जो परहित के लिए ही जीता है क्योंकि उसका हित इसी में है, जो बांटना चाहता है.

एक सखी की बेटी का बुखार अभी तक ठीक नहीं हुआ है, आज पूरे बाईस दिन हो गये  हैं, उससे बात की, वह फोन पर ही रुआंसी हो गयी. उसने तय किया, कल दोपहर या हो सके तो आज ही वह उससे मिलने जाएगी. शाम को क्लब की मीटिंग है, जाना है, कहीं दबी-छिपी यह इच्छा भी है कि कोई नाटक में उसके अभिनय की तारीफ करेगा. अभी तक कई लोग कह चुके हैं, शायद इसी के पीछे नेता और अभिनेता भागते हैं, खैर, वैसे भी उसे जाना था, क्लब की सदस्यता ली है तो सभा में जाना भी एक कर्त्तव्य है. आज बाबाजी को नहीं सुन पायी, मंझली भाभी को फोन किया, वह भी भाई के गॉल ब्लैडर में स्टोन के आपरेशन को लेकर थोड़ी परेशान थी. कल रात को भाई ने बताया था और रात भर वह डरावने सपने देखती रही, अचेतन मन कैसे भयभीत हो जाता है. समाचारों में हिंदुस्तान, पाकिस्तान के अच्छे संबंधों के बारे में आशान्वित लोगों के विचार सुनकर अच्छा लगता है, भविष्य में वह भी कभी पाकिस्तान जा पायेगी अगर ऐसा हो गया तो !


मानव का जन्म आत्म वैभव का अनुभव करने के लिए हुआ है न कि निराश होकर जीवन की गाड़ी को घसीटते हुए किसी तरह दिन गुजारने के लिए ! जीवन का लक्ष्य ऊंचा होगा तो साधन अपने आप मिलते जायेंगे, आज बाबाजी ने एक सूत्र और बताया कि माह में दो दिन उपवास रखा तो तन-मन दोनों हल्के रहते हैं. कल उनकी मीटिंग अच्छी रही, कार्यक्रम तथा जलपान दोनों ही बहुत अच्छे थे. एक नई सदस्या ने सम्बोधित किया, धीरे-धीरे ही सही सभी अपने खोलों से बाहर आ रहे हैं. उसके नाटक की तारीफ़ भी दो लोगों ने की पर अब लगता है कितना ओछापन है यह उम्मीद पालना, नीचे गिरना ही है. यह छोटी-मोटी वाह-वाही विनम्र नहीं बनाती बल्कि एक झूठा नशा देती है. बड़े-बड़े कलाकार कितने मजबूत होते होंगे भीतर से कौन जानता है ? कल दोपहर वह उस सखी के यहाँ गयी, बेटी का इलाज ठीक चल रहा है, बस वक्त कुछ ज्यादा लग रहा है. कल रात भाई से बात की, आप्रेशन ठीक हो गया. दीदी को फिर से मेल भेजा है, महीने में दो बार उपवास रखने की बात पर अमल करना ठीक होगा !




Thursday, November 13, 2014

नाटक की रिहर्सल


आज उनके नाटक की ड्रेस रिहर्सल है, बाबाजी आ चुके हैं पर नैनी अपने जीवन की व्यथा सुना रही है. उसके पास कहानियों एक नहीं अनेक हैं, अपने लम्बे-चौड़े भूतपूर्व परिवार की कहानियाँ, उसके पति ने दूसरी शादी कर ली तो वह अपने तीन बच्चों को लेकर घर छोड़कर आ गयी, बर्तन मांजकर गुजारा करने लगी. यह कई साल पहले की बात है फिर उसके पति की दुखद मौत हुई. देवर-जेठ सभी समर्थ थे पर किसी ने सहारा नहीं दिया यहाँ तक कि जायज हक भी नहीं दिया. ननदें भी अचछे घरों में ब्याही हैं, उनके बच्चे भी पढ़लिख रहे हैं पर इसके बच्चे बिन पढ़े ही रह गये अब तो बेटियों की शादियाँ हो गयी हैं. बेटा भी काम तलाश रहा है, कभी मिल जाता है कभी नहीं मिलता. आज भी सर्दी ने उसे परेशान किया हुआ है, विश्वास पूर्ण हृदय ले ईश्वर से शक्ति के लिए प्रार्थना की ताकि आज और कल अपने कर्त्तव्य का पालन कर सके. इतना विश्वास तब तो नहीं होता जब वह स्वस्थ होती है. कबीरदास ने सच ही कहा है- दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोई.. जून आज सुबह समझा कर गये हैं कि वह अपना ख्याल रखे. वह उसका बेहद ख्याल रखते हैं, कल उसके साथ उन्होंने ‘संघर्ष’ फिल्म देखी. फिर वह क्लब गयी. मौसम आजकल ठीकठाक है, न बेहद वर्षा न बेहद गर्मी.

आज शनिवार है, शाम को नाटक है, स्वास्थ्य पूरी तरह तो नहीं सुधरा है पर शेष पात्रों को आभास तक नहीं हुआ सो स्पष्ट है कि आवाज और अभिनय पर पकड़ पूर्ववत् ही है. कल क्लब में तीन घंटे से भी ज्यादा वक्त लग गया, आज भी तीन-चार घंटे तो देने ही होंगे. जून और नन्हे को उसकी अनुपस्थिति का धीरे-धीरे अभ्यास हो रहा है. आज मौसम अच्छा है रात भर वर्षा होती रही. पहले-पहल नींद कुछ अस्त-व्यस्त सी रही पर बाद में आ गयी. काफी देर तक नाटक के संवाद बिन बुलाये मेहमान की तरह चक्कर लगते रहे. स्वप्न में वह घंटों नेपाल के राजा से बातें करती रही, उनके राज्य में विद्रोह करने वाले नेताओं, क्रांतिकारियों से भी मिली. जून ने कल पिता से बात की, उनके घर में नये मालिक आ गये हैं, अब वह उनका कहाँ रहा ?

आज गोयनकाजी ने महावीर स्वामी और गुरुनानक का उदहारण देते हुए विपासना का महत्व समझाया. महावीर ने कहा है, जो भीतर है वही बाहर है और जो बाहर है वही भीतर है. बाहर की सच्चाई को बुद्धि के स्तर पर समझा जा सकता है पर भीतर के सत्य को अनुभूति के स्तर पर ही समझना होगा. नानक ने कहा है, “थापिया न जाई, कीता न होई, आपे आप निरंजन सोई” भीतर की सच्चाई को देखने के लिए कुछ आरोपित नहीं करना है न ही कुछ करना है, जो अपने आप है वही हरि है !  कबीर ने भी इस प्रश्न के उत्तर में, कि हरि कैसा है ? कहा, जब जैसा तब वैसा रे...जिस क्षण हमारे अंतर की स्थिति जैसी होगी हरि उस क्षण वैसा ही होगा. प्रतिपल अंतर को साक्षी भाव से देखते  रहना ही विपासना है. यदि मन में विकार भी जगा है तो उसे देखना है कि उसके प्रति कैसी संवेदना जगी है. उस संवेदना के मूल का ज्ञान होने से वह स्वतः ही नष्ट हो जाती है और ऐसे धीरे-धीरे विकार जड़ से दूर होते हैं, दमन करने से जड़ भीतर ही रह जाती है और वह विकार पुनः-पुनः सर उठाते हैं. उसे यह सब सुनना अच्छा लगता है, लगता है  अपनी विचार शक्ति को जितना ऊंचा बनाएगी उतना ही जीवन उन्नत होगा. वह कहाँ है और क्या करती है यह उतना महत्व नहीं रखता जितना कि उसका मन कहाँ है और वह कैसी भावना से कर्म करती है, इसका महत्व है.



Wednesday, November 12, 2014

सोलर कुकर का मॉडल


जब चित्त में संसार का कोई भी ख्याल नहीं उठता है तब मन ठहर जाता है, भीतर परम मौन उभरता है और उसी शांति में परमात्मा की झलक दिखाई देती है. ध्यान करते करते जब प्राणायाम की विधि, मन्त्रजप व सारी चेष्टाएँ अपने आप छूट जाएँ तभी ऐसी स्थिति आती है ! जितना सच्चाई भरा व्यवहार होगा उतना अंतःकरण शुद्ध होगा और उतना ही ध्यान टिकेगा, मन में कोई उहापोह न हो कोई द्वेष की भावना न हो, अपने प्रति व दूसरों के प्रति ईमानदार रहें, ईश्वरीय आदर्शों की और जाने की आकांक्षा हो तो जीवन में सहजता आने लगेगी. आज सुबह जो सुना था उसमें से ये बातें उसे याद रह गयी हैं. अभी-अभी छोटी बहन से बात की, कह रही थी सभी को उसकी फ़िक्र है जानकर अच्छा लगा. कल रात को वर्षा हुई सो धूप तो अब नहीं है पर उमस बरकरार है. नन्हा स्कूल से आया तो वह रिहर्सल पर चली गयी वापस आयी तो नन्हा और जून दोनों अपना-अपना कम कर रहे थे. जून का मूड कुछ देर के लिए जरूर बिगड़ा पर उन्होंने अपने को फिर संयत कर लिया. वह चाहे कितनी देर बाहर रहें पर उसका बाहर रहना उन्हें खलता है, इसके पीछे क्या है यह तो वही जानते हैं. दीदी को मेल लिखे चार दिन हो गये हैं पर भेज नहीं पा रही है, जून से कहेगी ऑफिस से ही भेज दें, उन्हें प्रतीक्षा होगी. कल बंगाली सखी का जवाब भी आ गया अभी तक पढ़ा नहीं है.

उसके गले में दर्द है, पिछले दिनों ठंडा पेय पीया, शायद इसी कारण. शनिवार को नाटक है तब तक सभी को सेहत ठीकठाक रखनी है. आज से ठंडा पानी पीना बंद. जब वे स्वस्थ होते हैं तो देह की तरफ ध्यान भी जाता, अस्वस्थता जितनी विवश कर देती है पर बाबाजी के अनुयायियों को विवश होने की क्या आवश्यकता है, वह देह नहीं है, न ही मन या बुद्धि, बल्कि मुक्त, पवित्र, शुद्ध आत्मा है, इन छोटे-छोटे या बड़े भी दुखों का उस पर कोई असर नहीं पड़ने वाला. कल दोपहर बाद तेज वर्षा हुई, बिजली भी चली गयी, उन्होंने अँधेरे में ही भोजन बनाने की तैयारी की तो पता चला अँधेरे में उनके रसोईघर में किन्हीं और प्राणियों का राज है. नन्हे ने कितनों को भगाया, आज नैनी पूरा किचन धो-पोंछकर साफ कर रही है. उसका काम बढ़ गया है, सो उसने कपड़े धोने के लिए मशीन लगाने का निश्चय किया. वाजपेयी जी के घुटने का सफल आपरेशन हो गया है, ईश्वर उन्हें दीर्घायु दे, देश को चलाने का जो बीड़ा उन्होंने उठाया है उसे पूरा कर सकें, पाकिस्तान के साथ समझौता करने में सफल हों ! आज नन्हा प्रोजेक्ट के लिए बनाया ‘सोलर कुकर’ ले गया है.

“ईश्वर का स्मरण करने से अहम् विसर्जित होता जाता है, राग-द्वेष संसार की चर्चा करने से होता है लेकिन ईश्वरीय चर्चा यदि मन में चलती रहे तो ये नष्ट हो जाते हैं तथा मानसिक दुःख से भी निवृत्ति होती है, एहिक सुखों और सुविधाओं में डूबा हुआ मन विपत्ति आने पर तिलमिला उठता है किन्तु ईश्वरीय भाव में युक्त मन चट्टान की तरह दृढ़ होता है, छोटे-मोटे दुःख वह साक्षी भाव से सहता है ऐसे ही सुख भी उसे प्रभावित नहीं करता वह शांत भाव से नश्वर सुख-दुःख को सहता है. ईश्वर असीम बल से परिपूर्ण करता है, क्योंकि वह पूर्णकाम है, कुछ पाना उसे शेष नहीं है. जितना सुखद जीवन है, उतनी ही सुखद मृत्यु भी है. मृत्यु एक पड़ाव है, नये सफर पर जाने से पहले की विश्रांति है. कर्मों का फल हर किसी को भुगतना पड़ता है. नये कर्म करने की आकांक्षा न रहे और पुराने कर्मों के बंधन काटते चलें तो मुक्त कहे जा सकते हैं”. आज बाबाजी ने उपरोक्त विचार कहे. यह बिलकुल सही बात है और उसे कई बार इसका अनुभव भी हुआ है जब वह ईश्वरीय विचार से दूर चली जाती है स्फूर्ति का अनुभव नहीं करती. सत्कर्म करने के लिए सद्प्रेरणा और सद्गुण उसे उन आदर्शों का सदा स्मरण रखने से ही मिल सकती है. संसार नीचे गिराता है और मन नीचे के केन्द्रों में जाकर तामसिक वृत्ति धारण कर लेता है. सात्विक भाव बने रहें इसके लिए प्रतिपल सजग रहना होगा. ईश्वर की अखंड अचल मूर्ति सदा सर्वदा आँखों के सम्मुख रखनी होगी जो प्रेरित करती रहे. उन का बल, शक्ति और आशर्वाद मिलता रहे, उनका स्नेह मिलता रहे और वह तभी सम्भव होगा जब वह उन्हें दिल से चाहेगी !


Monday, November 10, 2014

अनुपम खेर और बच्चे


गुरू एक डाकिया है जो ईश्वर और मानव के बीच एक माध्यम है जो ईश्वर की सत्यता का परिचय मानव से कराता है, ऐसा उसे लगता है, रोज सुबह टीवी के माध्यम से गुरु आते हैं और प्रेरणादायक संदेश देते हैं. आज सुबह दीदी का इमेल आया, छोटी बुआ की तबियत ठीक नहीं है, पिता वहाँ गये हैं. बुआ का जीवन बचपन से बेहद संघर्षमय रहा है, माता-पिता ने बड़ी उम्र में बेटी को जन्म दिया, शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया, वही उनकी सेवा में लगी रही. विवाह भी हुआ तो बड़े संयुक्त परिवार में. कुछ वर्ष बाद पति के साथ अलग रहीं पर उन्हें फालिज का अटैक हुआ और पति उन्ही पर निर्भर हो गये. अंततः वे विधवा हो गयीं. नौकरी करके बच्चों को पढ़ा रही हैं पर बेटा दो बार फेल हो गया. इसी गम में शायद अस्वस्थ हो गयी हैं. मनोवैज्ञानिक को दिखाना पड़ा है. उनके बेटे से अभी  फोन पर बात की काफी ठीक-ठाक संयत भाषा में जवाब दिए, बच्चों की अपनी एक दुनिया होती है इस उम्र में, वह माँ-बाप को उसमें एक सीमा तक ही प्रवेश करने देते हैं. कल उसने आम का आचार बनाया, जून और नन्हे ने भी पूरा योगदान दिया.

साधक को पग-पग पर अपने व्यवहार को आचरण की कसौटी पर कसना चाहिए. अपने मन के वस्त्र को धोते-धोते कहीं यह और गंदा न हो जाये, अभिमान की धूल न उस पर लग जाये. पानी पीते हुए भी यदि प्यास नहीं बुझती, तो इसका अर्थ है पानी नहीं पीया होगा. इसी तरह मन में ईश्वर को धारण करते हुए भी यदि आनंद नहीं है तो अर्थ है कि...कल सुबह उसकी संगीत अध्यापिका के पतिदेव का फोन आया आठ दिन बाद होने वाले एक हिंदी नाटक में उसे अभिनय के लिए कहा है. जून भी मान गये हैं. कल शाम उसे जाना था पर उसी समय एक मित्र परिवार मिलने आ गया.

आज बाबाजी ने मंत्रों की महत्ता पर प्रकाश डाला. गायत्री मंत्र का महत्व सबसे अधिक है. ‘ओं नमो नारायण’, ‘ओं नमो भगवते वासुदेवाय’ तथा ‘ॐ नमो शांति शन्ति शांति’ का जाप भी फलदायक है. उन्होंने नींद लाने के लिए, पाचन शक्ति के लिए भी मंत्र बताये जो उसे याद नहीं हुए. कल शाम को रिहर्सल ठीक-ठाक ही रही, अभी नाटक प्रारम्भिक स्टेज पर है, सिर्फ एक हफ्ते का समय है. आज पड़ोसी और उनके बेटे को लंच पर बुलाया है, पड़ोसिन नहीं है कुछ दिनों के लिए. कल जून को चेक मिल गया जिसे जमा करके उन्हें मकान के पेपर्स मिल जायेंगे.


आज ग्रीष्मावकाश के बाद नन्हे का स्कूल पुनः खुला है. गर्मी पूर्ववत है, उसने सफाई के कार्य को टाल दिया है, दोपहर को नैनी की साड़ी में पीको करना है. नाटक की रिहर्सल कल भी ठीक रही, उसे डायलाग याद हो गये हैं लेकिन उनमें जान डालनी होगी. ‘जागरण’ में गोयनका जी का प्रवचन सुना, विपासना समझ में तो खूब आती है और जब भी अभ्यास किया है लाभ भी हुआ है लेकिन नियमित नहीं, बाबा जी मंत्रोच्चार पर आज भी जोर दे रहे थे. आज ध्यान से पहले इसे भी करना है लेकिन उसे एक रास्ता पकड़ना चाहिए एक साथ दो नावों में पैर रखने से डूबने का खतरा ही ज्यादा है. धूप धीरे-धीरे कम हो रही है, शायद वर्षा होगी. कल शाम वे एक मित्र की बेटी को देखने गये, जो अस्वस्थ है. वहाँ अनुपम खेर के साथ बच्चों का एक कार्यक्रम देखा, बहुत अच्छा लगा. दीदी को इमेल भेजना था पर सर्वर काम नहीं कर रहा है. 

Saturday, November 8, 2014

रंगरेज का काज



आज बाबाजी का प्रवचन बहुत प्रभावशाली था, सुबह गुरु माँ ने भी वही बात कही थी कि जिस तरह एक के भीतर परमात्मा का नाम है, वह भला बनने की चाह रखता है, किसी के अपशब्द या दिया गया अन्य कोई कष्ट उसे सुख-दुःख का अनुभव कराता है, उसी तरह दूसरा भी (जिससे उसका संबंध है, या व्यवहार है) उसी पथ का राही है. किसी के लिए परायेपन की भावना नहीं आनी चाहिए, जो एक के लिए अप्रिय है वही दूसरे के लिए भी अप्रिय है, जो एक को सुखकर है वही दूसरे के लिए भी सुख का कारण है. एक बात बाबाजी ने जोड़ दी, अपने साथ न्याय का व्यवहार करना चाहिए और दूसरे के साथ उदारता का. आज सुबह वे उठे तो धूप बहुत तेज थी पर अब बादल आ गये हैं. कल सुबह वे चार बजे उठे और पाँच बजे क्लब पहुंच गये पर वहाँ इक्का-दुक्का लोग ही थे. फिर वर्षा भी शुरू हो गयी, कुछ देर और प्रतीक्षा करने के बाद वह वापस आ गयी, रेस देर से शुरू हुई होगी. जून को उसका दुबारा वहाँ जाना पसंद नहीं आया, शायद उसके लिए यही उचित रहा हो.

जब तक मन पर रंग नहीं चढ़ा है तब तक ही करना शेष है, रंग मैले कपड़े पर नहीं चढ़ता, गुरु रंगरेज होता है जो मन की चादर को धोकर साफ करता है, फिर प्रेम के रंग से रंगता है. “राम पदार्थ पाय के कबिरा गाँठ न खोल, नहीं पतन नहीं पारखी नहीं ग्राहक नहीं मोल” आज गुरु माँ ने रंगरेज का उदाहरण देते हुए समझाया. उसे लगा यह तो सम्भव जान नहीं पड़ता, वह तो गले तक संसार में डूबी हुई है फिर क्योंकर इससे मुक्त हो सकती है और यही कारण है कि कुछ दिनों तक तो ऐसा लगता है कि आध्यात्मिक ऊँचाई तक पहुंचने के मार्ग पर कदम बढ़ रहे हैं पर फिर दुनियादारी के कार्यों में मन ऐसा रम जाता है कि ईश्वर उससे दूर चला जाता है. आज एक सखी का जन्मदिन है उसने छह बजे बुलाया है, अम्बियाँ मंगाई हैं, सुबह उससे बात करके अच्छा लगा, वह स्वयं तो कभी फोन नहीं करती, बेहद व्यस्त रहती है. आज बाबाजी के प्रवचन में काश्मीर के मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला भी आये हैं, उनके कहने पर सभी काश्मीर की शांति की प्रार्थना कर रहे हैं. अपने दिव्य संकल्प की शक्ति पर उन्हें विश्वास है. कल शाम बहुत दिनों के बाद उसने कुछ नया लिखने का प्रयास किया, कुछ पुरानी कविताएँ पढ़ीं, कुछ अच्छी भी लगीं. उसकी किताब इस माह के अंत तक छप जानी चाहिए थी पर प्रकाशकों के वादों पर भरोसा करना ? उचित नहीं है. अगले हफ्ते नन्हे का स्कूल भी खुल रहा है, उसे लिखने का ज्यादा वक्त मिलेगा, वैसे तो यह पूरा वर्ष ही उन्हें व्यस्त रहना है उसके साथ-साथ.

मन में छोटे-छोटे सुखों-दुखों की कहानी चलती रहती है और प्रेम की आग इन को जलाकर भस्म कर देती है, प्रेम ईश्वर का, सच्चाई का पीड़ा भी देता है पर उस पीड़ा में भी आनंद है, सद्गुरु ही यह आग दिलों में जगाता है, हृदय में श्रद्धा उत्पन्न होती है, मन उड़ना भूल जाता है, स्थिर हो जाता है ! लेकिन सन्त का सान्निध्य इस जन्म में उसे मिलना बहुत कठिन है, निकट भविष्य में यह सम्भव नहीं दीख पड़ता, कुछ वर्षों बाद क्या होता है, कौन कह सकता है ! यह आवश्यक भी नहीं कि मात्र गुरू के दर्शन से ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है. आज उन्हें अपना गुरु स्वयं बनना है, उनके भीतर ही ईश्वरीय प्रेरणा विद्यमान है, देर-सबेर जो मंजिल तक पहुंचाएगी ही, कभी-कभी रास्ता भटक गये हैं ऐसा लगता है. कई-कई दिन एक ही जगह खड़े निकल जाते हैं लेकिन उस वक्त भी मन को कोई कचोटता तो रहता है. आज भी पिछले तीन दिनों की तरह तेज धूप निकली है, नैनी ने आम के पेड़ से आम तोड़ दिए हैं, अचार बनाने के लिए जून से मसाले भी मंगाने हैं. कल दीदी व बंगाली सखी को इमेल भेजे. कल उस सखी के यहाँ खाना स्वादिष्ट था, वैसे भी बहुत दिनों के बाद वहाँ जाकर अच्छा लगा.






Wednesday, November 5, 2014

मिनी मैराथन


परसों ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ था, पर एक बार भी याद नहीं आया न ही टीवी या अख़बार में सुना या पढ़ा, इसका सीधा सादा अर्थ उसने यही लगाया कि आजकल वह आँखें, कान, दिल, दिमाग सभी बंद करके जी रही है. अपने इर्दगिर्द के हालात की, लोगों की, उनके विचारों, भावनाओं तक की कोई खबर नहीं रखती, संवेदना शून्य हो जाना इसीको कहते हैं. आज उन्हीं परिचिता से मिलने जाना है, जिनकी विदाई में वह नहीं जा सकी थी. दो दिन बाद वे लोग यहाँ से जा रहे हैं, नन्हे ने एक कार्ड बनाया उन्हें देने के लिए. बाबाजी टीवी पर आ चुके हैं, उन्होंने बताया, नींद नित्य प्रलय है, इसके अतिरिक्त नैमित्तिक प्रलय, आत्यन्तिक प्रलय तथा महाप्रलय भी होती है. फिर कर्म की महत्ता पर प्रकाश डाला, कर्म चिन्तन पूर्वक होना चाहिए, और चिन्तन शाश्वत हो...पर जिसके मूल में रस नहीं वह फूल खिलेगा कैसे ? जिसके हृदय में स्नेह नहीं, व्यवहार चलेगा कैसे ? जिस दीपक में तेल नहीं वह दीपक जलेगा कैसे ? बाबाजी तो चले गये और उसने उन महिला को फोन किया वह तो मिली नहीं, उनके पतिदेव ने फोन उठाया. आज सुबह इंटरनेट का कनेक्शन नहीं मिला. कल तीन इमेल भेजनी थीं पर सम्भवतः कुछ गड़बड़ है, जून को डर है नहीं पहुँची होंगी. नेपाल में हालात सुधर रहे हैं ऐसा कहना ही पड़ेगा. वाजपेयीजी का आज आपरेशन है, पाकिस्तान के शासक ने शुभकामनायें भजी हैं, इस बार काश्मीर समस्या का स्थायी हल निकल ही जाना चाहिए. रात भर की वर्षा के बाद आज मौसम ठंडा है. उसके अस्थिर मन की तरह लिखाई भी अस्थिर हो रही है ! ईश्वर ही उसकी रक्षा करेंगे !

आज की सुबह भी बादलों से घिरी है, रात को वे जैसे ही सोने के लिए लेटे, नींद से आँखें मुंद गयीं. तिनसुकिया में ‘नन्दन कानन’ में व बाद में बाजार में घूमने से काफी थकान हो गयी थी. खाना भी बाहर ही खाया. साल में दो-एक बार ऐसे घूमना और बाहर खाना अच्छा है पर ज्यादा नहीं. कल सुबह वह उन परिचिता से मिलने गयी, दो दिन बाद ट्रक में उनका सामान लोड होगा. बातचीत में दोनों ने कहा, भविष्य में आज से अठारह-उन्नीस वर्षों बाद वे उनसे मिल सकते हैं रिटायर्मेंट के बाद जब वे भी दिल्ली रहने जायेंगे. दोपहर में नन्हे का एक मित्र आ गया और इधर-उधर की बातें करता रहा, बाद में वे तिनसुकिया गये. नैनी के लिए एक पंखा लाकर दिया है, अगले कुछ महीनों में पैसे चुकाएगी, ऐसा उसने कहा है, ज्यादा काम भी करेगी. आज भी बाबाजी ने सुंदर वचन कहे, ईश्वर तो सदा सर्वदा है, उसे खोजना नहीं है बस पर्दा उठाकर उसे देखना भर है. वह सच्चाई है, अंतरात्मा है, जिसे मानव नकारते रहते हैं. कल उसने उस सखी के लिए एक उपहार भी लिया जिसका जन्मदिन अगले हफ्ते है. दो दिन बाद मैराथन दौड़ भी है पर शायद वह नहीं जा पाए, वे जो चाहते हैं हमेशा वही उनके लिए सही नहीं होता. घर से फोन नहीं आया है न ही मकान के पैसों का चेक, जिसे जमा करके जून नई जमीन के कागजात लेंगे, शायद उन्हें जाना भी पड़े. सिवाय प्रतीक्षा के वे फ़िलहाल कुछ नहीं कर सकते. नन्हा कुछ देर बाद पढने जायेगा, उसका सुबह का काम भी तभी शुरू होगा.

ज्ञान को अपने हृदय कलश में भरने के लिए आवश्यक है कि वे अपने मन को खुला रखें, विचारों को संकीर्ण न बनाएं. बल, बुद्धि, विद्या, धैर्य को यदि अपना मित्र बनाना है तो हृदय को विशाल बनाना होगा. आज बाबाजी बच्चों को सिखा रहे हैं. इस समय आठ बजे हैं, उसका स्नान-ध्यान हो चुका है, नन्हा अभी नाश्ता खा रहा है. सुबह उठकर एक घंटा कम्प्यूटर पर बिताया, न्यूज़ पढ़ीं, एक इमेल भी आया था. दीदी और बंगाली सखी ने उसके मेल का जवाब अभी नहीं दिया है. कल मिनी मैराथन है, सम्भवतः वह जा सकेगी, आज शाम को ही वाकिंग करते समय पता चल जायेगा. पुरस्कार न भी मिले तो भी भाग लेना अपने आप में एक अनुभव होगा and she loves walking and jogging आज धूप तेज है, white snow ball का एक पौधा ज्यादा पानी से मरने की कगार पर है कल उन्होंने उसे ट्रांसप्लांट किया था.